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बेकार पड़े फूलों से अगरबत्ती बनवा रहा है यह इंजीनियर, प्रदूषण रोकने के साथ ही लाखों की कमाई हो रही है

आज कल हमें कई ऐसे लोगों के बारे में जानने मिल रहा, जिन्होंने बीटेक, एमटेक, एमबीए जैसी पढ़ाई करके किसी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी ना कर अपना बिजनेस खुद शुरू कर रहे हैं। किसी की दिलचस्पी ऑर्गेनिक फार्मिंग में दिख रही है, तो कोई पुरानी चीजों का रिसाइकल कर उसे अपना कारोबार बना रहा है। जिससे कहीं ना कहीं वे वातावरण को भी शुद्ध कर रहे हैं।

कौन हैं रोहित प्रताप?

उन्हीं में से एक है हरियाणा के फरीदाबाद के रहने वाले रोहित प्रताप। रोहित इलेक्ट्रॉनिक्स में बीटेक कर एक कंपनी में क्वालिटी कंट्रोलर की पोस्ट पर कार्यरत थे। उनके पास और भी कई सारी कंपनियों के प्रस्ताव थे लेकिन फिर भी उन्होंने नई कंपनी के प्रस्ताव और अपनी जॉब को ठुकरा कर बासी फूलों से अगरबत्ती बनाने का कारोबार शुरू किया। उन्होंने अपने इस काम की शुरुआत पहाड़ी नगरी ऋषिकेश (उत्तराखंड) से की। उनका मानना है कि ऐसा करके तीर्थ स्थल को स्वच्छ रखा जा सकता है।

रोहित बताते हैं कि बचपन से ही उनका ऋषिकेश के गंगा घाट पर आना जाना रहा है। एक दिन जब उन्होंने देखा कि ऋषिकेश के त्रिवेणी घाट पर गंगा में पूजा के बासी फूल भारी मात्रा में फेके जा रहे हैं, तभी उनके दिमाग में उन फूलों का इस्तेमाल करते हुए पर्यावरण प्रदूषण घटाने की बात आई। उस समय रोहित एक बड़ी कंपनी में बेहतर जॉब कर रहे थे, लेकिन फिर भी उन्होंने सब कुछ छोड़कर अपना खुद का व्यवसाय शुरू करने की ठानी जिससे गंगा के प्रदूषण को कम किया जा सके और साथ ही तीर्थ स्थल को स्वच्छ रखा जा सके।


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ऐसे हुई शुरुआत

सबसे पहले उन्होंने फूलों से अगरबत्ती बनाने का प्रशिक्षण लिया। फिर इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए बजट का बंदोबस्त किया और अप्रैल 2019 में लगभग तीन लाख की लागत से ऋषिकेश के गंगा नगर में किराये पर मकान लेकर ‘ओडिनी प्रोडक्ट प्राइवेट लिमिटेड’ नाम की एक कंपनी शुरू कर दी। जिसमें खुश्बूदार अगरबत्तियों का प्रॉडक्शन किया जाने लगा। उनकी फैक्ट्री में पूजा के बासी फूलों की रिसाइकिलिंग होने लगी। इस काम में ऋषिकेश नगर निगम भी उनकी काफी मदद करता है। तीर्थ नगरी के बासी फूल बटोरने में ऋषिकेश नगर निगम ने भी उन्हे एक वाहन मुहैया कराया है।

रोहित कहते हैं कि तीर्थ यात्री और श्रद्धालु रोजाना भारी मात्रा में ऋषिकेश के मंदिरों में जो फूल चढ़ाते हैं, उन्हे या तो खुले में फेंक दिया जाता था या फिर गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता था। इससे तीर्थ नगरी में गंदगी के साथ ही गंगा में प्रदूषण भी बढ़ता जा रहा था। उनके काम से अब इस पर धीरे धीरे लगाम लग रही है। दर्जन भर मंदिरों के अलावा तीर्थ नगरी के पुष्प विक्रेता भी लगभग दो सौ किलो बासी फूल कच्चे माल के रूप में उनकी फैक्ट्री में रोजाना जमा कर जाते हैं।

फिर उनमें से उपयोगी फूलों की बारीकी से छंटनी कर के उनकी धुलाई कर सुखाने के बाद मशीन से पीसकर उनके पाउडर की परफ्यूमिंग आदि होती है। उसके बाद ‘नभ अगरबत्ती’ और ‘नभ धूप’ नाम से उनका प्रॉडक्ट तैयार किया जाता है। फिर उन्हें पूजा स्थलों तथा तीर्थ नगरी की दुकानों, आवासीय परिसरों में बेच दिया जाता है। बचे फूलों का भी इस्तेमाल कर, उसका वर्मी कम्पोस्ट बनाकर जैविक खेती करने वाले क्षेत्र के किसानों को बेच दिया जाता है। उनकी फैक्ट्री में फिलहाल चार महिलाओं सहित कुल छह लोग स्थायी रूप से काम कर रहे हैं। रोहित का कहना है कि आगे भी वे इसी तरह हरिद्वार, कोटद्वार, नैनीताल, गंगोत्री, यमुनोत्री तक अपने काम का विस्तार करना चाहते हैं। ताकि सारे तीर्थ स्थल स्वच्छ रहें और नदियाँ भी स्वच्छ रहें।

The Logically के तरफ से हम रोहित के प्रयास को शुभकामनाएं देते हैं।

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