भारत को गांवों का देश कहा जाता है क्योंकि यहां की आधे से अधिक आबादी गांवों में निवास करती है। लेकिन अब काम और बेहतर जीवन की तलाश में लोग गांवों से शहर की ओर पलायन करने लगे हैं जिससे कई गांव सुने पड़ गए हैं। वहीं इसके विपरीत कुछ गाँव इतने विकसित हैं कि उसे अलग नाम दे दिया गया है जैसे IITians का गांव, पनीर वाला गांव, IAS, IPS का गांव आदि। ठीक उसी प्रकार भारत में एक गांव ऐसा है जिसे “शिक्षकों का गांव” (Teachers Village) कहा जाता है। इसी कड़ी में चलिए जानते हैं इस गांव के बारें में विस्तारपूर्वक-
हडियोल गांव को कहते हैं शिक्षको का गांव
हम बात कर रहे हैं हडियोल गांव (Hayidol Village) की, जो गुजरात के अहमदाबाद से 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस गांव की विशेषता यह है कि यहां हर घर में सेवानिवृत शिक्षक हैं या तो हर चौथा व्यक्ति शिक्षक है। इसलिए इसे भारत का असल “गुरु-ग्राम” भी माना जाता है। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, गुजरात के सभी जिलों में हडियोल गांव का इन्सान शिक्षक के पद पर जरुर मौजूद है।
1955 में हुई इस अनोखी पहचान की शुरूआत
हडियोल गांव में कुछ घर ऐसे भी हैं जो तीन वंशों से बच्चों को पढ़ाने का काम कर रहे हैं। साबरकान्ठा प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रमुख का नाम संजय पटेल है। वह बताते हैं कि इस गांव को गुरु ग्राम बनने की परम्परा 1955 में शुरु हुई। जब हमारे देश भारत को आजादी मिली उसके आठ वर्ष बाद इस गांव के तीन लोगों ने शिक्षक के रूप में पढ़ाने का काम शुरु किया।
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गाँव के सबसे पुराने शिक्षक ने कही यह बात..
इस गांव के जो सबसे पुराने शिक्षक हैं उनका नाम हीराभाई पटेल है। वह कहते हैं कि उस दौर में शिक्षा का उतना अधिक मह्त्व नहीं था इसलिए एक शिक्षक बनने के लिए 7वीं पास करना जरुरी थी। यदि कोई 7 वीं कक्षा पास नहीं था तो वह शिक्षक नहीं बन सकता था। वह आगे कहते हैं कि उस समय उनके साथ सिर्फ 25 लोग ही प्राथमिक टीचर्स सर्टिफिकेट्स कोर्स मुझें दाखिला लिया था। उस दौरान उनके परिवार के 9 सदस्यों ने शिक्षक बनने का सपना साकार किया।
हुई विश्वमंगलम स्कूल की स्थापना
गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के बाद अब आजाद भारत में समय बदल रहा था और इस बदलते समय के साथ लोगों को शिक्षा का महत्व समझ में आने लगा था। हडियोल के रहनेवाले दंपत्ति गोविंद रावल और उनकी पत्नी सुमती बेन ने शिक्षा का प्रचार प्रसार करने के लिए स्कूल खोलने का फैसला का फैसला किया। उसके बाद उन्होंने हडियोल गांव से डेढ़ किलोमीटर दूरी पर स्थित अकोदरा गांव में “विश्वमंगलम” (Vishwamangalm) नाम से स्कूल की स्थापना की। वे चाहते थे कि इस विद्यालय के जरिए उनके गांव के बच्चों में शिक्षा की अलख जगे और उनका भविष्य बेहतर बने। वहां के बच्चें जब अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी कर लेते तब वे विश्वमंगलम में दाखिला लेकर आगे की पढ़ाई करते।
महिलाओं के खुला पीटीसी कॉलेज
चूँकि, समय के उस दौर में महिलाओं के लिए भविष्य बनाने के लिए अधिक विकल्प नहीं था। इसके बावजूद भी स्कूल के साथ ही महिलाओं के भी एक पीटीसी कॉलेज की स्थापना की गई। इस कॉलेज की स्थापना से महिलाओं की शिक्षा गहरा प्रभाव पड़ा। अपनी मैट्रिक की शिक्षा पूरी करने के बाद वे आगे की पढ़ाई करने के लिए कॉलेज में दाखिला लेने लगीं। परिणाम यह हुआ कि शिक्षित होने के बाद वे अपने बच्चों की अच्छी शिक्षा पर विशेष ध्यान देने लगीं। इसके अलावा पुरुषों को भी अच्छी शिक्षा लेने पर मजबूर होना पड़ा।
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शिक्षकों को दी जाती थी इज्ज्त
वैसे तो आजकल कुछ लोग कहते हैं कि जिसे कुछ नहीं आता है वह शिक्षक बन जाता है तो वहीं कुछ शिक्षक पैसे के लालची होते हैं। इसके अलावा अब लोग शिक्षक कम और दूसरे नौकरी पेशा बना ज्यादा चाहते हैं। लेकीन उस दौर में शिक्षक को एक विशेष आदर-सम्मान दिया जाता था। इसलिए बोर्ड की परीक्षा में टॉपर होनेवाला भी गुरु बनना चाहता था। हालांकि, इसका एक कारण यह भी था कि अभी देश इतनी तरक्की पर नहीं था कि अधिक उद्योग खुल सके और साथ ही खेती करने से बेहतर था एक शिक्षक बनना। ऐसे में वहां शिक्षकों की संख्या बढ़ने लगी और इस प्रकार आगे चलकर इस गांव को शिक्षकों का गांव कहा जाने लगा।
अपराध में आई कमी
हडियाल गांव (Hadiyol Village/Teachers Village) में पढ़ाई का स्तर अधिक होने की वजह से आज वहां शिक्षक भी अधिक हैं और इस वजह से वहां अपराध की कम होते हैं। इसके अलावा लोगों की शराब और तंबाकू पीने की बुरी आदतें भी छुट गईं। हडियाल गांव मे आर्थिक रुप से अच्छे परिवार आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के बच्चों की उनकी पढ़ाई में सहायता करते हैं, ताकि गरीब परिवार के बच्चों को भी अच्छी शिक्षा मिल सके। इस गांव के लोगों ने उन लोगों की सोच पर बदलाव की मुहर लगाया है जो कहते हैं कि शिक्षक वहीं बनता है जिसे कुछ नहीं आता। इसके विपरीत इस गांव ने साबित किया है समाज बदलने वाला ही शिक्षक बनता है।