अक्सर किसी MNC में काम करने वाला व्यक्ति अपनी नौकरी से झुझता हुआ समय व्यतीत करता है। लेकिन इस किसान के बेटे ने लोगो को ये बताया कि अगर इंसान सही मायने में किसी काम को लगन से करना चाहे तो। कोई भी काम मुश्किल नही है।
कुछ ऐसे ही अटूट मेहनत और लगन का परिचय दिया है नोयडा के रामबीर तंवर ने। एक किसान घर से ताल्लुक रखने वाले रामवीर बहुत ही मेहनती है। पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश में 5 जिले ललितपुर, मोहबा, सोनभद्र, झाँसी और मिर्जापुर सूखे से प्रभावित थे। सूखे से प्रभावित इन जिलों में एक गांव दधा भी था जहाँ रामबीर रहते थे। इनका परिवार पीढ़ियों से किशान है ईशलिये ये मौसम के प्रतिकूल प्रभाव से वाकिफ है। वर्ष 2012 की गर्मियों में रामवीर ने अपने कुछ दोस्तों संग झील में गोते लगते हुए ये पाया कि जिन झीलों में अक्सर वे गोते लगते है वे धीरे-धीरे गायब हो रहे है। जिन झीलों में कभी साफ पानी हुआ करता था अब उनमे बस कचरो की घुटन है। जिस वजह से आस पास के इलाको में बदबू फैलने लगी थी ।
रामवीर उस समय मे अपने स्कूल के साथ साथ खेतो में अपने पिता की मदद भी करते थे। जो समय इनसब कामो से बचता था उसमें वे छात्रों को ट्यूशन भी पढ़ाते थे। इन बच्चों को पढ़ते पढाते उन्हें एक कैंपेन चलने का खयाल आया और उन्होंने बच्चो को झील की स्थिति और उसके संरक्षण के बारे में बताना शुरु किया।
एक साल ऐसा था जब उनके गांव में 25 फिट का बोरवेल सुख गया। तब ग्रामीणों ने 150 फिट तक खुदाई करवाई और पानी को ओवरफ्लो होने दिया क्योंकि उन्होंने ये कल्पना भी नही की थी कि पानी का स्रोत गायब भी हो सकता है। ग्रामीणों को स बात की समझ नही थी इसलिए रामवीर ने ये सोच की इन लोगो से बात करना बहुत महत्वपूर्ण है। जब बच्चो ने लोगो को समझने की की तो उन्हें मजाक और अपमान का सामना करना पड़ा।
इस स्थिति से निपटने के लिए रामवीर ने अपने ट्यूशन के बच्चो से अपील किया कि वे अपने माता-पिता,पड़ोसी और दोस्तो को हर रविवार चौपाल में लाने का प्रयत्न करें। जल्दी ही लोगो ने चौपाल में आना शुरू कर दिया और रामवीर के बातो पे गौर किया । समय के साथ उन्हें बाकी दूसरे गांव से भी कॉल आने शुरू हो गये।
छोटे से गांव से शुरू हुआ ये अभियान नोयडा के जिलाधिकारी कार्यालय पहुच गया। एन पी सिंह जो उस समय नोयडा के जिलाधिकारी थे उन्होंने इस मुहिम को ज्यादा बढ़ावा देने के लिए इसे जिलास्तरीय मुहिम “जल चौपाल” का नाम दिया और इसपे आधारित एक डॉक्यूमेंट्री भी बनवाई। रामवीर के अपील पे इसे कुछ सिनेमाघरों और अन्य गांव में भी दिखाया गया।
इस मुहिम को सबसे बड़ा मोर तब मिला जब आसपास के कचरे को झीलों में जाने से रोकने के लिए दो फ़िल्टर लगाए गए। उस वक़्त रामवीर ने महसूस किया कि उनका झीलों को पुनर्जीवित करने का यह सपना साकार हो रहा है और उनका ये कदम बिल्कुल सही है। रामवीर ने छोटे बच्चो और वयस्कों के साथ मिल कर झीलों को साफ करने के लिए उसके कचरे को निकाला और उसकी स्वक्षता को बनाये रखने के लिए फिल्टर स्थापित किया। कुछ ही महीनों के इस प्रयासों से प्रभावित होकर पड़ोसी गाओ वाले भी अपने झीलों को साफ करने का अनुरोध करने लगे।
उन्होंने एक झील जिसे की डम्पिंग यार्ड में बदल दिया गया था उसे पुनः जीवन प्रदान किया और लोगो की मदद से उसके किनारो पर पौधे लगा दिए और वह के इकोसिस्टम को पुनर्जीवित किया।
इन प्रयासो के सकारात्मक प्रभाव से प्रेरित होकर रामवीर के मन मे इसे पूरे भारत मे लोगो तक पहुँचने का खयाल आया। इसके लिए उन्होंने #SelfielWithPond नाम से एक अभियान शुरू किया और लोगो को अपने आस पास के जलस्रोतों के साथ एक तस्वीर पोस्ट करने की अपील की। जलस्रोत के सफाई को लेकर उसमें कोई शर्त नही थी। अगर कोई जलस्रोत प्रदूषित था तो वो स्थानीय अधिकारियो के लिए एक संकेत के रूप में था और अगर कोई जलस्रोत साफ था तो वो बाकी लोगो के लिए एक प्रेरणा का प्रारूप बना।
उन्होंने ये कल्पना नही की थी कि उनकी ये मुहिम उत्तरप्रदेश की सीमाओं को लांघ कर कर्नाटक और तमिलनाडु तक पहुच जाएगा। उन्हें अब पूरे देश से तस्वीरे मिलने लगी और इसके परिणाम स्वरूप प्रदूषित जलस्रोतों के आस पास के स्तहनिये अदिकारियो ने इसकी सफाई करवाणी शुरू कर दी।
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रामवीर कर उनकी टीम के सहयोगी प्रयास जो 2014 में शुरू हुआ था उसने अब तक 10 लेक को साफ कर के पुनर्जीवित कर दिया है। ज्यादातर ये लोग फण्ड की कमी की वजह से 0.5 से 3 हेक्टेयर तक के छोटी झीलों को साफ करते है । रामवीर के अनुसार एक झील को पुनर्जीवित करने में 2 से 25 लाख तक का खर्च आता है। ज्यादातर ये फण्ड रामवीर और उनके दोस्त के योगदान से आता है। लेकिन अपनी आर्थिक स्थिति को सुधरने और टिकाऊ बनाने के लिए उन्होंने सीएसआर जैसे आकर्षक गतिविधि का उपयोग कर रहे है।
रामवीर और उनकी टीम का मानना है की झीलों की सफाई में किसी बाहरी लोगों का हाथ न हो चाहो वो लेबर हो या उपकरण। इसलिए उन्होंने झइलो के पुनरुद्धार के लिए ग्रामीणों का ही उपयोग किया। इसके लिए वे वास्तविक सफाई कार्य के शुरु होने के 2-3 महीने पहले से ही गांवो के सम्मानित बुजुर्गो से संपर्क करके उन्हें आपने काम के बारे में जानकारी देते है और एक टीम का गठन करते है। ये टीम इनके बातो को पूरे गांव में फैलने में मदद करता है। बाद में ग्रामीण शारीरिक मेहनत और औजार मुहैया करवाते है और 5 रुपये प्रति व्यक्ति का चंदा इकठ्ठा करते है जो गॉवो के बुजुर्गों द्वारा संभाला जाता है। बड़े उपकरण और फण्ड की जरूरतों की हिसाब से 6 से 12 माहीनो में प्रकिर्या पूरी होती है।
औसतन रामवीर और उनकी टीम 3के झील से 500 से 1000 किलोग्राम प्लास्टिक कचरा निकलती है। बाद में इन प्लास्टिक कचरे को रिसायकलिंग के लिए भेज दिया जाता है। इन पुनर्जीवित झीलों की देखभाल का काम स्थानीय लोगो को दिया जाता है ताकि किसानों और मछुआरों को इसका लाभ मिल सके।
आज देश और दुनिया के तमाम बड़े शहर पानी को किल्लत को झेल रहे है ऐसे में रमवीर का यह प्रयास वाकई सराहनीय है।