Monday, December 11, 2023

शिक्षक की नौकरी छोड़ शुरू किए मधुमक्खी पालन, अब 20-25 लाख तक सलाना कमा रहे हैं: Bee Farming

हमारे यहाँ एक कहावत है कि, “पंख होने से क्या होता है, हौसलों से उड़ान होती है, मंजिलें उनको ही मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है”। जी हां, अगर आपके पास हौसला है तो आप किसी भी मंजिल को आसानी से पा सकते है। आज हम बात करेंगे, एक ऐसे ही हरियाणा के शख्स की, जो कि शिक्षक की नौकरी छोड़ दो दशक पहले मधुमक्खी पालन का काम शुरू किया। और यह बात सुनकर आपको आश्चर्य जरूर होगा कि उस किसान की तारीफ ‘मन की आवाज’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी जी ने किया। जी हां हम बात कर रहे है मधुमक्खी पालन (Bee Keeping) करने वाले हाफिजपुर के सुभाष कांबोज (Subash kamboj) की।

मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने किया सम्मानित

90 के दशक में 1500-1600 रुपये की नौकरी करने वाले डीपीएड पास ये किसान आज मधुमक्खी पालन के जरिये 16 लोगों को रोजगार दे रहे हैं। शहद के अलावा मधुमक्खियों से प्राप्त होने वाले छह अन्य उत्पाद तैयार कर रहे हैं। इतना ही नहीं दर्जन भर युवाओं ने उनसे प्रेरणा लेकर मधुमक्खी पालन का काम शुरू किया और अलग-अलग राज्य में सैकड़ों किसानों को प्रशिक्षण भी दे चुके हैं। मधुमक्खी पालन के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्यों के लिए सुभाष को बीते दिनों मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने सम्मानित भी किया है।

Subhash kamboj teacher

लाखों की कर रहे है अब कमाई

एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू के अनुसार, सुभाष कांबोज स्नातक पास है और उन्होंने डीपीएड का डिप्लोमा भी किया हुआ है। 1996 से पहले उन्होंने निजी विद्यालय में शिक्षक के रूप में कार्य किया है। 1996 में खादी ग्राम उद्योग से मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद मधुमक्खी पालन के 6 बॉक्स से उन्होंने काम शुरू किया था, तथा आज वह अपने प्रयास के बदौलत लाखों की कमाई करते हैं।

शहद के साथ साथ और भी प्रोडक्ट हो रहे तैयार

सुभाष कांबोज बताते हैं कि, मधुमक्खियों से केवल शहद ही प्राप्त नहीं किया जा रहा बल्कि और भी कई उत्पाद हैं, जिनको तैयार कर किसान अपनी आर्थिक स्थिति सुधार सकते हैं। सामान्य तौर पर किसान शहद ही निकालते हैं, लेकिन वह बी-वैनम, रॉयल जैली, बी-पॉलन, बी-पर पॉलिश व कॉम्ब हनी भी तैयार कर रहे हैं। यह उत्पाद कई प्रकार की बीमारियों के उपचार में लाभकारी सिद्ध होते हैं और मार्केट में इनके भाव काफी ऊंचे हैं।

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मधुमक्खी पालन में कौन कौन सी है परेशानियां

शिक्षक रह चुके सुभाष कांबोज का कहना है कि, मधु मक्खी पालन एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें हर कदम पर जोखिम है। मधु मक्खी पालन केवल एक ही स्थान पर रहकर नहीं किया जा सकता। फूलों की खेती के लिहाज से अन्य प्रदेशों में कारोबार को शिफ्ट करना होता है। सबसे बड़ी चुनौति ट्रांसपोर्टेशन की है। इस दौरान नुकसान की संभावना काफी रहती है। दूसरा, बाजार में शहद का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय नहीं है। अधिक उत्पादन होने की स्थिति में दामों में गिरावट आ जाती है। तीसरा, हाईब्रिड बीजों के चलन से फूलों में मकरंद की मात्रा घट रही है और फूलों की खेती भी सिकुड़ रही है। चौथा, बीमा की सुविधा नहीं है। सरकार को चाहिए कि इस उद्योग से जुड़े व्यवसायियों को राहत देते हुए शहद का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करे और व्यवसायियों के साथ-साथ व्यवसाय का बीमा भी सुनिश्चित किया जाए। व्यवसायी सुनसान जंगलों रहते हुए जान जोखिम में डालकर शहद का उत्पादन करते हैं।

 bee farming

सैकड़ों किसानों को दे चुके प्रशिक्षण

विद्या प्रतिस्ठान स्कूल ऑफ बायोटेक्नोलॉजी पुणे में किसानों के शिष्टमंडल को दो दिवसीय प्रशिक्षण दिया। इसके अलावा कृषि विज्ञान केंद्र कोटा, भरतपुर में नेशनल बी-बोर्ड द्वारा आयोजित सेमिनार में, उप्र के धीराखेड़ी गांव में, वाराणसी सहित अन्य कई स्थानों पर आयोजित सेमिनारों के दौरान सुभाष कांबोज किसानों को मधु मक्खी पालन का प्रशिक्षण दे चुके हैं। उनका कहना है कि युवाओं को स्वरोजगार को अपनाना चाहिए। क्योंकि ऐसा कर वह स्वयं भी अपनी आजीविका कमा सकते हैं और दूसरों को भी रोजगार मुहैया करवाने में सक्षम साबित हो सकते हैं।

छह बॉक्स से की थी शुरुआत

सुभाष कांबोज ने बताया कि, भूतमाजरा निवासी कुलवंत ¨सह से उसने मधुमक्खी के छह बॉक्स 5500 रुपये खरीदे। कुछ पैसे उन्होंने अपनी तनख्वाह से बचा कर रखे थे और कुछ घर से लिए। अपने खेतों की मेढ़ पर इनको रखकर काम शुरू कर दिया। पहले सीजन में उनको खास फायदा नहीं हुआ, लेकिन हौसला नहीं छोड़ा। उनके मुताबिक यदि इस व्यवसाय को गंभीरता व विशेषज्ञों से परामर्श अनुसार किया जाए तो एक वर्ष में एक बाक्स से करीब 8 हजार रुपये की आमदन हो सकती है। कुल आमदन बॉक्श की संख्या पर निर्भर करती है। उनका कहना है कि 20 बॉक्स से यह कारोबार आराम से शुरू किया जा सकता है और करीब 50 हजार रुपये खर्च आता है।