जब धान की कटाई होती है, उसके बाद जो खेत में बच जाता हैं उसे पराली कहते हैं। पराली किसानों के लिए एक बहुत बड़ी समस्या बन चुकी है इसलिए इससे निपटने के लिए कई राज्यों के किसानों ने पराली जलाने का प्रक्रिया शुरू कर दी है, परन्तु अब किसानों को पराली की समस्या से छुटकारा दिलाने के लिए वैज्ञानिकों ने एक खोज (फार्मूला) निकाला है जिसे अपनाकर इससे छुटकारा पाया जा सकता है।
इसका फॉर्मूला केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान केंद्र (Central Soil Salinity Research Center) के लखनऊ केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा बनाया गया है। इनके मुताबिक हेलो सीआरटी नाम के इस फार्मूले से केवल पराली का आसानी से संचालक नही होता है बल्कि मिट्टी की उर्वरता को भी बढ़ाता है।
क्या कहना है डॉ. संजय अरोड़ा का
अनुसंधान केंद्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ संजय अरोड़ा (Dr Sanjay Arora) इस फॉर्मूले के बारे में बताया कि किसानों के लिए पराली एक बड़ी समस्या है और इससे निपटने के लिए हम पिछले कई सालों से यह संचालन का कार्य कर रहे हैं। अब एक ऐसा फॉर्मूला तैयार किया गया है जिससे आसानी से संचालन किया जा सकता है।
संजय अरोड़ा का कहना है कि कई जगह की मिट्टी में साल्ट की मात्रा अधिक होती है यानी वहां पर पीएच की मात्रा अधिक रहती है, इस कारण वहां पर पराली का प्रबंधन करना और भी मुश्किल हो जाता है। उन्होंने हेलो सीआरडी को इसलिए बनाया है ताकि किसानों की मुश्किल काफी हद तक कम हो जाए और इसका इस्तेमाल करने का तरीका भी बहुत आसान है।
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हेलो सीआरडी में बैक्टीरिया की सहायता से पराली का अपघटन किया जाता है। डॉ अरोड़ा का कहना है कि बैक्टीरिया युक्त हेलो सीआरडी की सहायता से पराली को जलाने से रोका जा सकता है और साथ हीं मिट्टी की उर्वरता और स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा जा सकता है। इससे अगली फसल में भी अधिक मुनाफा होगा, क्योंकि बैक्टीरिया की सहायता से फसल अवशेष को अच्छी तरह से अपघटन हो जाता है जिससे फसल में वृद्धि होती है।
कई तरह की फसलों की कटाई से बड़ी संख्या में फसल अवशेष होता है केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान केंद्र के मुताबिक देश में हर वर्ष लगभग 600 मीट्रिक टन फसल अवशेष होता है। फसल अवशेषों के उत्पादन में पहले स्थान पर उत्तर प्रदेश और दूसरे स्थान पर पंजाब आता है।
आपको बता दें कि पिछले कुछ सालों में केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान केंद्र ने उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के लखनऊ (Lucknow), रायबरेली (Rai Bareilly), उन्नाव (Unnao), सीतापुर (Sitapur), सुल्तानपुर (Sultanpur), हरदोई (Hardoi), कौशांबी (Kaushambi) प्रतापगढ़ (Pratapgarh), आगरा (Agra) एवं इटवा (Etawah) जैसे जिलों के कृषि विज्ञान केंद्रों की सहायता से वहां के किसानों को हेलो सीआरडी फर्मूले को भेजा जा रहा है और इसका रिजल्ट भी अच्छा देखने को मिल रहा है।
आपको बता दें कि इससे पहले आईसीएआर ने पराली प्रबंधन के लिए पूसा डीकम्पोजर किसानों तक पहुंचाया था। ऐसे में अब हेलो सीआरडी उससे कितना अलग है, इसके बारे में डॉक्टर अरोड़ा का कहना है कि पूसा डीकम्पोजर भी अच्छा फार्मूला है परंतु जहां की मिट्टी में पीएच की मात्रा अधिक होती है वहां पर जा काम नहीं करता है। वही हेलो सीआरडी हर जगह काम अच्छे तरीके से कार्य करता है और साथ ही मिट्टी को उपजाऊ भी बनाता है।
कैसे करें उपयोग?
इस फर्मूले के उपयोग के लिए 100 मिली हेलो फार्मूला और 200 लीटर पानी में 500 ग्राम गुड़, 2 किलो सड़ा हुआ गोबर लेना होगा। इसके बाद 2 से 3 दिनों तक इसे धूप से अलग रखें। फिर 2 से 3 दिन बाद इसमें 2 लीटर मट्ठा भी मिला, मट्ठा जितना पुराना होगा उतना ही बढ़िया काम करेगा। एक एकड़ में 200 लीटर मिक्सचर के मिश्रण आधी मात्रा को पूरे खेत में छिड़काव करें। करीब 7 दिन बाद इस मिश्रण को फिर से छिड़काव करें। आप देखेंगे कि 25 से 30 दिनों में पराली पूरी तरह से अपघटित हो गया है।
कहां मिलेगा हेलो सीआरडी ?
हेलो सीआरडी को अगर आप लेना चाहते हैं तो अपने जिले के कृषि विज्ञान केंद्र में संपर्क कर सकते हैं। 100 मिली की एक बोतल का मूल्य 50 रुपए है।