हम अक्सर समाज में हो रहे सकारात्मक बदलाव, प्रेरणादायक कहानियां और सुधारकों के बारे में आपको जानकारी देते हैं लेकिन जिस महिला की बात मैं करने जा रही हूं उन्होंने आज से कई साल पहले ही शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की नींव रख दी थी। साथ ही अपना पूरा जीवन महिलाओं के उत्थान में लगा दिया।
वह दलित परिवार में पैदा हुई लेकिन बावजूद उनका लक्ष्य यही रहता था कि किसी के साथ भेदभाव ना हो और हर किसी को पढ़ने का अवसर मिले। आज सावित्रीबाई फुले की 190वीं जयंती के अवसर पर उनसे जुड़ी कुछ खास बाते जानते हैं।
9 साल की उम्र में हुई शादी, फिर बनी समाजसेवी
सावित्रीबाई का जन्म 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के एक दलित परिवार में हुआ था। नौ साल की उम्र में उनकी शादी क्रांतिकारी ज्योतिबा फुले से हो गई, उस वक्त ज्योतिबा फुले सिर्फ 13 साल के थे। पति क्रांतिकारी और समाजसेवी थे, तो सावित्रीबाई ने भी अपना जीवन इसी में लगा दिया और दूसरों की सेवा करनी शुरू कर दी।
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महिलाओं के लिए खुल गए सफलताओं के कपाट
विधवाओं की शादी करवाना, छुआछूत को मिटाना, महिला को समाज में सही स्थान दिलवाना और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना यही उनके जीवन का लक्ष्य था। इस तरह सावित्रीबाई फुले, भारत की पहली महिला शिक्षक, कवियत्री, समाजसेविका बनी जिनका लक्ष्य लड़कियों को शिक्षित करना रहा।
स्कूल में दो साड़ियां ले जाने की यह थी वजह
उन्होंने बच्चों के लिए स्कूल भी शुरू किया। पुणे से स्कूल खोलने की शुरुआत हुई और करीब 18 स्कूल खोले गए। 1848 की बात है, जब सावित्रीबाई फुले स्कूल में पढ़ाने के लिए जाती थीं। तब साथ दो साड़ियां लेकर जाती थीं, एक पहनकर और एक झोले में रखकर। क्योंकि रास्ते में जो लोग रहते थे उनका मानना था कि शूद्र-अति शूद्र को पढ़ने का अधिकार नहीं है। इस दौरान रास्ते में सावित्रीबाई पर गोबर फेंका जाता था, जिसकी वजह से कपड़े पूरी तरह से गंदे हो जाते
थे।
स्कल पहुंचकर सावित्रीबाई अपने झोले में लाई दूसरी साड़ी को पहनती और फिर बच्चों को पढ़ाना शुरू करतीं थीं। ये सिलसिला चलता रहा, लेकिन बाद में उन्होंने खुद के स्कूल खोलना शुरू कर दिया जिसका मुख्य लक्ष्य दलित बच्चियों को शिक्षित करना था।
दकियानूसी सोच पर मार दिया तमाचा
जो समाज उस वक्त लड़कियों को घर में रहने के लिए मजबूर करता था, उस समाज के लिए सावित्रीबाई की मुहिम एक तमाचा थी। उनकी मुहिम ने महिलाओं को सशक्त करने का काम किया और लोगों को इस बात को सोचने पर मजबूर कर दिया कि महिलाओं को भी पढ़ाई का अधिकार है और बराबरी का हक है।
समाजसेवी और अग्रदूत मानी जाती हैं
सावित्रीबाई एक निपुण कवियित्री भी थीं। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य की अग्रदूत भी माना जाता है। वे अपनी कविताओं और लेखों में हमेशा सामाजिक चेतना की बात करती थीं। 10 मार्च 1897 को प्लेग द्वारा ग्रसित मरीज़ों की सेवा करते वक्त सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया।