भारत का पौराणिक इतिहास कई रोचक किस्सों को समेटे हुए है। उन्हीं कहानियों में से एक है आज से लगभग 180 साल पहले की, जब 36 बिहारी मजदूर बनकर विदेश गए लेकिन आज वे वहां राज करे रहे हैं।
18वीं शताब्दी में भारत में भीषण अकाल पड़ा था। लोग खाने को मोहताज हो गए थे। ऐसे में बिहार से 36 मजदूर मॉरीशस मजदूरी करने गए। जब भारत में अकाल पड़ा था तो इसका फायदा ब्रिटिश कंपनियों ने उठाया और भारतीय मजदूरों को 5 साल की नौकरी का वादा कर विदेश ले जाने लगे। पुरुषों को हर महीने 5 रूपये तथा महिलाओं को 4 रूपये की मजदूरी देने का वादा किया। इसके पहले उन मजदूरों से एक एग्रीमेंट साइन करवाया जाता जो भारतीय गिरमिट नाम से था। इस पर साइन करने वाले को गिरमिटिया कहा जाता। आज की कहानी उन्हें भारतीय गिरमिटियों की है।
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एटलस नाम के जहाज से 36 बिहारी मजदूरों को मॉरीशस ले जाया गया। यह जहाज 10 सितंबर 1834 को कोलकाता से रवाना हुआ और 2 नवंबर 1834 को मॉरीशस पहुंचा। आपको बताते चलें की 1834 ईस्वी से लेकर 1910 ईस्वी तक लगभग 4,51,740 भारतीय गिरमिटिया मजदूर मॉरीशस गए।
उन भारतीय मजदूरों को ब्रिटिश सैनिकों से बचाकर ले जाया जाता था। यदि कभी ब्रिटिश सैनिकों की नजर पड़ती तो मजदूरों को समुद्र में धकेल दिया जाता था। अब बात ये आती है कि कंपनियां भी ब्रिटिश थी और सैनिक भी ब्रिटिश तो आखिर ब्रिटिश सैनिकों की नजरों से क्यों बचाया जाता था। दरअसल 1833 ईस्वी में एक एक्ट पास किया गया जो “The Slavery Abolition Act 1833” नाम से था। इसके बाद एक देश से दूसरे देश मजदूर ले जाना गैरकानूनी माना जाने लगा। इससे विदेश में हो रहे चीनी उत्पादन पर काफी ज्यादा असर पड़ा।
लेकिन इसी बीच मॉरीशस भी ब्रिटिश कब्जे में आ गया था। जिसके बाद मॉरीशस को ही शुगर प्रोडक्शन बढ़ाने का हब बनाया जाने लगा और और भारत से भर-भर कर मजदूर यहां ले जाया जाने लगा। आपको बता दें कि मॉरीशस में धीरे-धीरे मजदूरों की संख्या बढ़ती गई और 1931 आते-आते वहां की 68% जनसंख्या भारत की हो गई।
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यदि हम आज के मॉरीशस को देखें तो वहां भारत दिखाई देगा। भारतीय लोगों से भरे हुए इस देश में भारतीय सभ्यता और संस्कृति की झलक भी दिखती है। वहां के प्रधानमंत्री प्रवीण कुमार जगन्नाथ के पूर्वज भी एक मजदूर बनकर मॉरीशस आए थे और आज उनकी वर्तमान पीढ़ी वहां का प्रतिनिधित्व कर रही है।