आजकल कई लोग परम्परागत कार्यों को अपनाकर उसी क्षेत्र में आगे बढ़ते हैं लेकिन वहीं कई लोग अपने खानदानी व परम्परागत कार्यों को छोड़कर कोई दूसरा कार्य करते हैं और उसी में सफलता हासिल करते हैं। आज की हमारी यह कहानी उनलोगों के लिए प्रेरणादायी है जो अपने परम्परागत कार्य को छोड़कर कुछ अलग करना चाहते हैं।
आज हम आपको एक ऐसी ही कहानी के बारे में बताएंगे जिनका पूरा परिवार एक झोपड़ी में रहता था और इनके पिता सड़कों के सिग्नल पर फूल बेचते थे और उसी से अपने बच्चे की परवरिश करते थे। बच्चे की पढ़ाई को देखकर परिवार वालों ने उनको बहुत ताने मारते थे परंतु उन लोगों की बात को अनदेखा कर के अपनी बेटी की पढ़ाई अच्छे से करवाए और आज उनकी बेटी अच्छे से पढ़ाई करने के बाद हुआ आगे की पढ़ाई करने के लिए अमेरिका जा रही हैं।
सरिता माली( Sarita Mali)
सरिता माली (Sarita Mali) महाराष्ट्र (Maharashtra) के मुंबई में स्लम एरिया (Slum Area) घाटकोपर इष्ट (Ghatkopar isht) में रहती थी। इनका परिवार काफी गरीबी से जूझ रहा था। यह लोग एक छोटी सी झुग्गी-झोपड़ी में रहता था। इनके पिता सड़कों के सिग्नल पर फूल बेचते थे और मां पिता के कामों में हाथ बटाया करती थी। सरिता बताती हैं कि हम लोग चार भाई-बहन हैं। मैंने दसवीं की पढ़ाई मुंबई के सरकारी स्कूल से की थी। जब मेरे पिता सिग्नल पर फूल बेचने जाते थे तो वहां आने जाने वाले अमीर लोग हमारे पिता को काफी अजीब-अजीब सी बातें बोलते थे और उन्हें दुतकारते थे।
मेरे परिवार वालों ने भी हम लोगों को काफी ताना मारते थे। उन लोगों की बातें को सुनकर काफी बुरा सा लगता था। जब मेरी पिता शाम में घर वापस आते थे तो उनका चेहरा काफी उदास रहता था और हम सभी चारों भाई-बहन से बोलते थे कि तुम लोग मन लगाकर पढ़ाई किया करो जितना पढ़ना चाहते हो पढ़ो और आगे चलकर बड़ा आदमी बनो। मेरे पिता हम चार भाइयों-बहनों को इसलिए समझाते थे कि जो हमारे साथ हो रहा है वह आगे चलकर हमारे बच्चों को साथ ना हो इसलिए वह हम लोगों को पढ़ाने पर ज्यादा ध्यान देते थे।
पिता की बातें बना मेरे लिए बूस्टर डोज
सरिता (Sarita Mali) कहती है कि मेरे पिता हमेशा से हम लोगों को पढ़ाई के लिए कहते रहते थे। वह हम लोगों की पढ़ाई के मामले में कोई भी कसर नहीं छोड़ते थे जिसकी वजह से आज हमने उस मुकाम को हासिल किया है। जब हम मुंबई में थे तब वहां हमने दसवीं तक की पढ़ाई मुंबई के सरकारी स्कूल से की थी परंतु जब मैं पांचवी क्लास में थी तब हमें हिंदी में काफी रुचि आने लगी थी जिसकी वजह से हम हिंदी साहित्य से जुड़ गई।
इसके बाद मेरी पहली और सबसे पसंदीदा कविता महादेवी वर्मा की “मैं नारी भरी दुख की बदली” थी। महादेवी वर्मा की इस कविता को हम खुद को जोड़ पाती थी। दसवीं की परीक्षा पास कर लेने के बाद हमने ग्यारहवीं में नामांकन करवाया जिसने हमने इंग्लिश मीडियम से पढ़ाई करने की शुरुआत की। इसके बाद हमने बारहवीं में हिंदी विषय को चुना और इसमें हमने काफी अच्छे नंबर लाकर टॉप किया। पढाई करने के साथ-साथ मैं स्टोरी राइटिंग, निबंध लिखना, डिबेट, ड्रामा जैसे अनेकों प्रकार के कंपटीशन की तैयारी भी किया करती थी।
साल 2013 में मुंबई के एक अखबार में बेस्ट स्पीकर चुनी गई। हम अपनी पढ़ाई मन लगाकर के और मेहनत के साथ करते थे क्योंकि हमने ठान लिया था कि मेरे पिता का जो अपमान होता है उसे हम अपनी मेहनत और कामयाबी से लोगों का सर नीचा कर देंगे। इसके साथ-साथ हम ग्रेजुएशन में गोल्ड मेडल लिस्ट भी रह चुकी हूं।
सरिता (Sarita Mali) बताती है कि हम बहुत गरीब थे परंतु मेरे पिता हम लोगों को गरीबी का एहसास कभी होने नहीं दिया हमने पढ़ने के लिए जितना भी चाहा उन्होंने हमें पढ़ाया। हम साल 2014 में जेएनयू (जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी) में एमए मैं नामांकन करवाया। अपनी मेहनत और काबिलियत से हमने एमए में टॉप थ्री की। जेएनयू मेरे लिए सफलता की सीढ़ी बन गई और मेरी जिंदगी की एक नई शुरुआत यही से होने लगी। आज इसी संस्था में हमें एक अलग पहचान दिया और हमें एक बेहतर इंसान बनाया।
एमए पूरा होने के बाद साल 2016 में एमफिल पीएचडी टेस्ट दिया जिसमें हमने पहला रैंक हासिल किया फिर साल 2016 में एमफिल में नामांकन करवाया और हमने हिंदी मराठी उपन्यासों में आदिवासी समाज की पहाडी की। इन सभी चीजो में मुझे वहां के प्रोफेसर देवेंद्र चौबे ने मेरी कॉफी सहायता की। साल 2018 में मेरी एमफिल की पढ़ाई पूरी हो गई और अब हम पीएचडी की पढ़ाई कर रही हूं। और मैंने स्त्री भक्त का कवियित्री पर एक रिसर्च भी की हूं। इस जेएनयू यूनिवर्सिटी आना मेरे लिए जिंदगी का सबसे सफल कदम रहा।
लोगों ने मारे ताने
सरिता बताती है कि जब मैं दिल्ली पढ़ाई करने के लिए गई थी तो लोग मेरे पापा को बहुत से ताने मारते थे लोग मेरे पापा को यह कहते थे कि तुम्हारी बेटी दिल्ली में कौन सी पढ़ाई कर रही है वह हमें अच्छी तरह से मालूम है। इसे साथ-साथ क्या भी बोलते थे कि तुम्हारी बेटी सांवली रंग की है उसे इतना मत पढ़ाया करो ज्यादा पढ़ाने लिखाने से तुम्हें कोई ज्यादा पढ़ा लिखा लड़का नहीं मिलेगा। तुम सिग्नल पर फूल बेचते हो जिससे तुम्हारा घर परिवार चलता है इसके साथ-साथ तुम ऊपर से अपनी बेटी को पढ़ाई करवाने में इतना पैसा खर्च क्यों कर रहे हो।
लोगों की इन सभी बातों को सुनकर के काफी अजीब सा लगता था परंतु मेरे पापा ने उन सभी लोगों की बातों को हंसते हुए सुन लिया करते थे और बाद में उन बातों को भुला दिया करते थे और हम लोगों को समझाते थे कि तुम लोगों को जितना पढ़ाई करना है तुम लोग पढ़ो और आगे बढ़ते रहो। आज हमने उन सभी लोगों की जुबान बंद कर दी जिन्होंने यह सोचकर मेरे पापा को बोला था कि तुम्हारी बेटी कुछ नहीं कर सकती है। आज लोग हमें अमेरिका जाकर वहां पढाई करने के बारे में सुनकर उनकी बोलती बंद हो गई है।
पीएचडी करने जा रही अमेरिका
सरिता बताती हैं कि हमने जेएनयू (JNU) से पीएचडी (PHD) कर रही थी जो अब खत्म होने वाली है इसके साथ-साथ मुझे अमेरिका (America) में दो यूनिवर्सिटी एक यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफ़ोर्निया और दूसरा यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन में चुना गया है। जिसमें हमने यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफ़ोर्निया को चयनित की हूं। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया को मैंने इसलिए चुना है कि मुझे इस यूनिवर्सिटी से मेरी लिस्ट और अकादमिक रिकॉर्ड पर अमेरिका के सबसे प्रतिष्ठित फेलोशिप ऐसे एक चांसलर फेलोशिप दी है।
आज मुझे खुद पर काफी गौरवान्वित महसूस हो रहा है कि मेरी मेहनत और कामयाबी के बलबूते पर आज मैं पढ़ाई करने के लिए अमेरिका जा रही हूं। हमारा यह सफर काफी आसान नहीं था इसमें काफी मुश्किलें भी आई है परंतु मेरी मेहनत और कामयाबी के साथ-साथ मेरे पापा का कभी काफी बड़ा योगदान रहा है जिसकी वजह से आज मैं इस मुकाम को हासिल कर पा रही हूं।
पढ़ेगी बेटी तो बढ़ेगी बेटी
सरिता (Sarita Mali) कहती हैं कि आज हमारा समाज मुझे इस मुकाम को देख कर काफी खामोश हो गया है। जिन्होंने मेरे लिए इस ऊंचाई तक पहुंचने के बारे में नहीं सोच थे परंतु आज उन लोगों ने हमारी उड़ान को देखकर उन सभी लोगों के मुंह के ऊपर ताला लग गया है। लोग जो हमें सांवला रंग को देखकर के मेरी कैरेक्टर पर सवाल उठाते थे आज मेरी यही सांवला रंग लोगों को देखकर के आश्चर्यचकित हो रहे हैं।
मैं लड़कियों से यही विनती करना चाहती हूं कि वह अपना रास्ता खुद बनाए और अपने अंदर पढ़ाई करने की लालसा को जगाएं। पढ़ाई नौकरी करने के लिए ही नहीं किया जाता बल्कि पढ़ाई करने से हमारे अंदर काफी जानकारियां प्राप्त होती है जिससे हमारे भविष्य में उसकी जरुरत होती है।
प्रेरणा
सरिता माली (Sarita Mali) के बारे में जानने के बाद हमें यह प्रेरणा मिलती है कि लोगों को कभी अपने परिस्थिति को लेकर बैठना नहीं चाहिए उसे लड़ना चाहिए और आगे बढ़ते रहना चाहिए आजकल हर इंसान के साथ कुछ न कुछ समस्याएं जरूर रहती हैं परंतु उस समस्या से जो लड़ कर आगे निकल जाता है वह इंसान एक मजबूत और सफल इंसान कहलाता है। सरिता गरीबी के साथ-साथ लोगों को ताने सुनकर अपना कदम पीछे नहीं हटाई और वे आगे बढ़ती चली गई जिसके चलते आज वे सफलता की उस चोटी पर पहुंच चुकी हैं जो लोगों ने कभी सोचा नहीं था।