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अनूठी पहल: गांव के लोगों को कृषि से जोड़कर उन्हें बना रहे हैं आत्मनिर्भर, केवल लॉकडाउन में 10 लाख के सब्जी बेचे

अच्छे, अमीर और शारिरिक रूप से स्वस्थ लोगों की मदद तो हर कोई करता है। लेकिन जो गरीब, बेसहाय और दिव्यांग जनों की मदद करे, वही होता है रियल हीरो। ऐसे ही हैं डॉ. रमेश सिह बिष्ट। इन्होंने पथरीली जमीन को उपजाऊ बनाकर वहां के दिव्यांग और गरीब लोगों को आत्मनिर्भर बनाने का फैसला किया। इन्होंने यह अलौकिक कार्य करके ही दम लिया। तो आईये पढ़तें हैं कि इन्होंने यह असम्भव कार्य, सम्भव कैसे किया??

डॉ. रमेश सिंह बिष्ट

इस कोरो’ना काल में अधिकांश लोगों को रहने और खाने-पीने दिक्कत हुई। वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपने इस खाली वक्त को बेहतर तरीके से इस्तेमाल किए हैं। घर पर मिले खाली समय में कुछ लोगों ने खेती शुरू की। कुछ लोगों ने दूसरे व्यक्तियों की मदद की है। लेकिन डॉ. रमेश बिष्ट ( Doctor Ramesh Bisht) ने दिव्यांग और गरीब लोगों को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश की है। इन्हें आथिर्क रूप से मजबूती प्रदान करने का कार्य किया है। डॉक्टर साहब उत्तराखंड (Uttrakhand) के अल्मोरा (Almora) से सम्बंध रखतें हैं। यूं तो सुनना आसान लगता है कि फलाना ने लोगों को आत्मनिर्भर बनाया है। लेकिन पथरीली ज़मीन पर खेती और बागानी कर आत्मनिर्भर बनाना कठिन है। यह खुद भी बागानी करतें हैं। इन्होंने लोगों को सिर्फ प्रोत्साहन ही नहीं दिया बल्कि उन्हें जैविक खेती से जोड़ने का कार्य भी किया है।

Ramesh Bist

बापू के विचारों से मिली प्रेरणा

21वीं सदी में अक्सर देखा जाता है कि लोग महात्मा गांधी के विचारों को नहीं अपनाना चाहते। क्योंकि आज की मॉडर्न जनरेशन इस बात में विश्वास करती है कि अगर कोई हमें मार रहा है तो हम उसे क्यों छोड़े, हम अहिंसा वादी नही बनेंगे। लेकिन डॉक्टर साहब बापू के विचारों से प्रेरित है और उन्होंने यह कार्य उनके विचारों पर अमल कर ही शुरू किया है। इनका कहना है कि हमारे बापू का मानना था कि सशक्त राष्ट्र के लिए सबसे पहले हमारे गांव को मजबूती के साथ समृद्ध व विकास में सर्वोपरि होना चाहिए तभी हम सशक्त राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं। इसलिए इन्होंने गांव को इस कार्य से जोड़ने का बीड़ा उठाया है। इनका यह कार्य बहुत ही अच्छी तरह से पहाड़ों में विकसित होते दिख रहा है।

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नई तकनीक से जोड़ा सबको

डॉक्टर साहब ने यह बताया कि हमें इस बात पर हमेशा ध्यान देना चाहिए कि दिव्यांग जन भी नई तकनीक से भलीभांति परिचित रहें। इनकी जो टीम योगदान दे रही है, वह इनके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। इन्हें CBM, THE HANS FAUNDATION और संजीवनी संस्था मदद कर रही है। बात अगर तरक्की या विकास की हो तो कोई भी स्टेट या कंट्री तब ही विकास के पथ पर अग्रसर होगा जब वहां के गांव और उसके निवासी प्रसन्नतापूर्वक रहें। ये इसी कार्य मे लगें है कि कैसे लोगों को नई तकनीक से जोड़कर खुशी दें सकें।

700 से अधिक दिव्यांग बनें आत्मनिर्भर

WHO के अनुसार उन लोगों को दिव्यांग की श्रेणी में रखा है जो जन्म से बोलने में सक्षम नहीं हैं, सुन नहीं सकते, देख नहीं सकते, या ना ही समझने में तत्पर हैं या शरीर का विकास ना होना, अंगभंग होना या फिर किसी दुर्घटना में हाथ या पैर कोई भी अंग खो देना। ये सभी दिव्यांग की सूची में आते हैं। अगर कोई व्यक्ति एसिड अटैक से पीड़ित होता है या फिर उबलते पानी में गिर जाता है तो उसे भी दिव्यांग ही माना जाता है। डॉक्टर साहब ने अपने अनोखी पहल से अल्मोड़ा में लगभग 700 से अधिक दिव्यांगों को आत्मनिर्भर बनाया है।

इस लॉकडाउन में बेंची लाखों की सब्जियां

डॉक्टर साहब ने ऐसे लोगों को खेती और पशुपालन से जोड़ा है। इस लॉकडाउन में एक दिव्यांग ने लगभग 10 लाख की सब्जियां बेची हैं और पशुपालन से इन्होंने 5 लाख कमाए हैं।

The Logically डॉक्टर रमेश सिंह बिष्ट के दिव्यांग जनों को आत्मनिर्भर बनाने की पहल को सलाम करता है और अपने पाठकों से अपील करता है कि वे भी लोगों की मदद करें। ताकि हमारा देश तरक्की करे।

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