‘माफिया क्वीन्स ऑफ मुंबई…..’ मशहूर लेखक एस हुसैन जैदी और जेन बोर्गेस की लिखी इस किताब में उन महिलाओं की 13 सच्ची कहानियां है जो मुंबई में आपराधिक गतिविधियों में शामिल थीं। उनमें से ही एक गंगूबाई कोठेवाली या गंगूबाई काठियावाड़ी। आज हम आपको यह बताएंगे कि वास्तविक जीवन में गंगूबाई काठियावाड़ी आखिर कौन थी- Real Gangubai Kathiawadi
असल मे गंगूबाई काठियावाड़ी की कहानी (Who was Gangubai Kathiawadi in real life)
गंगूबाई काठियावाड़ी का असली नाम गंगा हरजीवनदास काठियावाड़ी था। उनका जन्म गुजरात (Gujrat) के काठियावाड़ के एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनके पिता बैरिस्टर (Barrister) थे। गंगा का लालन-पोषण काठियावाड़ में ही हुआ। घरवाले उन्हें बेहतर शिक्षा देना चाहते थे पर गंगा का पढ़ने में मन नहीं लगता था। वह मुंबई जाकर हीरोइन बनना चाहती थी।
16 साल में घर छोड़ मुंबई पहुंच गई
एस हुसैन जैदी की किताब ‘माफिया क्वीन्स ऑफ मुंबई’ (Mafia Queens of Mumbai) के अनुसार 16 साल की उम्र में गंगा को अपने पिता के अकाउंटेंट रमणीकलाल से प्यार हो गया। घरवालों ने इस रिश्ते को मंजूरी नहीं दी। इसलिए दोनों भाग कर मुंबई गए और शादी कर ली। इस शादी ने गंगा की पूरी ज़िंदगी बदल दी।
जिस पर विश्वास कर घर छोड़ा उसने भरोसा तोड़ा (Turning life point of Gangubai kathiawadi)
जिस रमणीकलाल पर भरोसा कर गंगा अपना घर और घरवालों को छोड़ आई थी, उसने गंगा को कमाठीपुरा (Kamathipura) में बेच दिया। ज़िंदगी के इतने बड़े धोखे के सामने उन्होंने घुटने टेक दिए। उन्होंने काठियावाड़, रमणीक और अपने सुनहरे अतीत को भुला दिया। अपने घर न जाकर कमाठीपुरा को ही अपना घर बना ली। अभिनेत्री बनने का सपना देखने वाली गंगा बतौर सेक्स वर्कर काम करने लगी।
बहुत ही कम समय में वह कमाठीपुरा की सबसे अधिक मांग वाली सेक्स वर्कर (Sex Worker) बन गई। जो पैसे वह कमाती थी, उससे वह अपने लिए सोने के जेवर बनवाती थी। समय के साथ वह मामूली सेक्स वर्कर से गंगूबाई काठेवाली बन गईं। वेश्यालय (Brothel) की प्रमुख बनकर उन्होंने अपनी हुकूमत नहीं चलाई। वे लड़कियां जिन्हें झूठ बोलकर या धोखा देकर वेश्यालयों में बेचा गया था, उन्हें गंगुबाई घर वापस भेजने में मदद करती। वह अन्य सेक्स वर्कर्स के साथ मां की तरह व्यवहार करती थीं।
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इस तरह बनी माफिया क्वीन (Gangubai Becoming Mafia queen)
माफिया क्वीन्स ऑफ मुंबई किताब के अनुसार, जब गंगूबाई 28 साल की थी, एक पठान उनके बारे में पूछते हुए शीला के वेश्यालय आ पहुंचा। आम ग्राहकों की तुलना में वह 6 फीट लंबा और थोड़ा भयानक दिखता था। पहले तो शीला उसे गंगू के पास नहीं जाने देना चाहती थी पर उससे डरकर जाने दी। उन्हें लगा, शायद गंगू संभाल लेगी पर परिणाम बिलकुल विपरीत हुआ। अब पठान हर कुछ दिन पर वहां आता और गंगू के साथ ज़बर्दस्ती करता। उन्हें चोट पहुंचाता, गाली देता और पैसे भी नहीं देता। एक बार तो उनकी हालत इतनी बिगड़ गई कि उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा था।
करीम लाला ने अपनी बहन माना (Gangubai became sister of don karim lala)
अस्पताल से वापस आकर पठान के बारे में जानकारी इकट्ठी की। पता चला कि पठान का नाम शौक़त ख़ान है, वह डॉन करीम लाला के गैंग का मेंबर है। गंगुबाई करीम लाला उर्फ अब्दुल करीम ख़ान से मदद की गुहार लगाई। करीम लाला महिलाओं की इज्ज़त करता था। उसने गंगूबाई को अपनी बहन मान लिया और उनकी मदद की। अगली बार जब पठान आया तो करीम लाला ने उसकी कई हड्डियां तोड़ दी और उसने घोषणा की कि गंगू मेरी राखी बहन है। अब अगर कोई उसके साथ बुरा व्यवहार करेगा तो वह उसे जान से मार देगा। डॉन की बहन बनने से रेड लाइट एरिया में गंगुबाई का दबदबा भी कायम हो गया।
वेश्यालय हटाकर स्कूल की शुरू करने की बात
1960 के दशक में कमाठीपुरा में सेंट एंथनी गर्ल्स हाई स्कूल शुरू हुआ। गर्ल्स स्कूल और वेश्यालय दोनों एक जगह नहीं रह सकते थे। लोगों ने वेश्यालय बंद करने की बात की ताकि स्कूल में पढ़ रही बच्चियों पर कोई बुरा असर न पड़े लेकिन यह बात भी सही नहीं थी कि वेश्यालय में लगभग एक सदी से रह रही महिलाओं को वहां से हटा दिया जाए। गंगुबाई आगे आई और उन्होंने इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई।
गंगूबाई ने प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से की मुलाक़ात (Gangubai kathiawadi met prime minister Pandit jawaharlal Nehru)
राजनीतिक परिचितों की मदद से तत्कालीन प्रधानमंत्री पं• जवाहरलाल नेहरू से मिलने का वक्त तय हुआ। इस मीटिंग का उल्लेख आधिकारिक तौर पर कहीं नहीं है लेकिन एस हुसैन जैदी और जेन बोर्गेस की किताब ‘माफ़िया क्वीन्स ऑफ मुंबई’(Mafia queens of Mumbai) में लिखा है, “इस मुलाक़ात में गंगूबाई ने रेड लाइट एरिया के महत्त्व को समझाया और इसके रक्षा करने के आवश्यकता के बारे में बताया। अपनी बुद्धि, सजगता और स्पष्ट विचारों से नेहरू जी को हैरान कर दिया। नेहरू ने उनसे सवाल किया कि वह इस धंधे में क्यों आईं जबकि उन्हें अच्छी नौकरी या अच्छा पति मिल सकता था।”
गंगुबाई के जवाब ने जब जवाहरलाल नेहरू को निरुत्तर कर दिया
ऐसा कहा जाता है कि गंगूबाई ने उसी मुलाक़ात में तुरंत नेहरू के सामने प्रस्ताव रखा। उन्होंने नेहरू से कहा कि अगर वो उन्हें (गंगूबाई) पत्नी के रूप में स्वीकार करने को तैयार हैं तो वह ये धंधा हमेशा के लिए छोड़ देंगी। इस बात से नेहरू दंग रह गए और उन्होंने गंगूबाई के बयान से असहमति जताई। तब गंगूबाई ने कहा, ”प्रधानमंत्री जी, नाराज़ मत होइए। मैं सिर्फ़ अपनी बात साबित करना चाहती थी। सलाह देना आसान है लेकिन उसे ख़ुद अपनाना मुश्किल है।” नेहरू ने इसके ख़िलाफ़ कुछ नहीं कहा।
मुलाक़ात ख़त्म होने पर नेहरू ने गंगूबाई से वादा किया कि वह उनकी मांगों पर ध्यान देंगे। प्रधानमंत्री ने जब ख़ुद इस मसले पर हस्तक्षेप किया तो कमाठीपुरा (Kamathipura) से वेश्याओं को हटाने का काम कभी नहीं हुआ।”
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आज़ाद मैदान में गंगूबाई का भाषण (Gangubai speech in Azad Maidan)
1960-70 के दशक में गंगूबाई काठियावाड़ी (Gangubai Kathiawadi) का कमाठीपुरा में काफ़ी नाम रहा। उनका मानना था कि शहरों में सेक्स वर्कर्स के लिए जगह उपलब्ध कराई जानी चाहिए। आज भी उन्हें मुंबई के आज़ाद मैदान (Azad maidan Mumbai) में दिए गए भाषण के लिए याद किया जाता है। बालिकाओं के समर्थन और महिला सशक्तिकरण के लिए यहां बैठक बुलाई गई थी जहां कई एनजीओ और पॉलिटिकल पार्टी से भी लोग आए थे। गंगूबाईं को वहां वेश्याओं के बीच साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए बुलाया गया था। अपने भाषण की शुरुआत में उन्होंने कहा, “मैं घरवाली हूं न कि घर तोड़ने वाली।” उनका कहना था कि वेश्याएं पुरुषों की शारीरिक ज़रूरतों को पूरा कर दूसरी महिलाओं को उनके हमले से बचाती हैं।
गंगुबाई को आज भी बहुत आदर से याद किया जाता है। वह एक ऐसी कोठेवाली थी जिन्होंने व्यवसाय और धन को नहीं बल्कि महिलाओं को महत्त्व दिया। उनके जीवन का कैनवास कई उपाख्यानों और प्रेरक कहानियों के रंग से भरा हुआ है। उनकी मौत के बाद कई वेश्यालयों में उनकी तस्वीर भी लगाई गई और उनकी मूर्तियां भी बनाई गईं। संजय लीला भंसाली ने गंगूबाई काठेवाली की ज़िंदगी पर फ़िल्म बनाई है जिसमें आलिया भट्ट उनके किरदार में नज़र आ रही हैं!
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