जीवन में कुछ कर गुजरने के लिए इंसान टूटता भी है और बिखरता भी है, तब जाकर कहीं वह अपनी कामयाबी हासिल कर पाता है।-story behind thyrocare company
बने सफलतम इंसान नहीं मानी हार
आज हम आपको एक ऐसे ही सफल व्यक्ति की कहानी बताएंगे जिन्होंने अपनी जीवन में कई संघर्ष किए। जिस व्यक्ति को दो वक्त की रोटी के लिए तरसना पड़ा उसने अपने जीवन में कितना संघर्ष किया होगा, इसका अंदाजा आप खुद लगा सकते हैं लेकिन आज वह इंसान करोड़ों की कंपनी का मालिक है।
कौन है यह व्यक्ति?
एक गरीब किसान परिवार में जन्में अरोकियास्वामी वेलुमणि (Arokiaswamy Velumani) कोयंबतूर गांव के रहने वाले हैं। उनके पास अपनी कोई जमीन भी नहीं थी। परिवार में गरीबी इस तरह से थी कि उनके पिता के पास कपड़े और जूते चप्पल तक खरीदने के पैसे नहीं थे।
बचपन से ही कर रहे गरीबी का सामना
अरोकियास्वामी का बचपन भले ही गरीबी और संघर्ष भरी रही है परंतु अपनी मेहनत और लगन से आज वह थायराइड टेस्ट कराने में विश्व की सबसे बड़ी कंपनी Thyrocare टेक्नोलॉजी लिमिटेड के मालिक है।
कई देशों में खड़ी की कंपनी
अरोकियास्वामी वेलुमणि ने थायराइड के कंपनी के साथ ही साथ कई और भी कंपनी खड़े किए हैं, जो ब्लड द्वारा अन्य टेस्ट भी करवाती है। इस कंपनी के विश्व भर में लगभग 1122 आउटलेट्स है जो भारत के साथ ही साथ नेपाल, बांग्लादेश और पूर्वी देशों में भी Thyrocare के कई आउटलेट्स मौजूद हैं।
गांव में रहते हुए भी बड़े सपने किए पूरे
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि अरोकियास्वामी का बचपन संघर्ष भरा रहा है। आपको बता दें कि इनकी मां भैसों का दूध बेचकर इन्हें पढ़ाने के लिए सप्ताह के ₹50 इकट्ठा करती थी। इतना ही नहीं इन्हीं 50 रुपयों में घर का खर्च भी चलाना रहता था।
गांव के स्कूल से की है पढ़ाई
वैसे तो इन्होंने अपनी पढ़ाई गांव से ही की है पर अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए इन्हें शहर जाना पड़ा। इतना ही नहीं इन्होंने अपनी बाकी की पढ़ाई भी सरकारी स्कूल अथवा कॉलेजों से ही की है।
महीने के 150 रुपए की करते थे जॉब
अपनी बीएससी की पढ़ाई पूरी करने के बाद अरोकियास्वामी वेलुमणि ने मात्र 19 वर्ष की उम्र में कोयंबटूर में एक मिडिल क्लास फार्मा कंपनी में काम करना शुरू किया। इस कंपनी में उनका महीने का सैलरी केवल ₹150 ही था। इतनी छोटी सी रकम में उन्हें अपनी परिवार का भी खर्च उठाना था। आगे चलकर वह कंपनी ही बंद हो गई, जिसके कारण उन्हें और भी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
कम्पनी बंद होने से खुली क़िस्मत
किसी ने सच ही कहा है कि अगर किसी भी इंसान को कामयाब होना होता है वह किसी भी परिस्थिति से निकल कर सफलता हासिल कर सकता है। कुछ ऐसा ही हुआ अरोकियास्वामी के साथ।
BARC भी किया काम
कंपनी बंद होने के बाद उन्होंने एक भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (Bhabha Atomic
Research Centre) में लैब असिस्टेंट के लिए अप्लाई किया और उनका सिलेक्शन भी हो गया। वह अपने काम के साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी पूरी कर ली और आगे जाकर वह एक वैज्ञानिक भी बने।
शुरू की खुद की कंपनी
भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में करीब 14 वर्ष तक काम करने के बाद अरोकियास्वामी ने अपनी खुद की एक कंपनी खोलने का विचार किया। कुछ ही दिनों बाद उन्होंने सुमति वेलुमणि (Sumathi Velumani) से शादी कर ली जो एक बैंक कर्मचारी थी।
पत्नी ने नौकरी के बाद छोड़ी नौकरी
खुद की कंपनी की शुरुआत होते ही इनकी पत्नी सुमति ने अपनी जॉब छोड़ दी। इनकी पहली लैब मुंबई में खोली गई जिसमें इनकी पत्नी पहली कर्मचारी बनी। आपको बता दें कि इन्होंने इस कंपनी की शुरुआत के लिए अपने पीएफ के पैसे खर्च कर दिए।
कम पैसे में होगा टेस्ट
अरोकियास्वामी ने अपनी इस कंपनी को गरीब लोगों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए शुरु किया। उन्होंने बताया कि शुरु के दिनों में एक से दो ही सैंपल आते थे। इसके लिए उन्होंने दिन रात एक कर दिया और अपने बिज़नेस मॉडल को दूसरो से अलग बनाया। उन्होंने टेस्टिंग का मूल्य कम रखा जिसकी वजह से ज्यादा लोगो के पास पहुंच पाया। यही कारण है कि उन्हें बिज़नेस में काफी फायदा होने लगा।
51 प्रतिशत तक बढ़ा मुनाफा
आपको बता दें कि साल 2020 में अरोकियास्वामी की कम्पनी का रेवेन्यू 474 करोड़ रुपए था, जिससे 51 प्रतिशत का मुनाफा बढ़ा। इतना ही नहीं फोर्ब्स इंडिया के अनुसार इनकी कंपनी पूरे विश्व की सबसे कम कीमत वाली हेल्थकेयर वाली सुविधाएं उपलब्ध करवाती है।
अरोकियास्वामी वेलुमणि की सफलता की कहानी प्रत्येक व्यक्ति के लिए वाकई प्रेरणादायक है। -story behind thyrocare company