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किराना दुकान चलाकर पिता ने बेटी को पढ़ाया, तीसरे प्रयास में ही बेटी 19वां रैंक हासिल कर बनी आईएएस अफसर

युपीएससी (UPSC) की परीक्षा पास करने वाले हर कैंडिडेट्स की कहानी प्रेरणादायक होती है परंतु श्वेता अग्रवाल (Shweta Aggarwal) की कहानी कुछ ख़ास है। पश्चिम बंगाल (West Bengal) के हुगली की रहने वाली श्वेता एक मारवाड़ी परिवार से हैं। उनके पिता घर चलाने के लिए एक किराने की दुकान में काम करते थे। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि वह श्वेता को किसी अच्छे स्कूल में पढ़ा सकें फिर भी उन्होंने श्वेता को स्कूल भेजा और पढ़ाई में कभी कोई कमी नहीं होने दी।

Success story of becoming an IAS officer Shweta Aggarwal

बचपन से था आईएएस बनने का सपना

श्वेता के पिता बहुत उम्मीद से अपनी बेटी को पढ़ा रहे थे और श्वेता भी उनकी उम्मीदों पर खरी उतरीं। श्वेता स्कूल से लेकर कॉलेज तक हर कक्षा में टॉपर रहीं।

श्वेता अग्रवाल (Shweta Aggarwal) यह तय कर चुकी थी कि उन्हें हर हाल में आईएएस IAS बनना है। उनका लक्ष्य एकदम क्लियर था। श्वेता ने अपने पहले ही प्रयास में साल 2013 में 497वीं रैंक के साथ सफलता प्राप्त किया था परंतु वह अपने रैंक से संतुष्ट नहीं थीं इसलिए उन्होंने दोबारा प्रयास करने का मन बनाया था। श्वेता अपने दूसरे प्रयास में प्रीलिम्स भी क्वॉलिफाई नहीं कर पाईं परंतु वह इतने में नहीं रुकीं और तैयारियों में जुट गईं।

19वीं रैंक के साथ हुईं सफल

साल 2015 में श्वेता ने अपने तीसरे प्रयास में खूब मेहनत किया और 141वीं रैंक के साथ सफल हुई लेकिन इस बार भी उन्हें आईएएस IAS सर्विस नहीं मिली। इन सब उतार चढ़ाव से श्वेता रुकी नहीं बल्कि अपने सपने को पूरा करने की कोशिश में लगी रहीं।

साल 2016 में श्वेता ने 19वीं रैंक के साथ सफलता प्रप्त कर अपने सपने को पूरा किया। अपनी इस सफलता से श्वेता ने यह साबित कर दिया कि मेहनत करने वालो की कभी हार नहीं होती। इतने बाधाओं को पारकर श्वेता आईएएस IAS ऑफिस बन गई हैं।

बिहार के ग्रामीण परिवेश से निकलकर शहर की भागदौड़ के साथ तालमेल बनाने के साथ ही प्रियंका सकारात्मक पत्रकारिता में अपनी हाथ आजमा रही हैं। ह्यूमन स्टोरीज़, पर्यावरण, शिक्षा जैसे अनेकों मुद्दों पर लेख के माध्यम से प्रियंका अपने विचार प्रकट करती हैं !

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