हम भारतीय अक्सर आम चीजों को शगुन और अपशगुन से जोड़कर देखते हैं। भारत में आंख फड़कना जिसे अंग्रेजी में आईलिड ट्विचिंग (Eyelid Twitching) कहते हैं, उसे लेकर कई प्रकार की धारणाएं हैं। कुछ लोग इसे शुभ समझते हैं तो कुछ लोग अशुभ।
क्या होती है ट्विचिंग (आंख फड़कना) ?
ट्विचिंग दरअसल, छोटे मांसपेशियों में होने वाला संकुचन होता है। आपकी मांसपेशियां उन फाइबर्स से बनी होती हैं जिन्हें नसें कंट्रोल करती हैं। किसी नस में स्टिमुलेशन या डैमेज ट्विचिंग का मूल कारण होता है।
कई बार तो हमें इसके बारे में पता भी नहीं चलता!
ट्विचिंग सिर्फ आंखों में ही नहीं, शरीर के किसी भी हिस्से, मांसपेशियों में हो सकती है। कई बार तो हमें ट्विचिंग के बारे में पता भी नहीं चल पाता और ये चिंता की बात नहीं है। लेकिन कुछ मामलों में, ये नर्वस सिस्टम डिसऑर्डर को लेकर संकेत देते हैं जिससे डॉक्टरी सलाह की जरूरत पड़ सकती है।
नजरअंदाज न करें इन बातो को
आईलिड ट्विचिंग तनाव, एंग्जाइटी या फिर थकावट की वजह से होने वाली परेशानी है। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
एक हफ्ते से ज्यादा आईलिड ट्विचिंग होना,आईलिड के मसल्स का लटकना,आंखे लाल होना या सूजन आंख खोलने में परेशानी,आंख के अलावा चेहरे के अन्य हिस्सों का फड़कना
इन कारणों से हो सकती है ट्विचिंग –
ऑटोइम्यून डिसऑर्डर, जैसे कि आइजैक सिंड्रोम(Isaac’s syndrome),ड्रग ओवरडोज (कैफीन, एम्फैटेमिन या अन्य स्टिमुलेंट्स),निकोटीन की वजह से पैरों में ट्विचिंग,नींद की कमी,ड्रग साइड इफेक्ट (जैसे कि डाइयूरेटिक्स, कॉर्टिकोस्टेरॉइड या एस्ट्रोजेन से),व्यायाम (व्यायाम के बाद ट्विचिंग देखा जाता है),डाइट में पोषक,तत्वों की कमी,तनाव,डिहाइड्रेशन की वजह से पैर, बांह और टॉर्सो(Torso) में ट्विचिंग
मेडिकल कंडिशन जैसे मेटाबोलिक डिसऑर्डर, किडनी की बीमारी, शरीर में पोटैशियम का कम हो जाना और यूरेमिया
जानिए कुछ मुख्य उपाय
नियमित रूप से हेल्दी डायट लेना, खूब पानी पीना, 7 से 8 घंटे सोने की आदत, कैफीन का सेवन कम करने से आम ट्विचिंग को काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है। लेकिन अगर ट्विचिंग लंबे समय तक और लगातार हो रही है तो समस्या बन जाती है। इसके लिए डॉक्टर से जरूर मिलें।