लड़कियों पर ज्यादती तो शुरु से होती रही है। आज समय बदल रहा है। आज लङकियां पहले की अपेक्षा खुद को ज्यादा आजाद महसूस करती हैं और अपने अनुसार लक्ष्य निर्धारित कर उसे पूरा भी करती हैं। लेकिन इन सब के बावजूद भी आज भी ऐसी कई जगहें हैं जहां के परिवेश में अगर लड़कियां अपनी जिंदगी में कुछ करना चाहती है तो उसे घर और समाज उसके सपने को साकार नहीं होने देते। वे लोग यह कहते हैं कि लड़कियां घर के बाहर काम नहीं कर सकती है उसके लिए घर में रहना ही सबसे बेहतर होगा।
इस कारण लड़कियां अपने सपने को अंदर ही अंदर दबा देती है। अगर कुछ लड़कियां समाज के बनाए हुए नियम को तोड़ कर के घर से बाहर निकलती है तो उसे समाज एक अलग ही नजरिए से देखने लगते हैं। लोगों के बनाए हुए इस नियम से यह पता चलता है कि लड़कियों को अपने जिंदगी के बारे में सपने देखने का भी हक नहीं है। परंतु आज हम आपको एक ऐसे ही कहानी के बारे में बताएंगे जो घर से लेकर के बाहर तक के लोगों के बातों को सुनकर के और उनके थप्पड़ को सह करके आगे बढ़ती रही और आज वह एक मेकअप आर्टिस्ट के साथ-साथ मॉडलिंग भी कर रही हैं।
• आनंदी सागर सिंह
आनंदी सागर सिंह (Anandi Sagar Singh) बिहार (Bihar) के आरा (Ara) जिले की रहने वाली हैं परंतु इनका जन्म दिल्ली (Delhi) में हुआ था। आनंदी के पिता दिल्ली में आर्ट फील्ड में काम करते थे परंतु इन्हें समय पर पैसे नहीं मिलते थे और घर में खर्च ज्यादा हो रहे थे जिसकी वजह से इनकी आर्थिक स्थिति धीरे-धीरे खराब होने लगी। घर की आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से आनंदी जब 3 साल की थी तब इनका परिवार दिल्ली से बिहार अपने घर आरा चला आया।
आनंदी बताती है कि जब मैं दिल्ली से बिहार अपने घर आए तो यहां घर के लोगों ने हमें थप्पड़ मारकर स्वागत किया। हम चार भाई-बहन थे। गरीबी मेरे पीछे इस तरह पड़ी हुई थी कि जब बारिश होती थी तब हमारा परिवार एक छत के नीचे बैठ कर रात गुजारनी पढ़ती थी। मेरे पिताजी बीमार रहने की वजह से वे घर में ही रहते थे जिसकी वजह से हम बाजार जाकर सामान लाया करते थे परंतु मुझे जब बाजार से आने में देरी हो जाती थी तो समझो आज घर पर पीटना निश्चित था।
बीमारी की वजह से मेरे पिताजी कुछ कर नहीं पाते थे और मेरी मां घर में रहती थी। हमलोगों पर काफी ज्यादती की जाती थी। परंतु मैं सब चुपचाप सह लेती थे। जब हम दसवीं क्लास में पढ़ते थे तो घरवाले मेरी शादी करवाना चाहते थे। मुझे घरवालों के फैसले मंजूर नहीं थे मैं आगे और भी पढ़ना चाहती थी। मेरे मां पापा ने मुझे काफी सपोर्ट किया और मुझे आगे पढ़ने के लिए प्रोत्साहन किया जिस के बाद हमने बारहवीं की पढ़ाई की। आगे की पढाई मैं बिहार से नहीं करना चाहती थी इसके लिए हमने पापा से काफी जिद की इसके बाद पापा ने मुझे कोलकाता और मुंबई ले गए परंतु वहां भी जाकर कुछ नहीं हुआ क्योंकि वहां की भाषा मुझे समझ में नहीं आ रही थी और तो और वहां के लोग भी मुझे पसंद नहीं थे।
यह भी पढ़ें:-इन टिप्स को अपनाकर अब घर पर उगाएं पोषक तत्वों से भरपूर आङू का पौधा
• इग्नू से की पढ़ाई
जब मैं कोलकाता और मुंबई में बीए का एडमिशन नहीं ली तो फिर हमने दिल्ली में इग्नू (IGNOU) से बीए का फॉर्म भरा। यहां भी मेरी किस्मत खराब थी इग्नू से हमने फास्ट इयर तो कंप्लीट कर ली परंतु सेकंड ईयर नहीं हो पाया। और मैं अपने घर चली आई। इसके बाद मैं आगे पढ़ने के लिए काफी विचार करने लगी जिसके बाद मैंने हिमाचल यूनिवर्सिटी से डिस्टेंस से फॉर्म भरा और मैं अपनी पढ़ाई घर से ही करनी लगी क्योंकि मेरे घर की स्थिति काफी खराब थी। इस वजह से मैं वहां रहकर के पढ़ाई नहीं कर सकती थी इसीलिए मैंने सोच लिया कि मैं घर से ही पढ़ाई करूंगी और मैं मन लगाकर की तैयारी करने लगी।
मैं चारों भाई-बहन में सबसे बड़ी थी जिसकी वजह से मेरे ऊपर घरवालों का दवाब काफी ज्यादा हो रहा था परंतु हमने इन सभी चीज को अनदेखा कर के आगे बढ़ते रहे और आगे चलकर के मुझे बुक पब्लिकेशन में काम करने का मौका मिला। इसके बाद मैंने सेल्स मैन का भी काम किया। इन सभी काम को मैं काफी लगन और मेहनत से कर रही थी। फिर एक दिन मुझे इवेंट मैनेजमेंट में काम करने का मौका मिला। यह कंपनी पब एक्टिविटीज पर काम करती थी। घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए मैंने इस कंपनी को ज्वाइन कर ली और मैं इसमें काम करने लगी।
• गंदी नजरों से देखते थे लोग
आनंदी (Anandi Sagar Singh) बताती हैं कि जब मैं पब कंपनी में काम करती थी और देर रात को सबसे घर वापस आती थी तो लोग मुझे काफी गंदी नजरों से देखते थे। मेरे बारे में लोगों की सोच काफी गलत और गंदी थी। आसपास के लोग मेरे ऊपर तरह-तरह के सवाल उठाते थे। लोगों की सोंच इतनी गिरी हुई थी कि लोगों ने मेरे कैरेक्टर पर सवाल उठाना शुरू कर दिया। मेरे इस काम को करते देख कर हमें गलत साबित करते थे परंतु कभी यह लोग यह जानने की कोशिश नहीं किए कि मैं इतनी रात तक काम क्यों करती थी। मैं जिस कंपनी में काम करती थी वहां 12 घंटे काम करना पड़ता था साथ-साथ मुझे वहां काफी कम पैसे मिलते थे। परंतु मुझे इस कंपनी में काम करने से यह फायदा हुआ कि यहां पर काफी अच्छे लोगों से जान-पहचान हो गए। मैं अपने काम के साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी अच्छे से कर रही थी। क्योंकि मेरे काम की वजह से मेरी पढ़ाई में कोई नुकसान ना हो इसीलिए मैं काम के साथ-साथ जब मुझे समय मिलता था तब मैं अपनी पढ़ाई भी पूरा कर लेती थी।
• लॉकडाउन में आया आईडिया
आनंदी कहती है कि मैं काफी दिनों से नौकरी कर रही थी जिसकी वजह से मुझे अब धीरे-धीरे इस नौकरी से मन उब सा गया था। मुझे अब नौकरी करने का मन नहीं करता था। इसी बीच करोना महामारी आ गई और पूरे देश में लॉकडाउन हो गया। जिसके बाद मैं घर में ही रहने लगी। मेरी जितनी भी सेविंग थी सब धीरे-धीरे खत्म हो गई और अब मेरे पास पैसे नहीं थे तब मैंने कुछ अलग करने के बारे में सोचा जिसे खुद से वह वह काम कर सकें। फिर मेरे मन में विचार आया कि मुझे बचपन से आइब्रो बनाने का बहुत शौक था और मैं आइब्रो बहुत अच्छा बना लेती थी। इसकी और ज्यादा जानकारी हासिल करने के लिए मैंने youtube पर बहुत सारे मेकअप के वीडियो देखना शुरु कर दिया। और यहीं से हमने मेकअप के बारे में काफी अच्छी जानकारी हासिल कर ली।
• मेकअप स्टूडियो खोला
आनंदी बताती है कि जब हमने youtube से मेकअप के बारे में अच्छे से जानकारी हासिल कर ली तो मैंने एक सैलून (Saloon) खोलने का विचार किया। इसके बाद मैंने दिल्ली में ही एक सैलून खोली। परंतु मेरी किस्मत यहां भी खराब निकली। मेरा यह सैलून सिर्फ दो महीने ही चला इसके बाद यहां कस्टमर का आना बंद हो गया और मेरी सैलून ठप हो गई। मैंने जितना भी सेविंग बचाकर रखा था वह भी सारा खत्म हो गया। जब मैं दिल्ली में सैलून खोली थी तब मैंने देखा कि यहां के लोग महंगी-महंगी गाड़ियां, सोने और घर पर बहुत सारा पैसा खर्च कर देते हैं परंतु किसी जरुरतमंद या फिर जो मेहनत से पैसे कमा रहे हैं उसे देने में यह लोग अपना हाथ पीछे कर लेते हैं।
जब मेरा मेकअप सैलून (Make-Up Saloon) ठप हो गया तो मैं बहुत निराश रहने लगी परंतु मैंने हार नहीं मानी और फिर से मैंने ठाना कि मैं एक बार और अपनी मेहनत के दम पर मेकअप सैलून खोलूंगी। परंतु मुझे फिर से मेकअप सैलून खोलने के लिए पैसे नहीं थे जिसके लिए हमने लोगों से कुछ कर्ज लिया और फिर से हमने मेकअप स्टूडियो खोला और अपने इस मेकअप स्टूडियो का नाम शैन्योर देखा। मैंने अपने शैली उनका नाम शैन्योर इसलिए रखा की यह नाम मेरी मां और दोस्तों के नाम से मिलकर बना हुआ है। मेरे इस सफलता के पीछे इन सभी लोगों का बहुत बड़ा हाथ है जिसकी वजह से हमने एक ऐसा नाम रखा कि वह मेरे मां, पापा और मेरे दोस्तों के नाम से मिलता जुलता हो।
• यूनीसेक्स पार्लर खोला
आनंदी बताती हैं कि आप लोगों ने यह तो देखा ही होगा कि हर जगह लड़कों के लिए अलग पार्लर होते हैं और लड़कियों के लिए अलग पार्लर होते हैं। ऐसा ही कुछ मेरे ही एरिया में था परंतु हमने इन सभी चीजों से कुछ अलग करने के बारे में सोचा जिसके बाद हमने यूनिसेक्स पार्लर खोला। इस पार्लर में लड़के और लड़कियां दोनों को सर्विस मिलती है। जिससे मेरा यह पार्लर काफी अच्छा रन करने लगा और मुझे किस से काफी अच्छी आमदनी होने लगी। मैं अपनी इस पार्लर के साथ-साथ ज्वेलरी कपड़े के ब्रांड का मॉडलिंग भी करने लगी। आज मैं उस ऊंचाई तक पहुंच गई हूं कि मैंने कभी सपने में भी नहीं सोची थी। मेरे सपने को साकार करने में मेरे दोस्तों और मेरे मां-पापा का बहुत बड़ा सपोर्ट रहा है जिसकी वजह से आज मैं अपने कामयाबी की ओर बढ़ चुकी हूं।
• उम्मीद का दामन थाम आगे बढ़ते रहे
आनंदी बताती हैं कि मुझे बचपन से ही काफी मुश्किलों का सामना करना पढ़ा है। पढ़ाई से लेकर के काम करने तक के लोगों के काफी ताने सुनने पड़े हैं परंतु मैं उन सभी के बातों को अनदेखा कर के आगे बढ़ती रही। मुझे वह दिन आज भी याद है जब बारिश के दिनों में छत से पानी टपकता था और रात भर मैं और मेरा परिवार बैठकर गुजारा करते थे। पैसे ना रहने की वजह से अपने लोगों ने हम लोगों को काफी दुत्कारते थे। परंतु अब वह मुश्किल के दिन गए और मैंने यहां सोचना है कि मैं अपने परिवार को एक अच्छी जिंदगी दे सकूं और उन्हें अब किसी भी चीज की तकलीफ ना हो।
यह भी पढ़ें:-मात्र 8000 रूपये में करें पूरे परिवार के साथ इन रमणीय स्थलों का भ्रमण
• प्रेरणा
आनंदी सागर सिंह से हमें प्रेरणा मिलती है कि अगर लड़कियां अपने सपनों को पूरा करना चाहती है तो वह अपने उम्मीद को कायम रखें और कभी भी अपने हौसलों को टूटने मत दें। अपने सपने को साकार करने के लिए आप जिद पर उतर जाए जब तक कि आपका सपना साकार ना हो और सफलता हासिल ना हो पाए।