दुनियाभर में इलेक्ट्रिक वाहनों(Electric Vehicles) की संख्या तेजी से बढ़ रही है। हालांकि जब भी इलेक्ट्रिक वाहनों की बात होती है तो चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर न होने के कारण रेंज की चिंता सभी को सताती है, जो चार्जिंग से सम्बंधित है। ऐसे में एक ऐसी सड़क को विकसित किया जा रहा है, जिसपर चलते-फिरते इलेक्ट्रिक वाहन चार्ज हो सकेंगे।
इससे चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी होगी दूर
कॉर्नेल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के एक ग्रुप ने कहा है कि चलते समय इलेक्ट्रिक वाहनों को सड़कों से चार्ज किया जा सकता है। इससे चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी दूर होने के साथ हीं अधिक दूरी तय करने की चिंता भी खत्म होगी। आपकों बता दें कि इस ग्रुप को खुर्रम अफरीदी लीड कर रहें हैं।
टेक्नोलॉज़ी को लागू करना है बड़ी चुनौती
इस तकनीक में जिस प्रोसेस का उपयोग कर के वाहनें चार्ज होंगी, उसका नाम इंडेक्टीव चार्जिंग है। जिस तरह से वाहनों में स्मार्ट्फोन को बिना किसी वायर कनेक्शन के चार्ज किया जाता है, उसी तरह से सड़को पर वाहन को बिना किसी कनेक्शन के चार्ज करने के लिए एक विशाल चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करना इस टेक्नोलॉज़ी के लिए बड़ी चुनौती है। इंडेक्टीव चार्जिंग तकनीक का उपयोग कोई नई बात नहीं है। हालांकि वैकल्पिक चुंबकीय क्षेत्र के लिए महंगे हार्डवेयर की जरुरत होती है।
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जेट प्रोपल्शन लैब द्वारा विकसित हुई तकनीक
इस तकनीक को कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने नासा की जेट प्रोपल्शन लैब का इस्तेमाल करके विकसित की है। इसमें मैग्नेटिक फील्ड के जगह हाई फ्रिक्वेंसी इलेक्ट्रिक फील्ड का उपयोग किया जाता है। विशेषज्ञों द्वारा इस तकनीक के बारे में यह दावा किया जा रहा है कि यह 18 सेन्टीमीटर तक ग्राउंड क्लीयरेंस वाले गाड़ियों को बिना किसी वायर कनेक्शन के द्वारा चार्ज किया जा सकेगा। इसमें सड़क चार्जिंग प्लेट का उपयोग किया जाता है, जो ईवी को सड़क पर चलाने के समय उर्जा ट्रांसफर करेगा। इस चार्जिंग प्लेट को दस फीट की दूरी पर लगाया जा सकता है।
चार-पांच घंटे में वाहनों के चार्ज होने का दावा
वैज्ञानिकों द्वारा यह दावा किया जा रहा है कि हाई फ्रिक्वेंसी चार्जिंग तकनीक द्वारा निसान लीफ को चार्ज करने में 4-5 घंटे का समय लगेगा। अत्यधिक बड़ी बैटरी वाली इलेक्ट्रिक वाहनों को फुल चार्ज होने में ज्यादा वक्त लगेगा। इस दिलचस्प चार्जिंग टेक्नोलॉज़ी को स्थापित करने के लिए महंगे इन्फ्रास्टक्चर की आवश्यकता पड़ेगी। हालांकि इस टेक्नोलॉज़ी को लेकर अभी भी शोध और विकास जारी है और यह यह तय होना बाकी है कि इसका कार्यान्वयन कब से शुरु होगा।