कई लोगों इस बात को मानते है कि कृषि करने के लिये पढ़ाई जरुरी नहीं हैं। लेकिन लोगों की यह सोच बिल्कुल गलत है। कौन कहता पढ़-लिखकर किसान नहीं बना जा सकता। जी हां पढ़-लिखकर भी कृषि किया जाता है। कई लोगों को लगता है यदि कोई बच्चा सैनिक स्कूल में पढ़ता है तो वह सिर्फ फोर्स में ही जायेगा, वह खेती भी के सकता है, ऐसा कोई नहीं सोचता। देश सेवा के लिए फौज में जाना ज़रूरी नहीं है। बग़ैर फौज में गए भी देश के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है। देश सेवा करने के लिये ऐसे कई रास्ते है जिसे अपनाकर हम दूसरों के हित में कार्य कर सकते हैं।
आज की कहानी एक ऐसे इन्सान की है जिन्होंने सैनिक स्कूल में पढ़ाई करने के बाद देश की सेवा करने के लिये फोर्स में न जाकर कृषि कार्य का चुनाव किया। इन्होंने अपनी योग्यता से तरबूज की खेती की है और आज 40 लाख की कमाई भी कर रहें हैं।
आइये जानते है उस इन्सान के बारें में।
रोहित (Rohit) बिहार के हाजीपुर (Hajipur) के रहनेवाले हैं। उनके पिता का नाम नंद किशोर सिंह (Nand Kishor Singh) है और वे एक किसान है। उन्होंने अपनी पढ़ाई सैनिक स्कूल से की है। रोहित ने सैनिक स्कूल में पढ़ने के बाद भी राष्ट्र की सेवा करने के लिये फौज का चुनाव ना कर खेती कार्य को चुना। रोहित ने कृषि कार्य करने के लिये आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया। वह पारंपरिक तरीके से खेती कर रहे किसानों के विचारधारा को बदलने की प्रयास मे जुटे हैं। रोहित अपने मेहनत और योग्यता की वजह से एक सीजन में 100 ट्रक से अधिक तरबूज की बिक्री कर रहें हैं। उनके एक सीजन की आमदनी 40 लाख से अधिक होती है।
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रोहित ने तरबूज (Watermelon) की खेती की सिंचाई करने के लिये ड्रिप इरिगेशन सिस्टम का प्रयोग करतें है। ड्रिप सिंचाई के इस्तेमाल से पानी के साथ-साथ खाद की बचत भी होती है। इस विधि में बूंद-बूंद करके वॉल्व, पाइप और नालियों आदि का प्रयोग कर के पौधों की जड़ों में पानी टपकाया जाता है। इससे फसलों को भरपूर फायदा मिलता है। ड्रिप सिंचाई विधि को कृषि विभाग भी काफी प्रोत्साहित कर रहा है तथा इसके लिये सब्सिडी भी मुहैया करा रहा है। रोहित अपने खेत मे तरबूज के साथ-साथ केला, खरबुजा और खीरा की भी फसल उगा रहें है। वे अपने खेतों में पूरी लगन से प्रतिदिन 8 से 10 घंटे कठिन परिश्रम करतें है।
जितना आवश्यक खेतों में कार्य करना है उतना ही आवश्यक मार्केटिंग भी है। रोहित इन दोनों बातों का खास ख्याल रखते हैं। रोहित के द्वारा उगाये गये तरबूज का स्वाद बिहार, झारखंड और उत्तरप्रदेश के साथ-साथ बांग्लादेश तक के भी लोग ले रहें हैं। रोहित का मानना है कि अभी तो यह शुरुआत है, आगे अभी बहुत कुछ करना बाकी है।
रोहित बताते है कि उनके पिता हमेशा चाहते थे कि वे एक अधिकारी बने। हिचाचल प्रदेश के सिजानपुर के स्कूल से 12वीं कक्षा की पढ़ाई करने के बाद वे एक वृद्धाश्रम खोलने का विचार कर रहें थे। परंतु हाजीपुर के बेरोजगार युवकों से मिलने के बाद रोहित ने अपना लक्ष्य बदल दिया। उन्होंने विचार किया कि पहले उनके लिये कुछ करना चाहिए।
रोहित के मुताबिक उनके पिता एक किसान होने के बावजूद भी रोहित के खेती शुरु करने से नाराज थे क्यूंकि वे पारंपरिक खेती करते थे औए उसमें उन्हें काफी नुकसान झेलना पड़ा था। रोहित ने बताया कि उन्होंने खेती के लिये आधुनिक और विज्ञानिक तरीके को अपनाया। कृषि के प्रति लोगों की परंपरागत विचारधारा को बदलना सरल नहीं है, लेकिन वे अपनी तरफ से ईमानदार कोशिश कर रहें हैं।
रोहित अपनी खेती से अच्छी कमाई के साथ-साथ अलग-अलग जगहों पर कैंप लगाकर युवाओं को भी खेती से जुड़ने के लिये प्रेरित भी कर रहें हैं। रोहित मुजफ्फरपुर, सारण और हाजीपुर में अब तक कई कैप लगा चुके है। उन्हें बिहार सरकार के तरफ से सहायता का आश्वासन दिया गया है। रोहित ने एग्री क्लिनिक भी जगह-जगह पर लगाना आरंभ कर दिया है। इससे किसानों को खेती मे हो रहे दिक्कतों को दुर करने की कोशिश की जाती है। वर्तमान में रोहित 150 एकड़ में खेती कर रहें हैं। रोहित की वजह से आज 200 युवाओं को रोजगार की प्राप्ति भी हुईं है।
रोहित आज सभी युवाओं के लिये प्रेरणास्रोत बन गये हैं। The Logically रोहित को उनके कार्य के लिए प्रशंसा करता है।