हमारे समाज में ऐसी अवधारणा बनीं हुई है कि पढ़े-लिखे लोग जब कोई कारोबार करता है तो लोग उसकी बहुत आलोचना करते हैंं। लेकिन आज के समय में अब ये रिवाज खत्म होते जा रहा है और ऐसे अनेकों उदाहरण है जिसमे अब पढ़े-लिखे लोग भी नौकरी करने की जगह बिज़नेस हीं कर रहे हैं।
आज हम बात करेंगे एक ऐसे ही शख्स की, जिन्होंने IIM टॉपर और गोल्ड मेडलिस्ट होने के बावजूद भी नौकरी करने की बजाय सब्जी बेचना हीं उचित समझा। तो आइए जानते हैं उस शख्स से जुड़ी सभी जानकारियां-
कौन है वह शख्स ?
हम बात कर रहे हैं कौश्लेन्द्र सिंह (Kaushlendra Singh) की, जो कि मुल रुप से बिहार (Bihar) के नालंदा जिले के मोहम्मदपुर गांव के रहने वाले हैं। उनकी उम्र लगभग 36 वर्ष है। उन्होंने अपनी पांचवीं तक की पढ़ाई गांव के हीं प्राथमिक विद्यालय से की है। इसके बाद 6वीं से 10वीं तक की पढ़ाई उन्होंने नवोदय विद्यालय से की है। 12 वीं की पढ़ाई पटना से पूरी करने के बाद उन्होंनें एग्रीकल्चर से इंजीनीयरिंग की पढ़ाई गुजरात से पूरी की। भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद (आईआईएमए) से एमबीए की डिग्री हासिल की है। इसके अलावे वे गोल्ड मेडलिस्ट भी है।
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शुरु से हीं है काफी तेजतर्रार
कौश्लेन्द्र (Kaushlendra Singh) शुरु से हीं पढ़ने-लिखने में काफी तेजतर्रार थे। उन्होंने जब अपने गांव से हीं पाँचवी तक की पढ़ाई पूरी की, उसी समय उस विद्यालय के शिक्षक ने इन्हें नवोदय प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने की सलाह दी। इसके बाद इन्होनें अपने शिक्षक के सलाह को मानते हुए तैयारी की जिसमे उन्हें सफलता मिली और उन्होंने 6वीं क्लास से 10वीं क्लास तक की पढ़ाई नवोदय विद्यालय से पुरा किया। इसके बावजूद भी इन्होनें 12वीं तथा MBA के पढाई के दौरान बहुत अच्छा प्रदर्शन किया।
सब्जी बेचने का है कारोबार
IIM टॉपर रहे कौश्लेन्द्र (Kaushlendra Singh) ने अपनी MBA की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने सोचा कि बिहार के मजदूर वर्ग बहुत सारे लोग पैसे कमाने के लिए यहां से पलायन करते हैं। बिहार में कल-कारखाने नहीं रहने के कारण रोजगार के अवसर बहुत कम है। उन्होंने इन सभी मुद्दो पर गंभीरता से विचार करते हुए पलायन को रोकने के साथ ही कुछ लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने को सोच के साथ वापस बिहार लौट आए। बिहार लौटने के बाद इन्होनें सब्जी बेचने के साथ अपने कारोबार की शुरुआत किया।
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शुन्य से शिखर तक पहुँचाया कारोबार
कौश्लेन्द्र (Kaushlendra Singh) ने जब पटना में सब्जी की दूकान खोला तो उन्होंने पहले दिन मात्र 22 रुपए की बिक्री की थी। इसके बावजूद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपना काम चालू रखा। इसके बाद उन्होंने ‘कौशल्या फाउंडेशन’ कम्पनी की स्थापना वर्ष 2008 में किया। उनके कंपनी का काम गांव के किसानों से सब्जियां खरीद कर शहरों में बेचना था।
उन्होंने इस कंपनी के माध्यम से किसानो को ‘सम्रद्धि’ नाम की परियोजना बनाकर जोड़ा। शुरुवात में किसानों के साथ मिल कर उन्होंने इस काम की शुरूआत किया। धीरे-धीरे उनका कारोबार काफी तरक्की करते गया, वर्ष 2016-17 में उनकी कंपनी का टर्नओवर पांच करोड़ तक पहुंच गया। आज के समय में 22 हजार से ज्यादा किसान जुड़े हैं और 85 लोगों काम भी करते है।
लोगों के लिए बने प्रेरणा
अपने मेहनत और संघर्ष के बदौलत अच्छी-खासी शिक्षा हासिल करने वाले कौश्लेन्द्र (Kaushlendra Singh) ने समाज के उस अवधारणा को खत्म किया है, जिसमें कम पढ़े-लिखे लोगों को ‘सब्जी बेचने’ और ‘भैंस चराने’ जैसे शब्दों से ताना मारा जाता है। उन्होंने समाज को एक अच्छे संदेश से अवगत कराते हुए यह कर दिखाया कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता है, अगर उसे जुनून के साथ किया जाए तो एक न एक दिन बड़ी कामयाबी जरूर मिलती हैं