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कभी खाने के लिए मोहताज़ थीं,लेकिन झोपड़ी से यूरोप तक पहुंचकर 22 हज़ार महिलाओं को भी जॉब दिया: Ruma Devi

अपने मेहनत और हिम्मत से दूसरों के लिए प्रेरणा बनना हमारे देश की महिलाएं बहुत अच्छे से जानती है। झोपड़ी में रहकर विदेश का सफर करना इतना आसान नहीं होता लेकिन मुश्किल हालातों से लड़ते हुए ऐसा करना संभव हो सकता है। इसे बात को साबित किया है, राजस्थान की  झोपड़ी में रहने वाली “रूमा देवी” ने।

अगर आपको रूमा की पहले और अभी की तस्वीर दिखाई जाये तो आप कहेंगे कि यह दो अलग-अलग महिलाएं हैं। लेकिन ऐसा कुछ नहीं है, यह दोनों इनकी ही तस्वीर है। एक तस्वीर ज़िंदगी के संघर्ष की कहानी बयां करती है तो दूसरी सफ़लता की कहानी ख़ुद में छिपाए हुए है।

रूमा का परिचय

रूमा (Ruma) राजस्थान (Rajasthan) के बाड़मेर जिले की निवासी हैं। इनका बचपन बहुत गरीबी में गुजरा है। जब वह थोड़ी बड़ी हुई तो उनका बाल विवाह कर दिया गया। फिर भी उन्होंने ज़िंदगी में संघर्ष करके कामयाबी हासिल की।

22 हजार महिलाओं को दे रही हैं रोजगार

रूमा (Ruma) कपड़े के निर्माण का कार्य करती हैं, इन्हे हस्तशिल्प बहुत अच्छे से आता है। वह चादर, कुर्ता, साड़ी और अन्य कपड़े तैयार करती है। वह बीकानेर, जैसलमेर और बाड़मेर के लगभग 75 गांव की 22 हज़ार औरतों को नौकरी दे रही हैं। इनके समुदाय द्वारा निर्मित कपड़े विदेशों में फैशन शो की प्रतिभागियों ने भी पहना है।

बचपन में ही मां गुजर गई

रुमा (Ruma) का जन्म सन् 1988 में राजस्थान (Rajasthan) के रावतसर जिले में हुआ। वह अपने माता-पिता के साथ झोपड़ी में रहती थी। वह जब 5 साल की थी तब उनकी मां का साया इनके सिर से उठ गया। इनके पिता ने अपने बच्चों के पालन पोषण के लिए दूसरी शादी की लेकिन रूमा अपने चाचा के साथ रहती थी।

8वीं कक्षा तक ही कर पाई पढ़ाई

रूमा जब थोड़ी बड़ी हुई तो उन्होंने स्कूल जाना शुरू किया। गांव में स्कूल 8वीं कक्षा तक ही थें तो उन्होंने 8वीं तक की ही पढ़ाई की है। जैसे कि हम सब जानते हैं कि राजस्थान में पानी की बहुत दिक्कत होती है जिस कारण लोगों को बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। रूमा अपने घर से 10 किलोमीटर दूर बैलगाड़ी की मदद से पानी लाने जाती थी।

रूमा (Ruma) की शादी

रूमा (Ruma) जब 17 साल की हुई तो उनकी शादी बाड़मेर जिले के मंगलबेरी गांव में हुआ। इनके पति का नाम टिकुराम है जो “नशा मुक्ति संस्थान” जोधपुर के सहयोगी के तौर पर काम कर रहें हैं।

2008 से शुरू किया काम

रूमा (Ruma) ने 2008 में “ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान” में काम करना शुरू किया। उन्होंने अपने काबिलियत के दम पर वहां सबका दिल जीत लिया। 2010 में उसी संस्थान में उन्होंने अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला। इस संस्था में लगभग 22 हजार महिलाएं कार्य करती हैं। ये महिलाएं हस्तशिल्प उत्पाद निर्माण का कार्य करती हैं। इस संस्था की सालाना कमाई करोड़ों रुपये हैं।

Credit-CNN

मिला है “नारी शक्ति” पुरस्कार

रूमा (Ruma) ने मेहनत और काबिलियत के दम पर जो किया है वह सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा है। इन्हें 2018 में ‘नारी शक्ति’ पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। रूमा फरवरी 2020 में अमेरिका में हुए “दो दिवसीय हावर्ड इंडिया कांफ्रेस” में अपने हस्तशिल्प का जलवा बिखेर चुकी हैं, साथ ही यह ‘कौन बनेगा करोड़पति’ का भी हिस्सा बन चुकी हैं।

यूरोप की यात्रा

रूमा को 2016-2017 में जर्मनी में हुए ‘ट्रेड फेयर’ में निःशुल्क आमंत्रित किया गया था। वहां से लौटने के बाद 31 जुलाई 2020 को उन्होंने अपने फेसबुक फ्रेंड्स के साथ वहां की सभी फोटो शेयर की। साथ ही 10 साल पहले झोपड़ी में रहने वाली फोटो भी शेयर करते हुए कहा, “ज़िंदगी में संघर्ष करो, एक ना एक दिन सफलता ज़रूर मिलेगी।”

सोशल साइट पर बताती हैं, हस्तशिल्प उत्पादों के बारे में

रूमा (Ruma) के फेसबुक पेज को 1 लाख 64 हज़ार वक्तियों नें लाईक किया है साथ ही ट्विटर पर उनके 6 हजार 500 व्यक्ति फॉलोवर्स हैं। वह अपने उत्पादों के बारे में सभी दोस्तों को बताती हैं।

रूमा के उपर लिखी गई किताब

रूमा के हौसले और हुनर को देखते हुए निधि जैन ने एक किताब लिखी है , जिस किताब का नाम “हौसले का हुनर” है। इस किताब में निधि नें इनके बचपन के संघर्ष के साथ उनकी सफलता का वर्णन किया है। The Logically रूमा की कार्यों की सराहना करते हुए उन्हें सलाम करता है।

Khushboo loves to read and write on different issues. She hails from rural Bihar and interacting with different girls on their basic problems. In pursuit of learning stories of mankind , she talks to different people and bring their stories to mainstream.

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