‘जुनून’ एक ऐसा शब्द है जो किसी इंसान से वो सब करवाता है जिसे वह करने के बारे में कभी सोच भी नहीं सकता। अगर आप कामयाब होना चाहते हैं तो आपके अन्दर कामयाबी का जुनून होना चाहिए । अगर इंसान को किसी चीज़ को पाने का जुनून चढ़ जाये तो उसे उस चीज़ के अलावा और कुछ नहीं दिखता। वह चाह कर भी किसी और चीज़ पर ध्यान नहीं दे सकता क्योंकि जो इंसान सारा ध्यान उस चीज़ को पाने के लिए लगा देता है उसे सफलता अवश्य मिलती है। (Success story of (Naina Singh Dhakad)
आज हम आपको भारत की एक ऐसी बेटी के बारे में बताएंगे जिसके अंदर यह जुनून कूट-कूट के भरा हुआ था। बस्तर गर्ल के नाम से मशहूर नैना सिंह धाकड़ भारत की एक ऐसी बेटी हैं जिन्होंने एवरेस्ट फतह कर इतिहास रच दिया। उन्होंने पूरी दुनिया में बस्तर और भारत का परचम लहरा दिया है। यह उपलब्धि हासिल करने वाली नैना अपने प्रदेश की पहली महिला बन गई हैं। दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी पर भारत का तिरंगा लहराने वाली नैना सिंह ने बीमार होने के बाद भी हार नहीं मानी। आइए जानते हैं उन्होंने संघर्ष करते हुए कैसे अपने सपने को पूरा किया।
बचपन से साहसी नैना (Naina Singh Dhakad)
नैना सिंह धाकड़ छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बस्तर (Bastar) जिले की रहने वाली हैं। उन्होंने बस्तर जैसे नक्सलग्रस्त और आदिवासी बाहुल्य इलाके में साहस और दृढ़ संकल्प की मिसाल कायम किया। नैना को बचपन से ही पहाड़ों की चोटियां पर चढ़ने के शौख था। जब वो थोड़ी बड़ी हुई तो कराटे सीखने लगी। उनके पिता पुलिस में थे। नैना सिंह ने तीन बार कराटे में नेशनल भी खेला। जिसके बाद उन्हें पर्वतारोहण से लगाव हो गया। बचपन से ही अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने मेहनत शुरू कर दी।
पर्वतारोहण का था जुनून (Naina Singh Dhakad)
एक बार हिमाचल प्रदेश (Himachal pradesh) ट्रेनिंग-कैम्प का आयोजन हुआ वही कैम्प नैना के ज़िन्दगी में एक नया मोड़ बन के आया। वहां उन्होंने देश के नामी पर्वतारोहियों के बारे में जाना। उसके बाद नैना के मन मे पर्वतारोहण का जो जुनून पैदा हुआ वो फिर कभी कम नही हुआ। पढ़ाई खत्म होने के बाद नैना जॉब के सिलसिले में जमशेदपुर गई हुई थीं। संयोग से वहां उनकी मुलाकात माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली देश की पहली महिला पर्वतारोही बछेंद्री पाल से हुई। बस्तर का नाम सुनते ही बछेंद्री उनसे प्रभावित हुईं और उन्हें एक महीने की ट्रेनिंग पर ले गईं।
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एवरेस्ट की उड़ान भरी (Female Mountaineer)
बछेंद्री पाल के ऑफर को नैना कैसे ठूकरा सकती थीं। उन्होंने फौरन हां कर दी। बस फिर क्या था देश के अलग-अलग राज्यों से 11 महिलाओं के साथ उन्हें एक महीने के लिए भूटान ले जाया गया। इस यात्रा को लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में जगह मिली थी। नैना ने वर्ष 2012 में दार्जिलिंग स्थित हिमालय (Everest) पर्वतारोहण संस्थान से पर्वतारोहण का कोर्स किया। कोर्स पूरा करने के बाद दार्जिलिंग की पहाड़ी की चढ़ाई पूरी करने में सफल हुईं। नैना के शानदार प्रदर्शन को देखते उन्हें काफी सराहा गया। जिसके बाद नैना सिंह ने एवरेस्ट फतह करने की ओर उड़ान भरी।
बीमार भी हुईं नैना (Naina Singh Dhakad)
नैना माउंट एवरेस्ट फतह करने के प्रयास में अधिक थकान के कारण बीमार भी हो गईं। उनके साथ के अन्य साथियों ने हार मान ली। लेकिन बीमार होने के बाद भी उन्होंने एवरेस्ट की ओर चढ़ाई करना जारी रखा था। बड़ी मुश्किल से लगभग दोपहर दो एक जून की सुबह नैना सिंह ने एवरेस्ट को फतह कर लिया। लेकिन वो इतनी बीमार हो गई थीं कि उनकी नीचे उतर पाना संभव नहीं हो पाया था। जिसके बाद उनकी टीम के अन्य सदस्यों ने उनकी मदद की। नैना सिंह ने भारत का झंड़ा एवरेस्ट (Everest) की चोटी पर लहरा कर हर ओर भारत का नाम रौशन कर दिया।
मुख्यमंत्री ने भी की तारीफ (Naina Singh Dhakad)
नैना के इस साहस पूर्ण कार्य की तारीफ हर तरफ हुई है। उनके राज्य छतिसगढ़ के मुख्यमंत्री ने भी उनकी खूब तारीफ की। नैना ने जो अद्भुत साहस का परिचय दिया है वो सचमुच काबिले तारीफ है। आज वह लोगों के लिए प्रेरणा हैं। एक नक्सलग्रस्त और आदिवासी बाहुल्य इलाके से आने वाली इस बेटी ने यह साबित कर दिया है कि अगर आपके पास कुछ करने का जुनून हो तो कोई भी मंजिल दूर नही है। लोगों को नैना सिंह धाकड़ से सीखने की आवश्यकता है।
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