कोरोना के संकटकाल में सभी को बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। अगर देखा जाए तो इस संकट के घड़ी में सबसे ज्यादा दिक्कतों का सामना उन्हें करना पड़ रहा है जो मध्यम वर्ग से है, गरीबी रेखा के नीचे है और जो प्रवासी मजदूर है। मजदूरों के बारें में देखा जाये तो कोरोना उन्हें और उनके परिवार को भुखमरी के कगार पर ला कर रख दिया है। वर्कर अलग-अलग जगहों से अपने घर-परिवार से दूर दूसरे रहकर अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए कारखानों में मजदूरी का काम करते हैं लेकिन कोरोना के आपातकाल की स्थिति में सभी कारखाने बन्द हो गये हैं। कारखानों का काम बन्द हो जाने के कारण उनके पास पैसों की कमी हो गयी और भुखमरी की स्थिति उत्पन हो गयी थी जिसके चलतें सभी मजदूर अपने घर पैदल लौटने के लिए विवश हो गये थे।
लेकिन वहीं अब आहिस्ते-आहिस्ते सब अपने पटरी पर आ रहा है। कारखाने भी खुलने लगे है। कारखानों में काम करने के लिए कामगारों की आवश्यकता होती है, लेकिन सभी मजदूर काम बन्द होने की वजह से अपने अपने घर लौट गये हैं। कारखानों में काम फिर से शुरु करने के लिए कारखानों के मालिक अपने पैसों से प्रवासी मजदूरों को बुलाने लगे हैं। कुछ ऐसा ही हुआ है बनारस के रहनें वाले दो भाइयों के साथ। ये दोनों भाई मई में लॉकडाउन के समय एक श्रमिक विषेश ट्रेंन के जरिए सुरत छोड़ कर अपने घर वापस आ गये थे।
शिवराती कुमार (Shiwraati Kumar) और अशोक कुमार (Ashok Kumar) उत्तरप्रदेश के चंदौली (Chandauli) जिले के रहने वाले हैं। ये दोनों भाई है। कम्पनी बन्द होने के कारण ये अपने घर को लौट आये थे। शिवराती कुमार एक टेक्सटाइल् वर्कर और अशोक कुमार मशीन ऑपरेटर हैं। सचिन GIDC में पावरलूम युनिट के मालिक मनसुख लखानी ( Mansukh Lakhaani) ने इन दोनों भाईयों का एअर टिकट बुक किया और हवाईजहाज से वापस अपने कम्पनी में बुलाया। अशोक का कहना हैं, “मैने अपने जीवन का सबसे बड़ा सपना पूरा किया, अगर हमारे बॉस ने हमारे लिए फ्लाइट टिकट बुक नहीं किया होता, तो सुरत आने में बहुत लम्बी प्रतीक्षा करनी पड़ती।”
इनके माता-पिता खेत में मजदूर के रूप में काम करतें हैं। ऐसे में इतने महिनों में इनकी दैनिक जीवन में बहुत सी समस्याएं उत्त्पन्न हो गयी थी, लेकिन इनके बॉस ने इन्हें वापस काम पर बुलाया और यूनिट में रहने की पेशकश की हैं। उनके मालिक भोजन से लेकर बाकी अन्य ज़रुरत के सभी सामानों की पूर्ति भी कर रहें हैं। दोनों भाईयो ने कम्पनी में काम करना शुरु कर दिया हैं। दोनों भाइयों का कहना हैं कि “हमदोनों भाग्यशाली हैं, क्योंकि चंदौली (Chandauli) के अन्य मजदूर अभी भी अधिक वक्त से ट्रेनों में लम्बी वेटिंग लिस्ट के वजह से फंसे हुए हैं।
कम्पनी के मालिक मनसुख लखानी (Mansukh Lakhaani) का कहना है कि, “मिल में 150 पावरलूम मशीनें है जो पिछले 5 महीनों से बन्द पड़ी है। पूरी यूनिट को चालू करने के लिए 50 वर्कर्स की ज़रूरत होती है। इन ज़रूरतों को पुरा करने के लिए उड़ीसा से 50 श्रमिकों को लाने के लिए एक लक्जरी बस बुक करने का प्लान बनाया जा रहा हैं।”
बीते सप्ताह उद्योग जगत के नेताओं ने दक्षिणी गुजरात चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐण्ड इन्डस्ट्री (SGCCI) के साथ मिलकर रेलवे मंत्रालय को एक संयुक्त प्रतिनिधित्व सौंपा, जिसमें बिहार, उत्तरप्रदेश और उड़ीसा से रिजर्व श्रमिक ट्रेंनो का मांग किया गया जिससे 15 लाख श्रमिक मजदूरों को वापस सुरत काम पर लाया जा सके।
The Logically ऐसे मालिकों को नमन करता हैं जो खुद का पैसा खर्च कर मजदूरों को वापस काम पर बुला रहें हैं और उनके रहने, खाने-पीने की ज़रूरतों को भी पुरा कर रहें हैं।