हर तरफ सिर्फ कोरोना का कहर ही बरस रहा है। हर तरफ इस बिमारी ने हाहाकार मचाकर रखा है। ना जाने कई लोगों की जान चली गई और कई लोग जिंदगी और मौत से जुझ रहे हैं। ग्राउंड लेवल पर स्थिति इस कदर बदतर हो गई है कि हॉस्पिटल में जगह नहीं बची है और शव के अन्तिम संस्कार के लिए दो गज ज़मीन भी नसीब नहीं हो रही है। इसके अलावा यह बिमारी लोगों की जान लेने के साथ ही रिश्तों को भी निगल रही है।
एक तरफ जहां Covid-19 के वजह से हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर पूरी तरह से कोलेप्सड नज़र आ रहा है, वहीं दूसरी ओर मददगारों की एक फौज सामने आई है जो जाति, धर्म, गरीबी, अमीरी से ऊपर उठकर लोगों के प्रति इंसानियत दिखा रहे हैं।
मददगारों की इस फौज में दो नाम मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के दानिश और सद्दाम का है। वे दोनों ऐसे शवों का अन्तिम संस्कार कर रहे हैं, जिनके परिजनों ने कोरोना के वजह से दाह-संस्कार करने से इंकार कर देते हैं या जो सक्षम नहीं हैं।
अभी तक 60 शवों का अंतिम संस्कार करने वाले दानिश (Danish) और सद्दाम (Saddam) का कहना है कि इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं है। कोरोना के दौरान हो रही मौत रिश्तों को भी निगल रही है। कुछ लोग डर से तो कुछ लोग मजबूरी में शवों का दाह संस्कार नहीं कर पा रहे हैं।
आपको बता दें कि इन दिनों रमजान का महीना चल रहा है और ये दोनों युवकों ने रोजा रखा हुआ है। रोज़ा के बावजूद भी वे दोनों युवक पिछ्ले कुछ दिनों से लगातार अस्पतालों और श्मशानों का चक्कर लगा रहे हैं। उन दोनों युवकों का मानना है कि इससे अधिक पुण्य और कुछ नहीं है।
वाकई दोनों युवक यह साबित कर रहे हैं कि धर्म से बड़ा इंसानियत है।
The Logically सद्दाम और दानिश के कार्यों की प्रसंशा करता है और इसके लिए उन्हें शत-शत नमन करता है।
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