Wednesday, December 13, 2023

BATA कोई विदेशी नही बल्कि स्वदेशी ब्रांड है, सन 1894 में शुरू हुई इस कम्पनी का इतिहास जान लीजिए

हमारे यहाँ चप्पल, जुता पहनने वाले लोगों में से शायद ही कोई होगा जो बाटा कंपनी (BATA Company) का नाम नही जानता होगा। क्योंकि यह कंपनी भारत में घर-घर छाई हुई है। बाटा की जूते तथा चप्पल आरामदायक के साथ ज्यादा महंगा भी नही होता है। इसलिए हर भारतीय इसको बहुत पसंद करते है जैसे यह विदेशी नही स्वदेशी है।

विदेशी कंपनी है बाटा (BATA)

अगर आपको लगता है कि बाटा भारतीय कंपनी है तो आप गलत हैं। बाटा एक विदेशी कंपनी है, बाटा चेक रिपब्लिक देश की कंपनी है और इसकी शुरुआत 1894 में हुई थी।

Tomas Bata
Tomas Bata

चेक उद्यमी ने डाली थी कंपनी की नींव

बाटा ( BATA) की स्थापना सन 1894 में थॉमस बाटा (Tomas Bata) नामक उद्यमी ने चेक गणराज्य के ज्लिन (Zlil) शहर में की थी। उस समय ये शहर आस्ट्रिया-हंगरी का हिस्सा हुआ करता था। बाटा की पहचान जूते बनाने वाली दुनिया की अग्रणी के रूप में है। यही वजह है कि थामस बाटा को जूते के व्यापार का फोर्ड कहा जाता है। कंपनी सालाना अपने 5800 स्टोर पर 18 करोड़ फुटवियर बेचती है। कंपनी 70 देशों में अपना बिजनेस करती है जिसमें 35 हजार कर्मचारी काम करते हैं। वर्तमान में कंपनी का मुख्यालय स्विटजरलैंड में है।

Success story of bata company

एक दिवालिया मजदूर से मालिक बनने की कहानी

यूरोपीय देश चेकोस्लोवाकिया के एक छोटे से कस्बे ज्लिन में रहने वाला बाटा परिवार कई पीढ़ियों से जूते बनाकर गुजर-बसर कर रहा था। संघर्षों के बीच वर्ष गुजरते रहा। 1894 में इस परिवार की किस्मत पलटी जब पुत्र टॉमस ने बड़े सपने देखे। उसने पारिवारिक उद्योग को प्रोफेशनल बनाने के लिए अपनी बहन एन्ना और भाई एंटोनिन को अपना सहयोगी बनाया। बड़ी मुश्किल से भाई-बहनों ने मां को राजी किया और उनसे 320 डॅालर प्राप्त किए। इसके बाद उन्होंने गांव में ही दो कमरे किराए पर लेकर किस्तों पर दो सिलाई मशीनें लीं, कर्ज लेकर कच्चा माल खरीदा और कारोबार शुरू किया। टॉमस जी. बाटा ने अपने भाई-बहन के कारोबार छोड़ने के बाद हताशा को खुद पर हावी नहीं होने दिया और मात्र 6 साल में काम को ऐसी स्थिति में पहुंचा दिया कि अब दुकान छोटी पड़ने लगी। कारोबार बढ़ाने के लिए टॉमस को भारी कर्ज लेना पड़ा। एक दौर ऐसा भी आया जब समय पर कर्ज न चुकाने के कारण उनके दिवालिया होने की नौबत आ गई। ऐसे में टॉमस और उनके तीन कर्मचारियों ने छह महीने तक न्यू इंग्लैंड की एक जूता कंपनी में मजदूर बनकर काम सीखा। इस दौरान उन्होंने कई कंपनियों के कामकाज को बारीकी से देखा और उनकी कार्यप्रणाली समझकर स्वदेश लौट आए। यहां उन्होंने नए ढंग से काम शुरू किया।

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1912 में टॉमस ने 600 मजदूरों को नौकरी दी और सैकड़ों को उनके घरों में ही काम मुहैया कराया। उत्पादन के साथ बिक्री की योजना बनाते हुए बाटा के एक्सक्लूसिव स्टोर्स स्थापित किए। विश्व युद्ध के बाद दाम घटाने के फॉर्मूले से बाटा ने जबरदस्त उन्नति और विस्तार किया। बाटा का जूता उत्पादन करीब 15 गुना बढ़ा और करीब 27 देशों में फैल गया। इनमें भारत भी एक था। बाटा स्टोर्स की रिटेल चेन भी हिट हो गई और उसकी सैकड़ों फ्रेंचाइजी खुलने लगीं। इसी दौरान बाटा ने 50 साल आगे की सोचते हुए जूतों के अलावा मोजे, चमड़े की चीजें, रसायन, टायर, रबर की चीजें जैसे उत्पाद बनाकर कंपनी का विस्तार किया। अब बाटा शू एक कंपनी मात्र न रहकर ग्रुप के रूप में स्थापित हो गया। जल्दी ही बाटा दुनिया के सबसे बड़े शू एक्सपोर्टर बन गए। टॉमस बाटा ने अपना मुख्यालय ऐसी इमारत में बनाया जो यूरोप में सबसे ऊंची कंक्रीट इमारत मानी जाती है। 12 जुलाई को 56 वर्षीय टॉमस बाटा एक हवाई हादसे में चल बसे। दुर्भाग्य से उनके विमान के साथ यह हादसा उन्हीं की एक इमारत की चिमनी से टकराने के बाद हुआ।

Success story of bata company

भारत में सबसे ज्यादा स्टोर्स

बाटा (BATA) ने वर्ष 2016 में भारत में ऑन लाइन 6.3 लाख जोड़ी जूते बेचे। बाटा के भारत में सबसे ज्यादा स्टोर्स हैं, जिनकी संख्या 1,300 है। बाटा कंपनी जूतों के अलावा, बैग, मोजे, पॉलिश आदि का भी सामान बनाती है और बेचती है।