सफलता की राह में कभी भी गरीबी तथा आर्थिक तंगी नही आ सकती लेकिन इसके लिए लगन तथा मेहनत की जरूरत है। ये दोनों ऐसा हथियार है जिसके बदौलत हम सफलता के सीढ़ियों पर चढ़ सकते है तथा अपनी मंजिल पा सकते है। आज हम एक ऐसे शख्स की बात करेंगे, जिन्होंने अपना पूरा बचपन गरीबी में बिताया, लेकिन आज अपने लगन और मेहनत के बदौलत आईएएस बन लोगों के लिए प्रेरणा के पात्र बने हुए है।
रिक्सा चालक का बेटा बना आईएएस
वैसे तो भारत के हर युवा का सपना होता है एक ऑफिसर बनने का, लेकिन उस पद की गरिमा को वहीं संभाल सकता है जिसके पास उस पद के लायक काबिलियत हो। आज हम बात कर रहे है, एक रिक्शा चालक के बेटे “आईएएस अफसर गोविंद जायसवाल” (IAS Govind Jayaswal) की। जिन्होंने यह साबित कर दिया कि किसी भी मुकाम को पाने के लिए फैमिली बैकग्राउंड तथा बड़ी परिचय मायने नही रखता। इसके लिए मायने रखती है हमारी मेहनत , लग्न तथा आत्मशक्ति।
“आईएएस अफसर गोविंद जायसवाल” (IAS Govind Jayaswal)
एक ऐसा लड़का, जो बनारस के गलियों में दोस्तों के साथ घूमता रहता था, एक दिन वह अपने दोस्त के साथ उसके घर पर चला गया। तभी उस बच्चे के पिता ने गोविंद पर नाराजगी दिखाते हुए पूछा ” तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमारे घर मे घुसने की”। गोविंद को उस बच्चे के पिता ने इसलिए ऐसा बोला क्योंकि इनके पिता रिक्शा चालक थे। ऐसा इनके साथ एक बार नही बल्कि बहुत बार हुआ। लोग तरह-तरह की बातें सुनाते। कुछ लोग तो इतना तक बोल देते कि, “पढ़-लिख कर क्या करोगे, बाद में तो रिक्शा ही चलाना है।” इतना ही नही जब इनकी बहन स्कूल पढ़ने जाती तो ,लोग इनके बहन पर भी ताने मारते, ” तुम्हे तो दूसरों के घर का बर्तन धोना चाहिए, उससे कुछ पैसे मिल जाते। आखिर पढ़ कर क्या करोगी”। इन बातों को गोविंद कभी भी दिल पर नही लेते लेकिन उन्होंने बचपन मे ही ठान लिया था कि उनको कैसे भी आईएएस बनना है, चाहे कितनी भी मेहनत करनी पड़े।
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खेलने-कूदने के उम्र में ही चुना अपना लक्ष्य
आईएएस अफसर गोविंद जायसवाल (IAS Govind Jayaswal) ने लोगों के तानों से अपने आपको कमजोर नही पड़ने दिया बल्कि उन तानों ने उन्हें खेलने-कूदने के उम्र में ही जीवन मे कुछ बड़ा करने की ताकत दी। उसी समय से ही उन्होंने पढ़ाई में मन लगाना शुरू कर दिया और यह तय कर लिया कि पढ़-लिख कर आईएएस बनना है। उसके बाद खेल-कूद के बजाय उन्होंने पढ़ने पर पूरा जोर दिया। यहां तक कि वो अपने कान में रुई लगाकर पढ़ाई करते थे कि पड़ोसियों के प्रिंटिंग मशीन और जेनरेटर की आवाज से उनके पढ़ाई में कोई बाधा न हो।
आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए पिता को बेचनी पड़ी जमीन
आईएएस अफसर गोविंद जायसवाल ने अपनी शुरुआती पढ़ाई सरकारी स्कूल और मॉडर्न कॉलेज से पूरा किया। इसके बाद गोविंद को अपना आईएएस बनने का सपना पूरा करने के लिए दिल्ली आकर सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी करनी थी। लेकिन पैसे नही होने के कारण पिता नारायण जायसवाल पास वाराणसी में थोड़ी जमीन थी, जिसे बेटे की पढ़ाई पूरी कराने के लिए बेचनी पडी। 40,000 रुपए देकर उनके पिता ने आईएएस बनने का सपना पूरा करने के लिए उन्हें दिल्ली भेजा। लेकिन आखिर कितने दिन 40000 रुपये चलेंगे, जल्द ही पैसे भी खत्म होने लगे जिसके वजह से गोविंद को आधा पेट खाना खाकर रहना पड़ता था तथा चाय पीना भी उन्होंने बंद कर दिया। भले ही वो शारीरीक रूप से कमजोर हो गए थे लेकिन उनका हौसला बुलंद था।
आखिरकार मिली कामयाबी
गोविंद जायसवाल ने महज 22 साल की उम्र में ही आईएएस बनने के सपना को साकार किया। वर्ष 2006 में उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा दी तथा उसमें 48वां रैंक के साथ सफलता हासिल की।
महात्मा गांधी तथा एपीजे अब्दुल कलाम थे उनके प्रेरणा के स्रोत
गोविंद जायसवाल ने एक चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा कि, “महात्मा गांधी जी मेरे लिए प्रेरणा के पात्र है इसके अलावे एपीजे अब्दुल कलाम जी से मुझे सपना देखने की ताकत मिली तथा मैं पूर्व राष्ट्रपति की किताबें भी पढ़ा करता हूँ।”