Monday, December 11, 2023

झारखंड की रेणु के पास है कलाओं का खजाना, बेकार पड़े सामानों से बनाती हैं खूबसूरत कलाकारी

आर्ट एंड क्राफ्ट में अनेकों प्रयोग हम सब करते हैं ताकि घर में पड़े सामानों से बेहतरीन कलाकृतियां बनायी जा सके. हालांकि अब अनेक तरह की कलाकृतियां बनायी जा रही हैं, जिसने आर्ट एंड क्राफ्ट को एक नया मुकाम दिया है.

साल 1995 में शादी के बाद रेणु अपने पति के साथ गुजरात में आकर रहीं और यहीं उन्होंने अपनी हॉबी को निखारा. वे घर से मीलों दूर का सफर तय करतीं ताकि अपनी हॉबी को समय दें सकें. गुजरात में तीन साल रहने के बाद रेणु अपने पति के साथ झारखंड आ गयीं, जो उनका होम टाउन है. वे बिरसा मुंडा चौक के पास रहतीं हैं और आर्ट एंड क्राफ्ट के जरिए अपनी हॉबी को निखारने का काम कर रही हैं.

Renu from Jharkhand is making best out of waste

साइंस स्ट्रीम मगर हॉबी को बनाया रोज़गार

रेणु की प्रारंभिक शिक्षा साइंस से हुई है मगर उन्होंने अपनी हॉबी को करियर के रुप में चुना क्योंकि इसमें ही उन्हें सुकून मिलता है. रेणु बताती हैं कि उन्होंने अपनी मां से ही प्रेरणा पाकर अपनी हॉबी को रोज़गार बनाया. बचपन में रेणु अपनी मां को स्वेटर बुनता देखती थीं और वे भी अपनी मां के साथ स्वेटर बुनने के प्रयास करती थीं. धीरे-धीरे उन्हें रचनात्मक कामों में दिलचस्पी होने लगी और उन्होंने हॉबी को ही प्रोफेशन के तौर पर आगे बढ़ा दिया.

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150 से ज्यादा महिलाओं को दिया रोज़गार

47 वर्षीय रेणु आगे बताती हैं कि आज उनके साथ लगभग 150 से ज्यादा महिलाएं जुड़ी हैं, जिन्हें वे आर्ट एंड क्राफ्ट के तरीके सीखा रहीं हैं. साथ ही रेणु को केक बनाने का हूनर भी प्राप्त है, जिसे वे महिलाओं के साथ साझा करती हैं. उनमेें से अधिकांश महिलाओं ने आज खुद का रोज़गार भी खड़ा कर लिया है, जिससे वे भी आज दूसरी महिलाओं को रोज़गार प्रदान कर रहीं हैं. रेणु का मानना है कि महिलाओं को आत्मनिर्भर बनना चाहिए.

रेणु एक दिन में लगभग 3 ग्रुप चलाती हैं और एक ग्रुप में 10-15 स्टूडेंट्स शामिल होते हैं. उनके यहां काफी दूर से महिलाएं सीखने के लिए आतीं हैं और उन्हें भी सभी को काम सीखाते हुए समय के बीतने का अंदाजा नहीं रहता क्योंकि उनका मानना है कि जब काम अपने मन का हो, तब समय के बीतने का ख्याल ही नहीं रहता.

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रेणु के पास है आर्ट का खजाना

रेणु द्वारा बनाए गये आर्ट एंड क्राफ्ट में अनेकों चीज़े शामिल हैं. जैसे- मिट्टी के बने आर्ट, रिलिफ पेंटिग- इसे मार्बल आर्ट भी कहा जाता है, ऑयल पेंटिग, एसिड आर्ट, वुडेन आर्ट, सॉफ्ट टॉय और मोतियों से बने आर्ट भी शामिल हैं.

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दक्षिण भारत का तंजौर आर्ट भी शामिल

रेणु के आर्ट में दक्षिण भारत का प्रसिद्ध आर्ट ‘तंजौर आर्ट’ भी शामिल है. यह तमिलनाडु के तंजावुर शहर का स्थानीय कला रूप है. इसकी खासियत होती है कि यह पेंटिंग अंधेरे में भी हल्की रौशनी लिए हुए चमकती है. तंजौर चित्रकला कीमती पत्थरों, कांच के टुकड़ों और सोने से बनाये जाते हैं. हालांकि यह आर्ट सोने के उपयोग के कारण महंगा होता है, मगर लोगों के डिमांड के अनुरूप इसे भी बनाया जाता है. सोने के इस्तेमाल के कारण इसे गोल्ड आर्ट भी कहा जाता है.

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मिट्टी के बने आर्ट में रेणु मिट्टी से फ्लावर पॉट, मूर्तियां, बास्केट आदि बनाती हैं.

रिलिफ या मार्बल आर्ट कहे जाने वाले आर्ट में प्लाई वुड पर पहले डिजाइन बनाकर फेविकोल को मार्बल के बुरादे के साथ मिलाकर बिछाया जाता है और आकृति को रुप दिया जाता है. इस आर्ट में ट्री ऑफ लाइफ को उकेरा जाता है, जिसमें पेड़-पौधों की आकृतियां सबसे ज्यादा पायी जाती हैं. रंग-बिरंगे कलर्स से फुल-पौधों को उकेरा जाता है.

वहीं ऑयल पेंटिंग में विभिन्न तरह के आर्ट वर्क्स को बनाया जाता है. एसिड आर्ट में आईने के ऊपर एसिड द्वारा कलाकृतियां बनायी जाती हैं. यह काम बेहद करीने से किया जाता है क्योंकि इसमें अत्यंत सावधानी की जरुरत होती है.

वही वुडेन से बने आर्ट में लकड़ियों को मनचाहे आकार में काट कर उससे विभिन्न तरह का रुप दिया जाता है, जिसमें घड़ी, टेबल स्टैंड, कैंडल स्टैंड और भगवान के छोटे मंदिरों को बनाया जाता है.

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साफ्ट टॉय में एक विशेष प्रकार की रुई को आकृति के अनुसार विशेष कपड़ों में भरकर तैयार किया जाता है. रेणु साफ्ट टॉय से गुड़ियां, गद्दे और तकिये के कवर का निर्माण करती हैं.

वहीं मोतियों के आर्ट में सबसे पहले मोतियों को धागे में पिरोया जाता है तथा उसके बाद उसे एक-दूसरे में चिपकाकर भिन्न-भिन्न तरह की आकृतियां, जैसे- शो स्टैंड,छोटे-छोटे खिलौनों आदि को बनाया जाता है.

जान पहचान से आते हैं आर्डर

देखा जाये तो रेणु के पास कला की कोई कमी नहीं है क्योंकि सरस्वती उनके हाथों में बसती है. आज रेणु अपनी कला के जरिए ही महीने के 20,000 से ज्यादा की कमाई कर रही हैं. उनके परिवार के सदस्य उनका पूरा सहयोग करते हैं ताकि उन्हें अपनी हॉबी के लिए पूरा समय मिलते रहे. रेणु के जान पहचान के जरिए ही उनके अधिकांश आर्डर आते हैं. आगे भी रेणु ने ठाना है कि वे अपनी हॉबी को दूर-दूर तक पहुंचाने का काम करेंगी क्योंकि इससे उनके अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है.