15 अगस्त 1947.. आज़ाद भारत.. आज़ाद हवा.. आज़ाद सांसे.. 14 अगस्त 1947 तक वाला भारत अब बिल्कुल बदल चुका था। लेकिन ये बदलाव एक दिन का नहीं था और न ही इतना आसान था। इसके लिए हमारे देश के कई स्वतंत्रता संग्रामियों ने पूरी सच्चाई और ईमानदारी से लड़ाई लड़ी थी।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अहिंसा के बल पर यह लड़ाई लड़ी। सत्याग्रह आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन, साइमन वापस जाओ जैसे कई आंदोलन किए। चंद्रशेखर आजाद जिन्होंने युवा क्रांतिकारियों की एक फ़ौज खड़ी कर दी थी। किसी अंग्रेज़ के हाथों नहीं मरे। इसलिए इन्होंने ख़ुद को गोली मार ली और देश के लिए शहीद हो गए। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए लड़ी जानी वाली सबसे पहली लड़ाई यानी 1857 ई• का विद्रोह और मंगल पांडेय भूले नहीं भुलाए जा सकते। 23 मार्च 1931.. जब भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव देश के लिए हंसते-हंसते फांसी के झूले पर झूल गए।
लाल, बाल, पाल कहे जाने वाले पंजाब केसरी लाला लाजपत राय, “स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर ही रहेंगे” का उद्घोष करने वाले बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल। आज़ादी के समय 9 साल जेल में बिताने वाले लाल बहादुर शास्त्री। “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा” का नारा लगाने वाले सुभाष चन्द्र बोस।
पुरुषों के साथ रहा महिलाओं का भी योगदान
भारत के आज़ादी की लड़ाई में पुरुषों के साथ साथ महिलाओं का भी योगदान रहा। इतिहास गवाह है कि आज़ादी की लड़ाई में महिलाएं समय समय पर अपनी बहादुरी और साहस का प्रयोग कर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चली हैं। आज भारत में जब भी हम महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं तो महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई का नाम बड़े ही सम्मान से लेते हैं। इन्होंने देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम यानी 1857 में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इनके अप्रतिम शौर्य से चकित होकर अंग्रेज़ों ने भी इनकी प्रशंसा की थी।
लखनऊ की शासिका और बगावत की कयादत करने वाली बेगम हज़रत महल… इनके बारे में इतिहासकार ताराचंद लिखते हैं कि बेगम ख़ुद हाथी पर चढ़कर लड़ाई के मैदान में फ़ौज का हौसला बढ़ाती थीं।
जर्मनी में आयोजित एक सभा में देश का झंडा फहराने वाली मैडम भीकाजी कामा। भारत कोकिला सरोजिनी नायडू जो सिर्फ़ कवियत्री ही नहीं बल्कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थी। इन्होंने ख़िलाफत आंदोलन की बागडोर संभाली थी। नई नवेली दुल्हन और शांत स्वभाव की सीधी-सादी भारतीय महिला कमला नेहरू भी समय आने पर लौह स्त्री साबित हुई जो पूरे आत्मविश्वास से धरने और जुलूस में अंग्रेज़ों का सामना करती थीं। सीक्रेट कांग्रेस की शुरुआत करने वाली उषा मेहता सावित्री बाई फुले। सिस्टर निवेदिता, एनी बेसेंट, सुचेता कृपलानी और भी ऐसे अनगिनत नाम हैं जिन्हें याद कर सभी भारतवासी सर श्रद्धा से झुकाते हैं।
इतने लोगों के संघर्षमय जीवन के बाद 15 अगस्त 1947 की वो सुबह अाई थी जब हम स्वतंत्र हुए। तब जाकर आज़ाद भारत.. आज़ाद हवा.. आज़ाद सांसे.. हमारे हिस्से अाई। फिर एक नई कहानी शुरू हुई “एक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर भारत की।” The Logically इन सभी स्वतंत्रता संग्रामियों के निःस्वार्थ देश प्रेम की भावना को नमन करता है जिसके बदौलत हम स्वतंत्र भारत में सांस ले पा रहें हैं।