साल 2022 में पद्मश्री पुरस्कारों की सूची में बहुत सी महिलाओं को स्थान मिला जिन्होंने अलग-अलग क्षेत्रों में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है। इन सूची में कुछ महिलाएं तो ऐसी हैं, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन देश और देश की संस्कृति, पर्यावरण व लोगों के लिए समर्पित कर दिया है। एक तरह दोनों पैरों से न चल पाने वाली राबिया हैं, जो व्हील चेयर पर होने के बावदूद लंबी दूरी का सफर तय कर लोगों को कभी न हार मानने की प्रेरणा दे रही हैं। तो दूसरी तरफ 102 साल की शकुंतला चौधरी हैं, जिन्होंने अपना पूरा जीवन गांधी के आदर्शों, सिद्धांतों को लोगों तक पहुंचाने में लगा दिया। उत्कृष्ट कार्यों के जरिए पहचान बनाने वाली देश की इन्हीं नायिकाओं में एक नाम बसंती देवी (Basanti Devi) का है।
बसंती देवी को साल 2022 में पद्मश्री (Padmashri Award) पुरस्कार के लिए नामित किया गया था और सोमवार यानी 28 मार्च को राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद द्वारा बसंती देवी को पद्मश्री पुरस्कार सम्मानित किया गया। बसंती देवी उत्तराखंड (Uttrakhand) से ताल्लुख रखती हैं। पर्यावरण को बचाने के लिए उनका प्रयास अतुलनीय है। इसके पहले भी बसंती देवी को देश का सर्वोच्च नारी शक्ति पुरस्कार मिल चुका है।
President Kovind presents Padma Shri to Smt Basanti Devi for Social Work. She is known for her efforts for women empowerment and environment conservation in the Kumaon region of Uttrakhand. She formed women's groups to remove social evils prevailing in the society. pic.twitter.com/BeS2U8D2th
— President of India (@rashtrapatibhvn) March 28, 2022
बसंती देवी कौन है (Padmashri Basanti Devi kon hain)
बसंती देवी उत्तराखंड की एक प्रसिद्ध समाजसेविका (Social Activist) हैं, उन्होंने उत्तराखंड के पर्यावरण संरक्षण, पेड़ो व नदी को बचाने के लिए अपना योगदान दिया है। फिलहाल में बसंती देवी कौसानी स्थित लक्ष्मी आश्रम (Lakshmi Ashram) में रहती हैं। बसंती देवी ने पर्यावरण से लेकर समाज की कई कुरीतियों को दूर करने के लिए महिला समूहों का आह्वाहन किया। एक तरफ तो उन्होंने कोसी नदी का अस्तित्व बचाने के लिए महिला समूहों के माध्यम से मुहिम शुरु की तो दूसरी ओर घरेलू हिंसा और महिलाओं पर होने वाले प्रताड़नाओं को रोकने के लिए जागरूकता फैलाने का कार्य किया। यह बसंती देवी के प्रयास का ही फल है कि पंचायतों के सशक्तिकरण में उनके प्रयास का असर दिखा।
वैसे तो बसंती देवी मूल रूप से पिथौरागढ़ (Basanti Devi, Pithoragarh) की रहने वाली हैं। बसंती देवी की पढ़ाई की बात करें तो शादी से पहले तक वह मात्र साक्षर थीं। उनका विवाह 12 साल की उम्र में कर दिया गया था लेकिन विवाह के कुछ समय बाद ही उनके पति का निधन हो गया था। उसके बाद बसंती देवी ने कभी भी दूसरा विवाह नहीं किया। पिता का साथ मिलने पर वो वापस मायके आईं और पढ़ाई में जुट गईं। उन्होंने इंटर पास किया। 12वीं करने के बाद बसंती गांधीवादी समाजसेविका राधा के संपर्क में आईं और उसने प्रेरणा लेकर कौसानी के लक्ष्मी आश्रम में ही आकर बस गईं।
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समाज सेवा की यहां से की शुरुवात (Basanti devi emerged as social activist)
लक्ष्मी आश्रम से बसन्ती देवी को समाज सेवा के पथ पर चलने की दिशा मिली। बता दे की बसंती देवी ने अल्मोड़ा जिले के धौला देवी ब्लाक में आयोजित बालबाड़ी कार्यक्रमों में शामिल होकर समाज सेवा शुरू की थी। बसंती देवी ने इस काम में महिलाओं को आगे लाते हुए महिला संगठन बनाएं। साल 2003 में बसंती देवी ने कोसी घाटी के गांवों की रहने वाली महिलाओं को संगठित करने का काम शुरु किया था।
महिला सशक्तिकरण को दिया बढ़ावा
बसंती देवी ने कौसानी से लोद तक पूरी घाटी में करीब 200 से ज्यादा गांवों की महिलाओं का समूह बनाया। बसंती ने महिला सशक्तिकरण पर बल देते हुए साल 2008 में महिलाओं की पंचायतों में स्थिति मजबूत करने पर काम किया। पंचायतों में महिलाओं को आरक्षण मिला तो उन्होंने घरेलू हिंसा और पुरुषों की प्रताड़ना झेल रही महिलाओं की मुक्ति के लिए मुहिम शुरू की। 2014 में उन्होंने 51 गांवों की 150 महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में मदद की थी।
जब बसंती देवी इस मुहीम पर काम कर रही थी तब उन दिनों कोसी नदी सूखती जा रही थी और अपना अस्तिस्व खो रही थी। बसंती देवी (Basanti Devi) ने कोसी नदी को बचाने का संकल्प लिया। बसंती ने महिलाओं को संगठित कर वनों के दोहन को रोकने के लिए कार्य किया। जिसमें उन्हें काफी मशक्कत करना पड़ी। निराशा भी हाथ लगी लेकिन बसंती संकल्प से पीछे न हटीं और आखिरकार अंत में वह महिलाओं को समझाने में कामयाब हुईं कि अगर वह इसी तरह जंगल और पानी को बर्बाद करती रहेंगी तो कोसी घाटी की संपन्न खेती भी बर्बादी की कगार पर आ जाएगी। इसके बाद पूरी घाटी में पेड़ों के कटान पर रोक लगा दी गई, इस अभियान की अगुवाई खुद महिलाएं कर रही हैं।
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