कृषि को भारत का आधार कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। आजकल खेती का चलन बहुत बढ़ गया है। अधिकतर लोग कृषि कार्य में जुड़ रहें हैं और लाखों, करोड़ों की कमाई भी कर रहें है। लेकिन एक तरफ कई किसान फसलों का उचित मूल्य नहीं मिलने पर खेती से तौबा करने लगे हैं वहीं दूसरी तरफ कई किसान नए-नए तरीकों से फसलों को उगाकर मुनाफा भी कमा रहे हैं। वे अलग-अलग फसलों का उत्पादन करके फायदे कमा रहे हैं। उन फसलों में से एलोवेरा, अनार, गेहूं, विभिन्न्न प्रकार की सब्जियां, पपीता आदि हैं।
आज हम आपको एक ऐसे ही शख्स के बारें में बताने जा रहे है जिसने पपीता की खेती कर लाखों की आमदनी कमा रहे हैं और पपीते की खेती से सफलता की एक नई कहानी लिख दिया है। आइये जानते हैं उस शख़्स के बारे में।
रामानुज तिवारी (Ramanuj Tiwari) देवरिया (Deoria) जिले के तरकुलवा के रहने वाले हैं। तरकुलवा गांव देवरिया मुख्यालय से 25 किलोमीटर की दूरी पर है। इन्होनें इलेक्ट्रानिक इंजीनियर की नौकरी छोड़कर कृषि अपनाई। कृषि में भी उन्होंने पारंपरिक खेती को छोड़कर वैज्ञानिक तरीके से पपीते की खेती करने का फैसला लिया। पपीते की खेती से रामानुज तिवारी की आर्थिक स्थिति को मजबूती मिली तथा इसके साथ ही क्षेत्र के किसानों को पपीते की खेती में रोजगार के नए अवसर भी दिखाई दिया। क्षेत्र के किसानों जिन्हें गेहूं और धान के फसलों के उत्पादन से लागत भी नहीं निकलती उन किसानों ने रामानुज तिवारी को पपीते की खेती से मुनाफा करते देख वे सभी पपीते की खेती में रोजगार का जरिया तलाशने लगे हैं।
रामानुज तिवारी (Ramanuj Tiwari) इलेक्ट्रानिक से डिप्लोमा करने के बाद शुरुआत में नौकरी की तलाश करने लगे, लेकिन उन्हें अपने मन मुताबिक नौकरी नहीं मिली। पसंंद के अनुसार नौकरी नहीं मिलने के कारण उन्होंने गांव के चौराहे पर इलेक्ट्रानिक सामानों के रिपेयरिंग और बिजली उपकरणों की एक दुकान खोली। लेकिन उस दुकान से रामानुज को अपना सपना सच होते नहीं दिखा तो उसके बाद अपने परिवारजन के साथ कृषि कार्य में उनका हाथ बटाने लगे। पारंपरिक खेती से धान, गेहूं के उत्पादन से लाभ कमाना तो दूर लागत भी निकलना मुश्किल दिख रहा था। एक बार उन्होंने अखबार में हाइटेक विधि से खेती कर के मुनाफे कमाने की समाचर को पढा। जिसके बाद उन्होंने भी अपने खेतों में कुछ नया करने का निश्चय किया।
एक बार रामानुज तिवारी घुमने के लिये पंतनगर गए। एक कहावत है न कि जहां चाह होती है वहां राह मिल ही जाती है। वहांं इनकी भेंट कृषि के छात्रों से हुई जो हाइटेक विधि से पपीते की खेती करने के बारे में बातचीत कर रहे थे। उन सभी छात्रों की बातों को सुनकर रामानुज तिवारी ने पपीते की खेती के बारे में सभी जानकारी प्राप्त किया। उसके बाद उन्होंने पपीते की बीज और उसके फसल उगाने से संबंधित कुछ पुस्तकें भी लेकर घर को आये।
जब रामानुज ने पपीते के फसल उगाने की बात लोगों को बताया तो सबने उनका मजाक बनाया और खूब हंसी भी उड़ाई। लेकिन किसी ने ठीक ही कहा है कि, “यदि किसी को आगे बढ़ना है तो उसे दूसरों की बातों को अनसुना करना होगा।” रामानुज ने भी बातों को अनसुना किया और अपने जुनून से खेती में आगे बढ़े। उन्होंने पुस्तकों को पढ़ने के बाद आधा एकड़ की भूमि पर पपीते का फसल उगाना शुरु किया। अच्छी तरह से जानकारी नहीं होने की वजह से उनका पहला वर्ष कुछ खास नहीं गया लेकिन उनको एहसास हो गया कि धान और गेहूं की पारंपरिक खेती से अधिक मुनाफा पपीते की खेती से है।
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जब वे दूसरी बार पंतनगर गए तो उन्होंने वहां से पूरी जानकारी हासिल की। उसके बाद उन्हें पपीते की खेती से लागत से 4 गुना अधिक का फायदा हुआ। वर्तमान में रामानुज तिवारी ने 1 एकड़ में पपीते की खेती की है। उन्होंने एक एकड़ में 1500 पपीते के पौधों को लगाया है। उन्होंने बताया कि वे अच्छी कम्पनियों का हाइटेक बीज लाकर पौधे तैयार करते हैं उसके बाद वे डेढ़ से पौने दो मीटर की दूरी पर रोपाई करते हैं। एक एकड़ की भूमि पर 1500 पपीते के पौधे लगाये जाते हैं। जिसकी लागत मूल्य 20 रुपये के एक पौधे के हिसाब से 30 हजार रूपये आती है।
पपीते की खेती करने से पहले खेतों की जुताई कराने के बाद खेतो से खर-पतवार को निकाल कर देशी खाद डाली जाती है। उसके बाद सिंचाई कर के पौधों की रोपाई की जाती है। पौधों पर गर्मी का प्रभाव न पड़े और उसमें नमी हमेशा बनी रहे इसके लिए छोटी-छोटी क्यारियाँ बनाकर पौधे के चारो ओर पुआल बिछाया जाता है। पपीते के पौधों की रोपाई फरवरी-मार्च तथा अक्तूबर-नवंबर के महीनों में किया जाता है। रोपाई करने के बाद फसल को तैयार होने में 6 माह का वक्त लगता है। एक पौधे में डाई यूरिया और पोटास को मिलाकर एक मिश्रण तैयार किया जाता है तथा 750 ग्राम खाद डाला जाता है। इसके खेती में वक्त-वक्त पर सिंचाई और दवा के छिड़काव का अधिक ध्यान रखना होता है।
The Logically रामानुज तिवारी को पपीते की खेती करने और क्षेत्र के किसानों को उसमें रोजगार की राह दिखाने के लिए नमन करता है।