अगर आगे बढ़ने का जुनून हो तो कोई भी लक्ष्य नामुमकिन नहीं होता। यह जरूरी नहीं कि केवल बड़े घर के बच्चे ही टैलेंटेड हो सकते हैं, हमारे घर काम करने आने वाली नौकरानी के बच्चे भी टैलेंटेड हो सकते हैं। इसके अलावा हमारे ड्राइवर का बेटा आगे चल कर हवाई जहाज भी उड़ा सकता है।
हमारे समाज में एक ऐसी धारणा बन चुकी हैं कि हर आदमी की अपनी एक क्षमता है, एक जगह है, जिससे वह कभी बाहर नहीं निकल सकता। हलांकि इन सबसे बाहर निकल कर, सभी मुश्किलों से लड़ कर खुद को साबित करती हैं सागु जैसी बेटियां। – Sagu from Madhya Pradesh, has made a place in the state’s hockey team by fighting all odds.
सागु ने हॉकी टीम में बनाई अपनी जगह
सागु ने जिस प्रकार गरीबी से तथा समाज से लड़कर मध्यप्रदेश राज्य की हॉकी टीम में (Hocky Team) अपनी जगह बनाई वह सबके लिए प्रेरणा बन चुकी हैं। जो लोग हालात को दोष देकर प्रयास करना छोड़ देते हैं उनके लिए सागु किसी प्रेरणा से कम नहीं हैं। आज हम आपको सागु के संघर्ष भरे जीवन के बारे में बताएंगे, जिससे हम सब को सीख लेना चाहिए। मध्यप्रदेश (Madhyapradesh) के मंदसौर जिले की रहने वाली सागु का पूरा नाम सागु डाबर (Sagu Dabar) हैं। उन्हें मध्यप्रदेश की हॉकी (Hocky) टीम में जगह मिली हैं। पिछले साल रांची (Ranchi) में हुई जूनियर हॉकी चैंपियनशिप (Junior Hockey Championship) में सागु प्रदेश टीम का हिस्सा बनकर अपना खेल दुनिया के सामने लाई।
7 राष्ट्रीय मैचों में हिस्सा ले चुकी हैं
सागु हॉकी चैंपियनशिप के लिए हिमाचल और ओडिशा में प्रदेश का नेतृत्व कर चुकी हैं। सागु अबतक 7 राष्ट्रीय मैचों में हिस्सा ले चुकी हैं। वह देश में केरल, असम, रांची, भोपाल में नेशनल मैच का हिस्सा बन चुकी हैं। अब सागु का लक्ष्य हॉकी विश्वकप में भारतीय हॉकी टीम का हिस्सा बनकर देश के लिए मेडल जीतना है। सागु के यहां तक पहुंचना बिल्कुल आसान नहीं था। वह शहर के पक्के मकान में नहीं बल्कि मंदसौर (Mandsaur) की झुग्गी बस्ती में रहा करती थीं। आर्थिक स्थिति अच्छी ना होने के वजह से सभी भाई-बहनों के साथ वह भी स्कूल के बाद अपनी मां के साथ काम में हाथ बंटाती थी।
पिता के मौत के बाद आर्थिक मुश्किलें बढ़ गईं
सागु के पिता भुवान डाबर की मौत के बाद मेघा डाबर ही परिवार की जिम्मेदारी ली। सागु पांच बहनों और तीन भाइयों में सबसे छोटी हैं। पिता के जाने के बाद बच्चों ने भी मां का काम में हाथ बंटाया। सागु बताती हैं कि मैं छोटी थी इसलिए मैं मां के साथ घर-घर जाया करती थी। मां जूठे बर्तन धोती और मैं उन्हें पोंछकर रखती जाती तथा वह झाडू लगाती तो मैं पोछा लगाने में उनकी मदद करती थी। इस दौरान पढाई भी जारी रहा। दो बहनों की शादी हो गई हैं, जबकि कुछ साल पहले एक भाई की करंट लगने से मौत हो गई।
यह भी पढ़ें :- मां के अपमान ने अंदर तक झकझोर दिया फिर बेटी ने अफसर बनने की ठानी, तैयारी की और बनी IPS अधिकारी
7वीं कक्षा में पहली बार देखी हॉकी
भाई की मौत से मां बहुत टूट गईं। ऐसे में सागु पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देने लगी क्योंकि वह कोई काम करके मां को खुशीयां देना चाहती थी। मां ने शहर के महारानी लक्ष्मीबाई शासकीय स्कूल में सागु का दाखिला दिलवा दिया। सागु के टीचर्स बताते हैं कि वह पढ़ाई में औसत स्टूडेंट रही, लेकिन उसका व्यवहार स्कूल में बहुत अच्छा था। सागु कक्षा 7वीं में पहुंचने के बाद अपने स्कूल में अपनी सहेलियों को हॉकी खेलते देखा। यह पहला बार था जब सागु हॉकी देख रही थी। – Sagu from Madhya Pradesh, has made a place in the state’s hockey team by fighting all odds.
पहली बार हॉकी देख कर किया खेलने का फैसला
एक इंटरव्यू के दौरान सागु कहती हैं कि जब मैंने हॉकी को पहली बार हाथ में लिया तो ऐसा लगा कि यह सबसे ताकतवर चीज है। मुझे पढ़ना था पर उस दिन के बाद से मैं हॉकी खेलना चाहती थी, लेकिन स्कूल में हॉकी उन्हीं बच्चों को मिलती थी जो टीम का हिस्सा हैं और सागु को हॉकी खेलना आता ही नहीं था। उसने अपनी मां से कहा कि वह हॉकी खेलना चाहती है, लेकिन मां के पास इतने पैसे नहीं थे। मेघा बताती हैं कि सागु बहुत जिद कर रही थी इसलिए मैंने उसे एक मोटी टहनी लाकर दी।
एक टहनी से हॉकी खेलने की शुरूआत
मेघा और सागु ने उस टहनी को साफ किया और उसे खेलने लायक बना दिया। उसके बाद वह स्कूल में उसी टहनी से पत्थरों को मारती। कुछ समय बाद उसने रद्दी कपडों से एक बॉल बनाया और उससे खेलने लगी। मेघा सागु को देख बहुत खुश थी क्योंकि असे एक नया लक्ष्य मिल गया था। सागु रोज सुबह 6 बजे उठती थी 7-8 बजे तक तीन गाड़ियों की सफाई करती। उसके बाद वह अपनी मां के काम में मदद करती, स्कूल जाती, शाम को स्कूल से आकर घर का काम करती और इस बीच उसे जब भी समय मिलता वह हॉकी की प्रैक्टिस करती थी।
गाड़ी की सफाई कर जुटाती पढाई का खर्च
सागु को गाड़ियों की सफाई करके 1500 रुपए महीना मिलता था, जिससे वह खुद ही अपनी पढ़ाई का खर्च उठाने लगी। सागु की मेहनत देखकर उसे स्कूल की हॉकी टीम में शामिल कर लिया गया। उसके बाद सागु हॉकी स्कूल में भी खेलती और घर पर भी प्रैक्टिस करती थी। सागु की मां मेघा अब अपनी बेटी की कामयाबी से बहुत खुश हैं। वह कहती हैं कि उनकी बेटी ने वो कर दिखाया है जो उसने कहा था। सागु पैसों के आभाव में कभी मेहनत करना बंद नहीं किया। मोबाइल में बैलेंस ना होने के बावजूद भी वह बना किसी डर के 3 किमी पैदल चलकर हॉकी की प्रैक्टिस करने जाती थी।
अपने खेल से टीम को दिलाई जीत
आपको बता दें कि एक भी दिन ऐसा नहीं हुआ, जब सागु ने हॉकी की प्रैक्टिस मिस की हो। वह कभी पैदल कभी लोगों से लिफ्ट मांगकर, तो कभी बस से लेकिन वह मैदान पर पहुंचती जरूर थी। सागु के स्कूल कोच उसकी मेहनत से बहुत खुश थे। स्कूल स्तर पर सागु ने बहुत से मैच खेले और टीम को जीत भी दिलाई। उसके बाद हॉकी कोच अविनाश उपाध्याय और रवि कोपरगांवकर की नजर उस पर पड़ी। उन्होंने सागु की प्रतिभा को और बेहतर करते हुए, उसे जिला स्तर से राज्य और राज्य से राष्ट्रीय स्तर पर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने का मौका दिए।
खेलने के साथ-साथ पढ़ाई भी रखी जारी
सागु बताती हैं कि टूर्नामेंट में जाने के लिए मां लोगों से उधार पैसा मांगती थीं, जिन घरों में वह काम करती थीं वहां से कभी खाना, कभी पैसे, तो कभी कपड़े मिल जाते थे। इसके अलावा कुछ लोगों पहनने के लिए जूते दिए, पुराने बैग देते थे। जब सागु ने बहुत से मैडल जीत लिए तब जिला हॉकी एसोसिएशन ने सागु की मदद करना शुरू किया। हलांकि बहुत सी जरूरतें सागु और उसकी मां खुद पूरी करती हैं। 5 साल से हॉकी खेल रही सागु अभी कक्षा 12वीं में है। वह खेलने के साथ ही पढ़ भी रही हैं। – Sagu from Madhya Pradesh, has made a place in the state’s hockey team by fighting all odds.
सकारात्मक कहानियों को Youtube पर देखने के लिए हमारे चैनल को यहाँ सब्सक्राइब करें।