जन्म-मरण प्रकृति का नियम है जिसे कोई भी ठुकरा नहीं सकता है। सभी धर्मों में मरने के बाद अलग-अलग तरीके से अन्तिम संस्कार की क्रिया की जाती है। हिन्दू धर्म में लाश को शमशान घाट में जलाया जाता है। यदि आपने गौर किया होगा तो देखा होगा कि हिन्दू धर्म में शमशान घाट में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति नहीं होती है। इसलिए अन्तिम संस्कार की प्रक्रिया पुरुषों द्वारा किया जाता है साथ ही उस क्रिया को करवाने वाला भी पुरुष ही होता है।
लेकिन हमारे देश में एक शमशान घाट ऐसा भी है, जहां पुरुष नहीं बल्कि एक महिला अन्तिम संस्कार की पूरी प्रक्रिया करवाती है। इसी क्रम में चलिए जानते हैं उस महिला के बारें में जिसने पुरुष और महिला के भेद को मिटाकर अन्तिम संस्कार करवाती है।
कौन है वह महिला?
हम बात कर रहे हैं माया देवी बंजारा (Maya Devi Banjara) की, जो राजस्थान (Rajasthan)के जयपुर (Jaipur) शहर में स्थित त्रिवेणी (Triveni) नगर में मौजूद शमशान घाट में अन्तिम संस्कार (Funeral) की पूरी प्रक्रिया स्वयं ही करती हैं। लाशों की अन्तिम क्रिया करवाने के साथ-साथ वह शमशान घाट (Shamshan Ghat) की देखभाल भी करती हैं। ऐसी जगह जहां हिन्दू धर्म में महिलाओं का जाना वर्जित है वहां माया देवी अपनी मां से यह शिक्षा लेकर काम करती हैं।
महज 10 वर्ष की उम्र से ही अन्तिम सन्स्कार मे करने लगीं मां की मदद
माया देवी कहती है, जब उन्होंने अपनी मां की शमशान में काम करते देखा तो उनसे पूछा था कि आप यह काम क्यों करती हैं तो उनकी मां ने जवाब दिया था, यदि हम शर्माने लगेंगे तो भूखे मर जाएंगे और काम में शर्म कैसी। माया की उम्र जब महज 10 वर्ष की थी तभी से वह अपनी मां के साथ काम में हाथ बंटाती हैं। वह अपनी मां के साथ शव जलाने के लिए लकड़ियां उठाती थी।
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मां के बाद खुद के कंधें पर ले लिया शमशान घाट की जिम्मेदारी
माया देवी बताती हैं कि, उनकी मां ने 35 वर्षों तक शमशान घाट की देखरेख और वहां का काम किया। उसके बाद माया ने इस काम को अपने कंधों पर ले लिया और शव दहन से लेकर अंत्येष्टि (Funeral) की सभी प्रक्रिया अकेले ही करने लगी। अन्तिम संस्कार की क्रिया के लिए आवश्यक चीचे तैयार करती हैं जैसे शव जलाने के लिए लकड़ी तौलना, नारियल में घी भरना।
अन्तिम संस्कार के सभी कार्यों को स्वयं करती हैं माया देवी
चिता को अग्नि भी स्वयं माया देवी (Maya Devi Banjara) ही देती हैं और कपाल क्रिया भी करती हैं। कपाल क्रिया उस क्रिया को कहा जाता है जिसमें शव का सिर नहीं जलने पर उसपर डंडे से मारकर उसे जलाया जाता ताकि शरीर का कोई भी अंग न बचे। इतना ही नहीं यदि किसी लाश को कंधा देनेवाला कोई नहीं रहता है उस लाश को कन्धा भी देती हैं और अन्तिम क्रिया के लिए शमशान घाट के अंदर लेकर आती हैं।
आमतौर पर अंत्येष्टि करने के लिए पैसे दिए जाते हैं लेकिन माया देवी (Maya Devi Banjara) लावारिश लाशों का दाह संस्कार करने के लिए उन्हें पैसे नहीं मिलते हैं।इसके बारें में वह कहती हैं कि यह काम तो धर्म का है और वे इसे करके प्रसन्न हैं।
बेटियां करती हैं उनकी मदद
माया देवी बंजारा की चार बेटियां और एक बेटा है जिसमें से उन्होंने अपनी दो बेटियों का विवाह कर दिया है और दो बेटियां अभी स्कूली शिक्षा ग्रहण कर रही हैं। हालांकि, शमशान (Shamshan Ghat) में माया देवी के काम में उन्हें अपने पति से किसी भी प्रकार की सहायता नहीं मिलती है लेकिन उनकी बेटियां उनका हाथ बंटाती हैं। उनकी एक बेटी का सपना है कि बड़े होकर और पढ़-लिखकर कलेक्टर बनें और अपनी मां का नाम रोशन करें।
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डरना जिंदा इंसानो से चाहिए, मरे हुए से कैसा डर
माय देवी की एक बेटी का नाम अंजलि है जो अभी स्कूल में पढ़ती है। चूंकि, मां शमशान घाट में काम करती हैं जहां जाने में सभी डरते हैं, ऐसे में उनके दोस्त पूछते हैं कि मां दाह संस्कार करवाती हैं इससे डर नहीं लगता। अंजलि इस सवाल का जवाब बहुत ही बेहतर और निडर तरीके से देते हुए कहती हैं कि मुझे डर नहीं लगता। इसके अलावा जब उनसे पुछा गया कि क्या वहां कोई ऐसी घटना हुई है जिससे डर लगा हो तो इसके उत्तर में वह कहती हैं कि, डर जिन्दा इंसानों से होना चाहिए, मरे हुए से क्या डरना।
प्रेरणा…
शमशान घाट (Shamshan Ghat) जहां सिर्फ पुरुष जा सकते हैं और सर्द वे ही अन्तिम संस्कार की क्रिया कर सकते हैं, ऐसे में माया देवी बंजारा (Maya Devi Banjara) यह काम कर रही हैं जो प्रशंशनीय है। हालांकि, अब ऐसा कोई काम नहीं है जिसे महिलाएं नहीं कर सकती हैं। शमशान घाट की देखरेख और लाशों का अन्तिम संस्कार करके उन्होंने साबित कर दिया है कि महिलाएं कुछ भी कर सकती हैं। उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं।