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पति हुए बेरोजगार तो पत्नी ने उठाई जिम्मेदारी, सजावट की टोकरी बनाकर कमा रही हैं अच्छा मुनाफा

ज्यादातर महिलाएं घर गृहस्थी के कामों में ही संलग्न रहती हैं, वे बाहरी कामों को ना के बराबर करती हैं। यहां तक कि उन्हें कहीं बाहर जाना भी हो तब भी किसी पुरुष का ही सहारा लेती हैं लेकिन बुरा समय एक औरत को भी खुद के सहारे जीने पर मजबूर कर देता है। जो औरत कभी अकेले घर की दहलीज नहीं पार करती, उसे भी पूरे घर की ज़िम्मेदारी अपने कंधे पर लेकर चलना सीखा देता है। ऐसे ही औरतों में से एक है पंजाब की ममता जिनके पति का सड़क हादसे में बाजू टूट गया, तब घर की जिम्मेदारियों को संभालने के लिए ममता चावला ने शगुन की टोकरी बनाकर बेचने का काम शुरू किया और आज इनका कारोबार हरियाणा, पंजाब जैसे कई राज्यों में फैला हुआ है।

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ऐसे हुई कारोबार की शुरुआत

ममता चावला (Mamta Chawla) पंजाब (Punjab) के पटियाला (Patiyala) गांव सनौर की रहने वाली हैं। ममता का गृहस्थ जीवन भी अच्छे से व्यतीत हो रहा था लेकिन एक समय सड़क हादसे में उनके पति का बाजू टूट गया। जिसके बाद पति पर आश्रित ममता के सामने आर्थिक समस्या खड़ी हो गई। ममता के पति ललित चावला पेशे से एक इलेक्ट्रिशियन थे, हादसे के बाद उनके लिए यह काम करना संभव नहीं रहा। बुरे हालातों से लड़ते हुए ममता ने परिवार का जिम्मा उठाने के लिए शगुन की सजावटी टोकरी बनाने का काम शुरू किया। धीरे-धीरे उनका कारोबार बढ़ने लगा। 7 सालों में ममता का कार्य पंजाब और हरियाणा में विस्तृत हो गया। आगे उनके साथ और भी 11 महिलाएं जुड़कर इस कारोबार को सफल बना रही है।

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ममता से प्रेरित होकर अन्य महिलाओं ने भी शुरू किया कार्य

ममता अपने पति से शादी-विवाह में काम आने वाली सजावटी टोकरी बनाने के बारे में कहीं। पति की सहमति मिलते ही वह टोकरी बनाने का कार्य शुरू कर दीं। शुरुआत में बिक्री कम होते थे, हताश होकर ममता ने कार्य बंद करने के बारे में भी सोचा लेकिन उनके पति ने हौसला बढ़ाया और वह कार्य को जारी रखी। धीरे-धीरे ममता के कार्यों को पहचान मिलने लगी और उन्हें ग्रामीण विकास प्राधिकरण से भी सहयोग मिला। आगे ममता ने नंदिनी नाम का एक स्वयं सहायता समूह पंजीकृत करवाया और अपनी बनाई हुई टोकरियों को बाजार में बेचने का काम शुरू किया। स्वयं सहायता समूह द्वारा बनाए टोकरी की कीमत ₹30 से लेकर ₹400 तक है। ममता के इस कार्य से प्रेरित होकर उनके गांव और आसपास की अन्य महिलाओं ने भी स्वयं सहायता समूह का गठन कर साबुन और डिटर्जेंट जैसी सामग्रियां तैयार करने का काम कर रही है।

फैला पंजाब और हरियाणा में कारोबार

ममता चावला (Mamta Chawla) नंदिनी स्वयं सहायता समूह की लीडर है। ममता के अनुसार उन्हें उम्मीद नहीं थी कि उनका कारोबार इतना बड़ा होगा। आज उनके पास इतने ऑर्डर्स आते हैं कि कई बार तो लेने से मना भी करना पड़ता है। ममता के पति भी इस कार्य में पूरा सहयोग करते हैं। आज इनका कारोबार पंजाब के पटियाला, लुधियाना, संगरूर और हरियाणा के कैथल, कुरुक्षेत्र, अंबाला, शाहबाद, पिहोवा जैसे अन्य जिलों में भी फैला हुआ है।

ममता के साथ नंदिनी स्वयं सहायता समूह में कार्य करने वाली अन्य महिलाएं भी ₹5000 से ₹6000 तक कमा लेती हैं, जिससे उनके परिवार को भी आर्थिक सहायता मिल जाता है। ममता के अनुसार एक टोकरी को बनाने में 20 से 25 मिनट का समय लगता है और लागत खर्च ₹15 से ₹20 का आता है।

ममता उन महिलाओं के लिए प्रेरणा है जो विपरीत परिस्थितियों का सामना नहीं कर पाती हैं, बुरे हालातों में भी दूसरों का आश्रय ढूंढती हैं। यदि हिम्मत और हौसला हो तो हर कोई नामुमकिन कार्य को मुमकिन कर सकता है। The Logically ममता चावला द्वारा किए गए कार्यों की ख़ूब प्रशंसा करता है।

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