हम सभी यह सोचते हैं कि आखिर कोई व्यक्ति इतना अमीर कैसे हो जाता है और इसका व्यापार कैसे इतना फलने फूलने लगता है?? लेकिन हम सभी ये नहीं जानते कि किसी भी व्यवसाय को एक बड़ा रूप लेने में दशकों का वक्त लग जाता है। जितना कठिन होता है बड़ा साम्राज्य स्थापित करना उससे भी ज्यादा कठिन होता है उसे उस स्थान पर कायम रखना क्योंकि कुछ लोगों की प्रगति रुक जाती है और वह नीचे भी आ जाते हैं।
आज की हमारी यह कहानी उन बिजनेस ब्रांड्स और उनके मालिक की है जो आज से नहीं बल्कि आजादी के पूर्व से कम्पनियां खड़ी की गई है। प्रेरणादायक बात ये कि ये ब्रांड्स आज भी लोगों के बीच उसी तरह जारी है जैसे पहले था। चलिए उन बिजनेस ब्रांड्स के विषय में विस्तार से जानते हैं…..
वे बिजनेस ब्रांड्स के नाम निम्न हैं….
- बिसलेरी
- फेविकल
- डाबर
- महिंद्रा एंड महिंद्रा
- ओबरॉय होटल
ये कम्पनियां आज अपनी मेहनत के बदौलत सैकड़ो या हज़ारों में नहीं बल्कि अरबों में खेलती है। इनका इतना बड़ा साम्राज्य है कि इन्हें युवा या बुजुर्ग ही नहीं बल्कि बच्चा-बच्चा जानते हैं।
- बिसलेरी (Bisleri)
आज बिसलेरी (Bisleri) कंपनी के बारे में कौन नहीं जानता। बिसलेरी का पानी कितना शुद्ध होता है यह हम सभी जानते हैं लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि यह कंपनी पहले पानी नहीं बल्कि मलेरिया की दवा बनाती थी। इसकी शुरुआत वर्ष 1921 में felice bisleri ने की जो कि एक इटालियन व्यवसायी थे। जब उनका इंतकाल हो गया तो इस कंपनी को उनके फैमिली जिनका नाम रोजिज था उन्होंने खरीद ली।
यहीं से शुरू हुआ सफर बदलाव का। उन्होंने अपने एक मित्र खुसरो सन्तुक की मदद बिसलेरी वाटर प्लांट की स्थापना की और पानी बेचना शुरू कर दिया। उस दौर में बिसलेरी (Bisleri) सोडा एवं पानी का निर्माण किया करती थी और पानी का मूल्य मात्र 1 रुपए था। यह कीमत काफी बड़ी रकम हुआ करती थी जिस कारण इसे बड़े धनी लोग ही खरीदा करते थे और यह बड़े-बड़े फाइव स्टार होटलों में भी जाया करता था। हालांकि कंपनी के संस्थापक यह चाहते थे कि यह आम आदमी के बीच आए इसकी इसलिए धीरे-धीरे उन्होंने इसे आम आदमी के बीच में लाना प्रारंभ कर दिया।
यहां एक बार फिर टर्निंग प्वाइंट आया और इस कंपनी को चौहान ब्रदर्स ने प्रमोट किया जिस कारण इसमें बहुत से परिवर्तन किए गए और यह व्यवसाय काफी आगे बढ़ने लगा। रास्ते में आए कई बाधाओं को तोड़ते हुए बिसलेरी में वह सफलता हासिल की जो आज भी कायम है। यह हमारे देश की सील वॉटर बॉटल कंपनी है जो अरबो रुपए कमा रही है। बिसलेरी के लगभग 135 प्लांट्स है और यह कंपनी प्रतिदिन दो करोड़ लीटर से भी ज्यादा पानी का निर्यात करती है। वहीं अगर रिटेलर की बात की जाए तो इसके लाखों रिटेलर हैं। वर्ष 2019 में ये कम्पनी 24 बिलियन डॉलर का साम्राज्य स्थापित की थी और वर्ष 2023 तक 60 बिलियन डॉलर की सम्भवना है।
- फेविकल (Fevicol)
अगर घर में कोई भी चीज टूट या फूट गई तो हम एक ही बात बोलते हैं कोई बात नहीं ये फेविकल (Fevicol) से चिपक जाएगा। लेकिन क्या आप जानते हैं ये कम्पनी कितनी मुश्किलें झेलती हुई सफलता हासिल कर आज भी उसे कायम की हुई है। इसके संस्थापक बलवंत पारेख गुजरात के महुवा नामक गांव के निवासी थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा संपन्न करने के उपरांत वकालत की डिग्री हासिल करने के लिए हालांकि मुंबई जाने का निश्च्य किया। हालांकि यहां जाने के बाद उन्होंने अपने जीवन यापन के लिए वकालत ना कर के डाइनिंग तथा प्रिंटिंग प्रेस में जॉब करनी शुरू कर दी। फिर उन्होंने एक चपरासी का भी जॉब किया इस दौरान उन्होंने बहुत कुछ सीखा क्योंकि वह लकड़ी के व्यापारी का क्षेत्र उनके लिए काफी बड़ा सिद्ध होने वाला था।
अब उन्होंने सपने संजोने शुरू कर दिया परंतु इसके लिए मेहनत के साथ-साथ हर चीज की भी आवश्यकता थी। उन्हें अपने सपनों को साकार करने का मौका उस वक्त मिला जब हमारा देश अंग्रेजों के गुलाम से छूटकर आजाद हुआ। जब वह चपरासी का जॉब करते थे तब उन्होंने देखा था कि एक लकड़ी को जोड़ने हेतु यहां काम करने वाले कारीगरों को कितनी मशक्कत का सामना करना पड़ता था। इस के लिए जानवरों की चर्बी का उपयोग होता था और गोंद के लिए इसे जलाया जाता था। जिसकी महक बहुत ही खराब थी इससे कारीगरों को दिक्कत भी होती थी। तभी उन्होंने यह निश्चय कर लिया था कि आगे चलकर वह ऐसे गोंद का निर्माण करेंगे जिससे किसी भी प्रकार की दिक्कत ना हो और इसके निर्माण में भी ज्यादा वक्त ना लगे।
अब उन्होंने जानकारी एकत्रित करने प्रारंभ कर दी और अपने भाई सुनील पारेख की मदद से उन्होंने वर्ष 1959 में पिडीलाइट ब्रांड की आधारशिला रखी। यह गोंद खुशबूदार होने के साथ-साथ देखने में भी काफी खूबसूरत लगता है और इसका डिमांड आज बहुत ज्यादा है। आज उनका नाम फोर्ब्स की लिस्ट में शामिल है और उनकी कुल संपत्ति 1.36 बिलियन डॉलर है।
- डाबर (Dabur)
आज डाबर (Dabur) के बारे में हमारे घर का हर एक छोटा बच्चा भी जानता है। डाबर (Dabur) की शुरूआत वर्ष 1884 में आयुर्वेदिक डॉक्टर एस के बर्मन ने की थी जो कोलकाता के निवासी थे। वह स्वयं हाथों से जड़ी बूटियों को कूट कर प्रोडक्ट का निर्माण किया करते थे और उनकी यह कंपनी काफी ऊंचाई पर बढ़ने लगी और बहुत ही जल्द बड़ी सफलता भी हासिल कर ली। उन्होंने अपनी कंपनी का नाम डॉक्टर और बर्मन दोनों को मिला कर रखा था। मात्र 12 वर्ष में ही ये कम्पनी इतनी प्रसिद्ध हो गई कि इसके प्रोडक्ट का डिमांड बढ़ने लगा।
परंतु एक बार जिंदगी ने करवट बदली और वर्ष 1907 में एस के बर्मन का देहांत हो गया और उनके कंपनी का सारा जिम्मा उनकी अगली पीढ़ी के ऊपर आया। हालांकि इसे बखूबी निभाया गया और यह कम्पनी 1972 तक दिल्ली के साहिबाबाद की विशाल रिसर्च एवं डेवलपमेंट सेंटर तक पहुंचने में कामयाब हुआ और आज डाबर (Dabur) की नेटवर्थ करीब 11.8 बिलियन डॉलर है।
- महिंद्रा एंड महिंद्रा
महिंद्रा एंड महिंद्रा (Mahindra &Mahindra) कंपनी के चेयरमैन आनंद महिंद्रा हैं और आज उन्हें हर व्यक्ति जानता है। महिंद्रा एंड महिंद्रा कंपनी का शुभारंभ 1945 में हुआ था लेकिन उस दौरान इसका नाम महिंद्रा एंड महिंद्रा नहीं बल्कि महिंद्रा एंड मोहम्मद था। क्योंकि इसे शुरू करने में जगदीश चंद्र महिंद्र और कैलाश चंद्र महिंद्र के साथ उनके मित्र मलिक गुलाम मुहम्मद भी शामिल थे। उनकी दोस्ती बहुत गहरी थी उन्होंने निश्चय कर लिया था कि वह अपनी कंपनी को स्टील कंपनी निर्माता के तौर पर एक बेहतर जरिया देंगे। परंतु जब देश आजाद हुआ और बंटवारा हुआ तो देश के साथ-साथ इन मित्रों का भी बंटवारा हो गया।
मलिक गुलाम मोहम्मद पाकिस्तान चले गए और यहां वह पहले वित्त मंत्री बने फिर आगे चलकर वह पाकिस्तान के तीसरे गवर्नर जनरल के पोस्ट पर कार्यरत हुए। महिंद्रा एंड महिंद्रा को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा परंतु उन्होंने अपने हिम्मत एवं मेहनत के बदौलत वह सफलता हासिल की और आज उनकी कुल नेटवर्थ 22 बिलियन डॉलर है। इनका कारोबार एक या दो नहीं बल्कि 100 देशों में विस्तृत है। आज महिंद्रा एंड महिंद्रा कंपनी में लाखों लोगों को रोजगार दिया है और उनकी जिंदगी सवार रहे हैं।
- ओबरॉय होटल्स
मोहन सिंह ओबेरॉय जिनकी कहानी बेहद ही कठिनाइयों से भरी हुई है। वह मात्र 6 माह के थे तब उनके सर से पिता का साया उठ गया। उनकी मां ने उन्हें पाल पोष कर बड़ा किया। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने नौकरी ढूंढना प्रारंभ कर दिया उन्हें एक जूते बनाने वाली कंपनी में नौकरी लगी परंतु यह कंपनी बहुत ही जल्द बंद हो गई। अब वह शिमला जाने के लिए तैयार हुए और मात्र 25 रुपए लेकर चले गए। उन्हें यहां क्लर्क नौकरी मिली जिसकी सैलरी 40 रुपए थी। 14 अगस्त 1935 को उन्होंने इस होटल को खरीदा और उनकी जिंदगी बदल गई।
ये हैं हमारे देश के सदियों से चले आ रहें ब्रांड्स कम्पनियां जो आज भी सफलता की ऊंचाई पर अग्रसर हैं और सफलता की इबारत लिख रही हैं।