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पिता ने रिक्शा चलाकर पढ़ाया, बेटी ने 12वीं की परीक्षा में 92% लाकर बढ़ाया पिता का मान

Rickshaw puller's daughter Akanksha scored 92% in CBSE 12th exam

कुछ दिन पहले ही CBSE बोर्ड ने 10वीं और 12वीं के परिणाम घोषित किए हैं जिसमें अनेक छात्र-छात्राओं ने सफलता हासिल की है। परीक्षा चाहे कोई भी परिणाम घोषित होने के बाद छात्रों की मेहनत का भी रिजल्ट आ जाता है। बहुत सारे विद्यार्थी ऐसे होते हैं जो टॉप तो नहीं करते लेकिन कड़ी मेहनत करके अच्छे अंक लाना भी बहुत बड़ी उपलब्धी होती है।

कुछ ऐसी ही कहानी छात्रा आकांक्षा (Akanksha) की है, जिसने विपरीत परिस्तिथियों का सामाना करते हुए कठिन परिश्रम की और परिणामस्वरुप CBSE बोर्ड से 12 वीं की परीक्षा मे 92% से सफलता हासिल की है। इसी कड़ी में चलिए जानते हैं आकांक्षा के बारें में –

आकांक्षा का परिचय

आकांक्षा (Akanksha), उत्तरप्रदेश (Uttar Pradesh) के नोएडा (Noida) की रहनेवाली हैं। उनके पिता का नाम राजेश्वर प्रसाद है जो रिक्शा चलाकर जैसे-तैसे अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। आकांक्षा का नाम उन छात्रों में शामिल है जो आर्थिक तंगी के बावजूद भी हिम्मत नहीं हारते हैं और सफलता हासिल करते हैं।

आर्थिक तंगी के बावजूद 92% से पास की 12वीं की परीक्षा

सामान्यतः लोग विपरीत परिस्तिथियों में हिम्मत हार जाते हैं लेकिन आकांक्षा का हौसला दृढ़ था। एक तरफ जहां आकांक्षा के पिता जीवनयापन और बेटी की पढ़ाई के लिए तपती धूप और कंपकंपाती सर्दी में भी रिक्शा चलाते हैं वहीं आकान्क्षा ने भी मेहनत में कमी नहीं की और कठिन परिश्रम के बल पर आज 12वीं की परीक्षा 92% से सफलता हासिल की है।

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स्कूल जाने के लिए रोजाना करती थी 2.5 किमी का सफर तय

आकांक्षा के मन में पढ़ाई के प्रति ऐसी लगन थी कि वह विद्यालय जाने के लिए रोजाना 2.5 किमी का सफर तय करती थीं। इतना ही नहीं मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक आकांक्षा पढ़ाई के साथ-साथ घर पर मां की मदद के लिए झाड-पोछा, खाना पकाना, बरतन धोना आदि काम भी करती थीं। उसके बाद बाकि समय में वह मना लगाकर पढ़ाई करती थीं।

वकील बनना चाहती हैं आकांक्षा

आकांक्षा (Akanksha) ने बताया कि, वह वकील बनना चाहती हैं लेकिन अभी वह SSC प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करेंगी। उसके बाद आगे चलकर अच्छे कॉलेज से LLB में नामांकन कराएन्गी। आकांक्षा की मां का कहना है कि उन्होंने बेटा-बेटी में कभी फर्क नहीं किया है और वह चाहती हैं कि आकांक्षा अपने पैरों पर खड़ी हो।

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