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1300 चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतारने वाले परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह की वीरता की कहानी

भारतीय सिपाही, जिनकी वीरता के प्रमाण देने की जरूरत नहीं होती है। इनकी हिम्मत और देश के प्रति समर्पण के कारण हीं आज हम सभी दुश्मनों से सुरक्षित हैं और बेफिक्र से जी पा रहे है। बरसों से हम इनकी वीरता की कहानी सुनते आ रहे हैं। इतिहास के पन्नो में दर्ज कुछ ऐसे ऐतिहासिक पल है, जिसे याद कर दुःख भी होता है और साथ हीं साथ अपने देश के सिपाहियों पर गर्व भी होता है। आज हम आपको एक ऐसे जाबाज सिपाही के बारे में बताएंगे, जिनकी गाथा सदैव अमर रहेंगी और साथ हीं लोगों के दिल में देश प्रेम की जोत जलाते रहेंगी।

18 नवंबर का इतिहास

18 नवंबर 1962 में भारतीय सेना के एक जांबाज ने ना केवल दुश्मन को घुटने टेकने पर मजबूर किया बल्कि लद्दाख पर कब्जा करने का नापाक इरादे को भी सफल नहीं होने दिया। देश के लिए मर मिटने वाले इस जवान का नाम है मेजर शैतान सिंह (Major Shaitan Singh)। यह वहीं शैतान सिंह है, जिन्होंने रेजांगला के युद्ध में भारतीय सेना की एक टुकड़ी का नेतृत्व किया था। उस समय उन्होंने चीनी सेना के लगभग 1300 चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था।

Story of Major Shaitan Singh

मरने के बाद भी नहीं छोड़ा था, बंदूक

मेजर शैतान सिंह ने युद्ध के दौरान अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। इस लड़ाई को लड़ते हुए वे शहीद हो गए थे। उस लड़ाई के करीब तीन महीने बाद जब उनकी पार्थिव शरीर मिली तो कुछ ऐसा दिखा जो रोंगटे खड़े कर देने वाला था। उन्होंने जंग के समय जैसे बंदूक पकड़ी थी, ठीक वैसे हीं शहादत के बाद भी पकड़े हुए थे। आईए जानते है इनके बारे में –

मेजर शैतान सिंह (Major Shaitan Singh)

मेजर शैतान सिंह का जन्म 1 दिसंबर साल 1924 को राजस्थान के जोधपुर जिले में हुआ था। उनके पिताजी का नाम लेफ्टिनेंट कर्नल हेम सिंह भाटी (Lt. Col. Hem Singh Bhati) है। इनके पिता एक सैन्य अधिकारी थे। बचपन से ही शैतान सिंह शौर्य और वीरता की कहानी सुनते हुए बड़े हुए और बड़े होकर अपने पिता की ही तरह सेना में जाना चाहते थे।

जब जोधपुर राज्य बल का हिस्सा बने

1 अगस्त 1949 को मेजर शैतान सिंह जोधपुर राज्य बल का हिस्सा बने। यह वह समय था, जब जोधपुर रियासत भारत का हिस्सा नहीं था। उसके बाद जोधपुर का भारत में विलय हुआ, तो उन्हे कुमाऊं रेजिमेंट में भेज दिया गया। इनकी काबिलियत को देखकर सन 1962 में इन्हें मेजर पद के लिए चुना गया। मेजर का पद प्राप्त होने के बाद ही भारत और चीन के बीच युद्ध का आरंभ हो गया।

दुश्मनों को दिया मुहतोड़ जवाब

लद्दाख की चुशूल घाटी पर 18 नवंबर 1962 को करीब 03:30 बजे सुबह दुश्मनों की ओर से फायरिंग शुरू हो गई। उतने ही सुबह मेजर शैतान सिंह ने उन्हें मुहतोड़ जवाब दिया। इतना कुछ करना आसान भी नहीं था क्योंकि वहां करीब हजारों दुश्मन थे। मेजर शैतान सिंह 13 कुमाऊं की लगभग 120 जवानों की टुकड़ी की कमान संभाले थे।

देखते हीं देखते दुश्मनों की बिछा दी लाशें

जब युद्ध की शुरुआत हुई थी, उस वक्त दुश्मनों के मुकाबले इनकी संख्या भी कम थी और इनके पास हथियार भी उतने उपलब्ध नहीं थे, परंतु इनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और हिम्मत की वजह से भारतीय सेना आगे बढ़ी। शैतान सिंह ने अपने साथियों को हिम्मत से मोर्चा संभालने को कहा और इस तरह भारत की तरफ से जवाबी फायरिंग शुरू कर दी गई। फिर क्या था, भारतीय सैनिकों ने देखते हीं देखते दुश्मनों की लाशें बिछा दी।

आखरी सांस तक लड़ने का लिया संकल्प

इस हमले में जब दुश्मनों ने देखा कि उनके कई जवान मारे जा चुके थे। तब उन्होंने बौखला कर मोर्टार दागने शुरू कर दिए। भारतीय सेना पूरी तरह से घिर चुकी थी और पीछे हटने के सिवा उनके पास दूसरा कोई रास्ता नहीं बचा था, परन्तु शैतान सिंह को यह रास नहीं आया और उन्होंने आखिरी सांस तक लड़ने का निश्चय कर लिया। वें दौड़-दौड़ कर अपने साथियों में हिम्मत भर रहे थे। तभी अचानक उन्हें गोली लग गई और वह पूरी तरह से घायल हो गए।
 
नही मानी हार

मेजर शैतान सिंह ने अपने साथियों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने की कोशिश किए और खुद जाने से इनकार कर दिया। इतना ही नहीं उन्होंने मशीन गन को रस्सी की मदद से अपने पैरों में बंधवाया था, ताकि वह ज्यादा से ज्यादा दुश्मनों को मार सकें, परंतु वे अधिक समय तक ऐसा नहीं कर सके। सुबह होते हीं मेजर समेत टुकड़ी के 114 सैनिक शहीद हो गए। इसके बावजूद जो भी सैनिक बचे थे उन्हें दुश्मनों ने बंदी बना लिया था, जिन्हें बाद में छोड़ दिया गया।

तीन महीने बाद हुआ कुछ ऐसा, जो सब देखते ही रह गए

युद्ध के दौरान बर्फबारी भी हो रही थी, जिसके कारण मेजर समेत उनके अन्य साथियों के पार्थिव शरीर लंबे समय तक नहीं मिल पाए थे। युद्ध के लगभग 3 महीने बाद जब शहीद मेजर शैतान सिंह का शव मिला तो सब आश्चर्यचकित रह गए, क्योंकि उनके पैरों में अभी भी मशीन गन बंधी हुई थी जिससे यह पता चलता है कि उन्होंने अपने अंतिम समय तक किस तरह से दुश्मनों का मुकाबला किया था।

लगभग 1300 से अधिक चीनी सैनिकों को मार गिराया था

युद्ध के दौरान भले ही भारतीय सेना को हार का सामना करना पड़ा , पर मेजर शैतान सिंह और उनकी टीम ने एक बड़ी संख्या में चीनी सैनिकों को मार गिराया था। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि करीब 1300 से ज्यादा चीनी सैनिकों को भारतीय जवानों ने अपनी गोली का निशाना बनाया था। शहादत के बाद जब मेजर शैतान सिंह की पार्थिव शरीर उनके गांव पहुंचा तो वहा सभी की आंखें भर आई थीं, पर उनका सिर मेजर के पराक्रम के कारण गर्व से ऊंचा हो गया।

परमवीर चक्र से किया गया सम्मानित

मेजर शैतान सिंह को हिम्मत और साहस के लिए वीरता के सबसे बड़े सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। आज भले हीं मेजर शैतान सिंह हमारे बीच नहीं है परंतु उनके हौसले की कहानी हमेशा हमारे बीच जिंदा रहेंगी। ऐसे महान सेना शहीद मेजर शैतान सिंह को हम सभी देशवासियों की ओर से शत्-शत् नमन है।

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