21वीं सदी के वर्तमान दौर में भी महिलाओं की माहवारी जो की एक प्राकृतिक है, समाज में उसे एक अलग दृष्टि से देखा जाता है। हम कह सकते हैं कि उसे अछूत भी माना जाता है। जिसके कारण आज के जमाने में भी महिलाओं को अपने मासिक धर्म के बारें में बात करने में शर्म आती है। ज्यादतर महिलाएं आज भी मासिक चक्र के समय पुराने कपड़ो का प्रयोग करती है जिससे तरह-तरह की बिमारियां हो रही हैं। आज की कहानी चन्द ऐसी लड़कियों की जो समाज में माहवारी को लेकर सजगता से जागरूकता फैला रही हैं…
कुछ औरतें ज्ञान के अभाव में तो कुछ महिलाएं पैसे के कमी के कारण या फिर सैनिटरी पैड उप्लब्ध नहीं होने के कारण फटे पुराने कपड़े को इस्तेमाल मे लाती हैं, जो कि बहुत हानिकारक है। पीरियड्स के दौरान साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखने की वजह से महिलाओं में कैंसर की बिमारी भी अत्यधिक तेजी से बढ रही है। Periods के समय कपड़े का उपयोग प्राणघातक सिद्ध हो सकता है। इस बारें में जागरुकता फैलाने के लिये एक “पैडमैन” नामक फिल्म भी आई थी।
कई लोग 1 रुपये को कम आंकते हैं। लेकिन क्या कभी सोचा है किसी का 1 रुपया भी किसी की बहुत बड़ी मदद कर सकता है। आज हम आपको 1 रुपये के महत्व के बारे में बताने जा रहें है जिससे कितनों की जिंदगियों को सुरक्षित रखा जा सकता है। आपका 1 रुपया भी बहुत लोगो की मदद कर सकता है। स्वेच्छा से किया गया 1 रुपया का दान कईयों की जिंदगियां बदल सकता है।
प्रत्येक दिन अपनी मर्जी से 1 रुपया दिया हुआ दान आज कई लडकियों की मदद कर रहा है। बिहार के नवादा जिले की युवा लडकियों ने प्रतिदिन 1 रूपया जमा कर के मासिक धर्म (Periods) के मूलभूत आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर एक “सैनिटरी पैड बैंक” खोला है।
प्रत्येक दिन हर लड़की 1 रूपया जमा करती है जिसका प्रयोग महिलाओं की जरूरतों के लिए सैनिटरी पैड को खरीदने में किया जाता है। कई लडकियों ने इस बात पर गौर किया और देखा कि पैसे के कमी के वजह से अनेकों लड़कियां पीरियड्स के दौरान पैड नहीं खरीद पाती जिसके कारण उन्हें मैले व फटे-पुराने कपड़ो का उपयोग करना पड़ता है।
इन्टरनेशनल डे ऑफ गर्ल चाइल्ड जो 11 अक्तूबर को मनाया जाता है, के अवसर पर बताया गया कि पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया द्वारा शुरू किया गया शो “मै कुछ भी कर सकती हूं” ने यह कार्य करने के लिए प्रेरित किया। इसमें परिवार नियोजन, बाल-विवाह, बाल-गर्भधारण, घरेलू हिंसा, और किशोर प्रजनन और यौन स्वास्थ्य मुद्दों को संबोधित किया गया है।
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अनु कुमारी अमावा गांव की युवा नेता है। उनका कहना है कि, “जिसके भी पास पैसे नहीं है, पैसों की कमी है उनकी सहायता करने के लिये प्रतिदिन हम सभी 1 रुपया इक्ट्टा करते हैं। अर्थात हर लड़की महीने में 30 रुपए जमा करती है, जिससे सैनिटरी पैड खरीद कर गरीब लडकियों में बांट दिया जाता है।”
नवादा के पूर्व सिविल सर्जन डॉ. श्रीनाथ प्रसाद ने कहा कि पहले के समय में लड़कियां खुद के लिए कुछ बोलने में सक्षम नहीं थी। उन्हें अपने शरीर में होते शारीरिक परिवर्तनों के बारें में समझ नहीं होती थी, वे शारीरिक परिवर्तनो के बारें में अनजान थी। उन्हें सैनिटरी पैड के बारें में जानकारी प्राप्त नहीं थी, लेकिन अब उन्होंने एक सैनिटरी पैड बैंक खोला है। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि “मै कुछ भी कर सकती हूं” शो कितना प्रभावशाली सिद्ध हुआ है।
इतना ही नहीं ये सभी लड़कियां अब तक वर्जित रहे कई महत्वपूर्ण विषयों पर भी संवाद कर रही हैं। जैसे में परिवार नियोजन और भी बहुत सारे। हरदिया की रहनेवाली मौसमी कुमारी जिनकी उम्र 17 वर्ष है उनका कहना है कि, अब गावों का दौरा किया जाता है तथा महिलाओं को अंतरा इन्जेक्शन, कॉपर-टी, कंडोम जैसे विकल्पों के बारें में बताया जाता है।
युवाओं के लिए अब स्वास्थ्य क्लिनिक खोलने की भी तैयारी हो रही है। लडकियों द्वारा किये गये प्रयासों के बारें में हरदिया के पूर्व मुखिया भोला प्रसाद का कहना है कि, “अब समाज बदल रहा है, अब लड़के और लड़की में कोई फर्क नहीं है।”
पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया के निर्देशक पूनम मुटरेजा ने बताया कि, “मुझे खुशी है कि यह शो युवा लडकियों के जीवन को प्रभावित कर रहा है और यही हमारा लक्ष्य है। हमने डॉ स्नेहा माथुर जैसे प्रेरक चरित्र के माध्यम से सेक्स, हिंसा, लिंग भेदभाव, स्वच्छता, परिवार नियोजन, बाल-विवाह, मानसिक स्वास्थ्य नशीली दवाओं के दुरुपयोग आदि जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर बातचीत की।”
इस शो के निर्माता फिरोज अब्बास खान का कहना है कि, “बहुत खुशी हो रही है यह शो युवा, किशोर लडकियों के लिए एक सशक्त नारा बन गया है।”
The Logically लड़कियों द्वारा स्वेच्छा से दान किए गए 1 रुपये से शुरु किए गए सैनिटरी पैड बैंक के लिए तथा इसके लिए जागरुकता फैलाने के लिए उन सभी लड़कियों को नमन करता है। उनलोगों की यह बेहतर पहल कईयों की जिंदगियां बदल रही है।
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