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एक गृहिणी से खाखरा के बङे बिजनेस तक, देश भर में आउटलेट्स के साथ विदेशों में भी अच्छी-खासी मांग

पहले के समय में सुविधाओं की कमी के कारण हम जहां रहते थे केवल वहीं के खाने का लुफ्त उठा पाते थे, परंतु बदलते समय के साथ हर जगह हर तरह का खाना उपलब्ध है। अक्सर ऐसा होता था हम अपने राज्य से दूसरे राज्य में जाते थे या दूसरे देश में जाते थे तो हमें वहां अपने राज्य का खाना नहीं मिल पाता था, परंतु अब ऐसा नहीं हैं।

यूं तो भारत के हर प्रदेश का कोई ना कोई डिश प्रसिद्ध अवश्य है। उन्हीं में से एक है गुजराती फूड। आज ना केवल देश में बल्कि विदेशों में भी गुजराती फूड काफी पॉपुलर हो चुका है। पहले गुजरात के अलावा किसी भी राज्य में गुजराती फूड नहीं मिलती थी, जिस वजह से बहुत कम ही लोग गुजराती खाने का स्वाद जानते थे। – Success story of Induben Khakhrawala from its inception till date.

  • इस तरह हुईं इंदुबेन खाखरावाला शुरूआत

ज्यादातर लोग प्रसिद्ध धारावाहिक ‘तारक मेहता के उल्टा चश्मा’ सीरियल के बाद गुजराती खाने के बारे में जानने लगे। ढोकला तो शुरुआत से ही प्रसिद्ध था परंतु अब ही गाठिया, फाफड़ा से लेकर खाखरा जैसे स्नैक्स भी लोगों की पहली पसंद बन गई है। आज हम आपको ‘इंदुबेन खाखरावाला’ (Induben Khakhrawala) की कहानी बताएंगे, जिनका खाखरा गुजरात से लेकर देश के अलग-अलग शहरों और विदेश तक पहुंच चुका है। आमतौर पर हम खाखरा को एक मसालेदार रोटी भी बोल सकते है। यह बेहद कुरकुरी होती है।

Induben Khakhrawala
  • गुजरात की स्पेशल फूड है खाखरा

बता दें कि खाखरा एक ऐसा सूखा नाश्ता है, जिसे बहुत कम तेल में बनाया जाता है और यह कई फ्लेवर में उपलब्ध है। बता दें कि खाखरा गेहूं के आटे, बेसन और कुछ मसालों को मिलाकर बनाया जाता है। अब तो देशभर के लोग इसे पसंद करने लगे हैं, लेकिन गुजरात और जैन कम्युनिटी में लोग इसे ज्यादा खाते हैं। अहमदाबाद की रहने वाली इंदुबेन जवेरी (Induben Zaveri) एक छोटे से घर में अपने तीन बच्चों और पति के साथ रहती थीं। इंदुबेन शुरू में एक आम वैसे तो वो एक आम गृहणी थीं, परंतु जब परिवार को पैसों की जरुरत पड़ी तो वह यह साबित कर दी कि महिलाएं कुछ भी कर सकती हैं। – Success story of Induben Khakhrawala from its inception till date.

उधार लेकर आगे बढ़ाई बिजनेस

  • साल 1960 में इंदुबेन ने काम करना शुरू किया। शुरुआत में वह अपना बनाया खाखरा डिस्ट्रिब्यूशन सेंटर में बेचती थी। कुछ समय बाद इंदुबेन ने खुद का बिजनेस शुरू करने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने उधार तक लिया और पति के लिए एक लूना खरीदी, जिससे वह खाखरा घर-घर पहुंचा सके। उस समय इंदुबेन घर और बिजनेस दोनों ही अकेले मैनेज कर रही थीं। जल्द ही लोगों को उनका खाखरा पसंद आने लगा। ऐसे में जब ऑर्डर बढ़े, तो उन्होंने अपने जैसी और भी महिलाओं को अपने साथ काम पर रखा। हालंकि 54 साल की उम्र में साल 1981 में इंदुबेन जवेरी का निधन हो गया। अच्छी बात यह थी कि उनके जाने के बाद भी उनके बनाए खाखरे का स्वाद जिंदा रहा।

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  • इंदुबेन के मौत के बाद उनके बेटे और बहू में संभाला बिजनेस

इंदुबेन के बाद उनके बेटे हिरेन और बहू स्मिता ने इस बिजनेस के कमान को अपने हाथ में लिया। इंदुबेन के जाने के बावजूद लोग उनके नाम से ही खाखरा खरीद लेते थे। ऐसे में 1982 में ‘इंदुबेन खाखरावाला’ (Induben Khakhrawala) नाम से पहला आउटलेट शुरू किया गया। इस आउटलेट में खाखरा के आलावा दूसरे नमकीन भी रखे गए थे। आगे चल कर हिरेन के दोनों बेटे निशित और अंकित जवेरी भी पिता की मदद करने लगे। साल 2010 में जब निशित और अंकित एक और आउटलेट खोलना चाह रहे थे, तब ही उनकी मुलाकात सत्येन शाह से हुई, जो कंस्ट्रक्शन बिजनेस से जुड़े थे।
देश भर में इंदुबेन खाखरावाला के कई आउटलेट

सत्येन खाखरा के प्रसिद्धता को देखते हुए उनका बिजनेस पार्टनर बनना चाहते थे। सत्येन शाह और निशित और अंकित मिलकर इंदुबेन खाखरावाला को एक कंपनी बना दिया। उसी का नतीजा है कि ‘इंदुबेन खाखरावाला’ (Induben Khakhrawala) के अहमदाबाद में 10 आउटलेट हैं। साथ ही, मुंबई, पुणे और उदयपुर में भी उनके कई आउटलेट हैं। बता दें कि भारत के बाहर भी कई देशों में उनका खाखरा डिस्ट्रीब्यूशन होता है।

  • 70 फ्लेवर्स में तैयार किया जाता हैं खाखरा

इंदुबेन खाखरावाला का एक बड़ा मैनुफैक्चरिंग यूनिट है, जहां खाखरा के 70 फ्लेवर्स तैयार किए जाते हैं। अब यह खाखरा के अलावा भी सैकड़ों स्नैक्स बनाते हैं, परंतु उनका खाखरा आज भी लोगों का सबसे फेवरेट है। इंदुबेन द्वारा शुरू किया गया यह छोटा सा बिजनेस अब 62 साल और तीन पीढियों का सफर तय कर चुका है। आज के समय में इंदुबेन खाखरावाला का एक बहुत बड़ा ब्रांड बन चुका है। उनकी सफलता की कहानियां बताती हैं कि छोटे प्रयास से भी बड़ा मुकाम हासिल किया जा सकता है। यह आज के लाखों बेरोजगार युवाओं के लिए एक सीख है। – Success story of Induben Khakhrawala from its inception till date.

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बिहार के ग्रामीण परिवेश से निकलकर शहर की भागदौड़ के साथ तालमेल बनाने के साथ ही प्रियंका सकारात्मक पत्रकारिता में अपनी हाथ आजमा रही हैं। ह्यूमन स्टोरीज़, पर्यावरण, शिक्षा जैसे अनेकों मुद्दों पर लेख के माध्यम से प्रियंका अपने विचार प्रकट करती हैं !

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