बेटियों को अक्सर पिता का बोझ समझा जाता है। उनके जन्म से हीं परिवार वाले उनकी शादी और दहेज़ की चिंता करने लगते हैं। इसके विपरित हमारी आज की कहानी विनोद कुमार सविता की है। इनकी तीन बेटियां हैं और तीनों इंस्पेक्टर हैं।
विनोद कुमार सविता (Vinod Kumar Savita) शिंदे की छावनी (Shinde ki Chhawani) ग्वालियर के रहने वाले हैं। विनोद जी की तीन बेटियां और एक बेटा है। आम तौर पर बेटियों के जन्म के बाद हमारे रिश्तेदार सलाहकार में बदल जाते हैं। कोई एफडी करवाने तो कोई जेवर बनवाने का सुझाव देता है ताकि बेटी की शादी में ज़्यादा परेशानी न हो। विनोद जी के साथ भी ऐसा हीं हुआ। वह कहते हैं, “जब बेटियां हुईं तो रिश्तेदारों ने दहेज के लिए रुपए एकत्रित करने के लिए कहा।”
विनोद जी ने लोगों की सलाह मान ली। उन्होंने पैसे भी इकट्ठे किए लेकिन शादी के लिए नहीं बल्कि बेटियों की पढ़ाई के लिए। इन्होंने अपनी बेटियों को पढ़ाने में कोई कमी नहीं की। बेटियों ने भी अपने पिता को निराश नहीं किया, वे अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने लगीं।
वर्तमान में विनोद जी की तीनों बेटियां बड़े पद पर हैं। बड़ी बेटी पूनम शिवपुरी में इंस्पेक्टर है, दूसरी बेटी नीलम पीटीआरआई तिघरा में इंस्पेक्टर और तीसरी बेटी काजल छत्तीसगढ़ में सीआईएसएफ कोल फैक्ट्री में इंस्पेक्टर है।
परिंदों सी बन रही हैं लड़कियां
उन्हें बेखौफ उड़ने में मजा आता है
उन्हें मंजूर नहीं उनके परों का काटा जाना
पहाड़ों सी बन रही हैं लड़कियां
उन्हें सिर उठा जीने में मजा आता है
उन्हें मंजूर नहीं सिर को झुका कर जीना
कमला भसीन की इस कविता को विनोद कुमार सविता (Vinod Kumar Savita) की तीनों बेटियां पूनम, नीलम और काजल सच साबित कर रहीं हैं। The Logically इन्हें सलाम करता है।