3 साल का होने के बाद भी जब मेरा बच्चा अच्छे से चल नही पा रहा था , छोटे-छोटे शब्दों को बोल नही पा रहा था , तब मुझे उसकी फ़िक्र होने लगी । डॉक्टर से मिलने पर पता चला कि रणविजय ,ऑटिज़्म नामक बीमारी से लड़ रहा है।
32 वर्ष की सराह एक MBA ग्रेजुएट हैं और 4 साल के बच्चे की माँ हैं । MBA करने के बाद इन्होंने 6 साल अलग-अलग प्राइवेट कंपनी में जॉब किया और फिर एक आर्मी ऑफिसर से शादी होने के बाद परिवारिक ज़िन्दगी की तरफ बढ़ गईं। ज़िन्दगी काफ़ी बेहतर चल रही थी । 2016 में एक बच्चे की माँ बनने के बाद सराह बेहद खुश थीं और अपने बच्चे को हर वो सुख देने की क़वायद कर रही थीं , जो एक माँ अपने बच्चे को देती हैं।
बच्चे का एक अनजान बीमारी से गुजरना
ढाई साल का होने के बाद भी सराह ने अपने बच्चे में वह बदलाव नहीं देखा जो बदलाव एक आम बच्चे में दिखने लगता है। बाकी बच्चे जब 1 साल के उम्र से ही चलना-फिरना शुरु कर देते हैं वही इनके बच्चे ने 2 साल के बाद अपना पहला कदम बढ़ाया। शुरुआती दिनों में सराह को यह लगा की ज्यादा वजन होने के कारण शायद बच्चा का देरी से चलना आम बात हो सकता है । लेकिन जब इन्होंने रणविजय को गौर से देखा तब इन्हें पता चला की रणविजय को छोटे छोटे शब्दों को बोलने में भी कठिनाई हो रही थी।
डॉक्टर से मिलने के बाद सराह को यह पता चला की इनका बेटा ऑटिज्म नमक बीमारी से ग्रस्त है।। ऑटिज्म इन के लिए एक नई शब्द था और इन्हें यह भी नही पता था कि इस तरीके की कोई बीमारी होती है।
ऑटिज्म क्या है
ऑटिज्म एक ऐसा दौर है जिसमें बच्चा खुद की दुनिया में खोया रहता है । उसे समाज के दूसरे पहलुओं से सरोकार नहीं होता। वह ना ही किसी से मिलना चाहता है और ना ही किसी से बात करना चाहता है। यहां तक की बच्चा दूसरे बच्चों के साथ खेलना भी पसंद नहीं करता वह अपनी खुद की दुनिया में गुम रहता है। दूसरे बच्चों जैसा उसे सामान्य खिलौने पसंद नहीं होते हैं वाह किसी गोल चक्कर या फिर किसी विशेष प्रकार के खिलौने के साथ अपना पूरा दिन बिता देता है। इस दौर में बच्चे का सामान्य विकास रुक जाता है और उसे उम्र का हर पड़ाव पार करने में बहुत वक्त लगता है। छोटे-छोटे बदलाव जैसे , कम शरारत करना या फिर किसी भी बात को लेकर कम रेस्पॉन्सिव होना , उसके लक्षण हो सकते हैं।
ऑटिज्म का इलाज क्या है
साराह ने अपने बच्चे को ठीक करने के लिए डॉक्टर की सलाह ली लेकिन इन बच्चों को ट्रीट करने में एक माँ की भूमिका बहुत अधिक बढ़ जाती है । ऐसे बच्चों का विशेष ख्याल रखना पड़ता है । यहां तक कि बच्चा खुद से खाना मांगने में भी असमर्थ होता है वह छोटी-छोटी बातों को बता नहीं पाएगा ।उस समय मां को समझना पड़ता है कि बच्चे की जरूरत क्या है। इस प्रकार की बीमारी का इलाज काफी दिनों तक चलता है संभवत इसका इलाज 10 साल भी चल सकता है और कुछ केसेस में पूरी जिंदगी भी देखभाल करनी पड़ती है।
लेकिन माँ के प्रयासों से इन बच्चों की जिंदगी बेहतर बनाई जा सकती है साराह ने डॉक्टर की मदद से एक डाइट चार्ट प्लान किया और कुछ थेरेपिस्ट की मदद लेने लगे जिससे बच्चे की मसल्स पावर के साथ साथ दिमागी हालत को भी बेहतर बनाया जा सके।
बतौर माँ , ऐसे बच्चों को संभालना बहुत मुश्किल हो जाता है । समाज से जहां उम्मीद और प्रेम की जरूरत होती है , वही समाज इन बच्चों के बारे में ताना सुनाकर माँ को कमज़ोर करने का काम करता है । यहां तक कि समाज के लोग गलत नजरिया रखते हैं और बच्चे को पागल करार भी दे देते हैं । लेकिन सराह ने हार नही मानी और अपने साथ ही उनलोगों को भी जोड़ने का प्लान किया जिनके बच्चे आटिज्म के कारण एक नॉर्मल ज़िन्दगी से दूर हैं।
दूसरी औरतों को जोड़ना
सराह ने अपने दोस्तों की मदद से एक पूरा सिलेबस तैयार किया जिससे वह उन लोगों की मदद कर पाए जिनके बच्चे को इस तरीके की बीमारी है। अभी के अनुभवों के आधार पर सराह ज़िक्र करती हैं कि ऐसी बीमारी में हर महीने मोटा रकम खर्च हो जाता है जो एक साधारण परिवार के लिए नामुमकिन है ।
इन बातों को ध्यान मे रखते हुए सराह ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक पूरा सिलेबस तैयार किया है , जिससे घर बैठे इन बच्चों की मदद की जा सके । इस वर्कशीट में , बच्चे के डाइट , एक्सरसाइज और थेरेपी से सम्बंधित पूरी जानकारी है , जिसकी मदद से वैसे बच्चों को ठीक किया जा सकता है। यहां तक कि इस काम को पूरा करने में कुछ एक्सपर्ट डॉक्टर्स की टीम ने भी साथ दिया है।
अगर आपकी नजर में ऐसा कोई बच्चा हो जिसको ऐसे सिंप्टोम्स दिखाई दे रहे हो तो आप भी साराह से कांटेक्ट कर सकते हैं। इनकी टीम मदद के लिए हमेशा तैयार है । निचे दिए लिंक से आप इनकी टीम से संपर्क कर सकते हैं !
नकारात्मकता को दबाकर अच्छाई और उम्मीद की ओर कूच करने वाली मातृत्व को Logically नमन करता है और रणविजय के सकुशल होने की कामना करता है।
साथ ही Logically अपने पाठकों से यह अपील करता है कि आपके नज़र में अगर कोई बच्चा इस तरह की बीमारी से लड़ रहा है तो आप बेझिझक साराह से सम्पर्क करें।
Mera beta Bhi autism patient tha Bhi or hai Bhi .He is 15years old Mujhe to first month may Pata chal gaya tha Mein aap say Baat Karna chahti hun please contact me my mail I’d rashmi.purav@gmail.com