जगदीश लाल आहूजा (Jagdish Lal Ahuja), जो लंगर बाबा के नाम से प्रसिद्ध हैं। चंडीगढ़ के रहने वाले जगदीश (Jagdish) पिछले 39 साल से जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाते आ रहे हैं। यही वजह है कि उनका नाम लंगर बाबा पड़ गया। आज हम आपको लंगर बाबा (Langar Baba) के बारे में बताएंगे, जो कभी भूखे मरने पर मजबूर थे वह व्यक्ति करोड़पति कैसे बने और फिर दादी से मिली प्रेरणा को निभाने के लिए वह दर्जनभर के करीब संपत्ति बेच चुके हैं।– Jagdish Lal Ahuja is providing free food to poor people every day for the last 39 years.
20 साल से लोगों को मुफ्त में खिला रहे हैं खाना
जगदीश (Jagdish) चंडीगढ़ (Chandigarh) के बनाना किंग के नाम से भी मशहूर हैं। वह करीब 20 साल से बिना किसी छुट्टी के पीजीआईएमएस (PGIMS) के बाहर दाल, रोटी, चावल और हलवा बांट रहे हैं। उनकी मदद से पीजीआईएमएस का कोई मरीज रात में भूखा नहीं सोता है। लोग जगदीश को बाबा और इनकी पत्नी को जय माता दी के नाम से जानने लगे हैं। अपको बता दें कि यहां हर रात 500-600 व्यक्तियों का लंगर तैयार होता है। लंगर के दौरान आने वाले बच्चों को बिस्कुट और खिलौने दी जाती हैं। मजबूरों का पेट भरने के लिए जगदीश अपनी जमीन-जायदाद तक बेच चुके हैं।
भारत-पाकिसतान के बंटवारे के समय आए थे भारत
जगदीश भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के दौरान 12 साल की उम्र में पंजाब के मानसा शहर आए थे। उस समय वह जिंदा रहने के लिए रेलवे स्टेशन पर नमकीन दाल तक बेचे ताकि किसी तरह पेट भरा जा सके। कुछ समय बाद वह पटियाला आ गए और यहां गुर, फल आदि बेचने लगे। साल 1950 के बाद करीब 21 साल की उम्र में जगदीश चंडीगढ़ आ गए और एक रेहड़ी किराये पर लेकर केले बेचना शुरू कर दिए। बता दें कि उस समय चंडीगढ़ को देश का पहला योजनाबद्ध शहर बनाया जा रहा था।– Jagdish Lal Ahuja is providing free food to poor people every day for the last 39 years.
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चंडीगढ़ जा कर बदली किस्मत
जगदीश (Jagdish) के अनुसार वह चंडीगढ़ (Chandigarh) केवल 4 रुपए 15 पैसे लेकर गए थे। वहां जाकर उन्हें पता चला कि यहां मंडी में किसी ठेले वाले को केला पकाना नहीं आता था, लेकिन पटियाला में फल बेचने के दौरान उन्हें इस काम का बहुत अच्छे से अनुभव हो गया था। इसी काम के जरिए वह आगे बढ़े और कामयाबी के मार्ग पर निकल पड़े। लोगों को भोजन करवाने की प्रेरणा जगदीश की दादी माई गुलाबी से मिली, जो गरीब लोगों के लिए अपने शहर पेशावर में इस तरह के लंगर लगाया करती थी।
पेट के कैंसर से पीड़ित होने के बावजूद करते हैं लोगों की सेवा
जगदीश बताते हैं कि साल 1981 में उन्होंने अपने बेटे के जन्मदिन पर पहली बार लंगर लगाने का क्रम शुरू किया था। उस दिन लंगर में सैकड़ों लोगों की भीड़ जुटी। ऐसे में खाना कम पड़ने पर पास के ढाबे से रोटियां मंगवाई गई। उसके बाद से मंडी में लंगर लगाने का शुरू किया गाया। अपको बता दें कि जनवरी 2000 में जब वह पीजीआईएमएस में एडमिट थे तो जिंदगी बड़ी मुश्किल से बच पाई थी। आज भी पेट के कैंसर से पीड़ित जगदीश लाल आहूजा ज्यादा दूर चल नहीं पाते, लेकिन उनका लोगों की मदद करने का जज्बा खत्म नहीं हुआ। – Jagdish Lal Ahuja is providing free food to poor people every day for the last 39 years.