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बिहार के 3000 लड़कियों को इन्होंने शिक्षित करने का अनोखा कार्य किया है, इस नेक कार्य के लिए इन्हें पद्मश्री मिल चुका है: साइकिल दीदी

हमारे देश में कई जगह ऐसे भी हैं, जहां आज भी हर जाति के लोगों को बराबर नहीं समझा जाता। लोगों में भेदभाव किया जाता। जाति भेदभाव की सोच को बदलने के लिए अब तक बहुत से लोगों ने कई पहल किए हैं। आज की हमारी कहानी वैसे ही एक लड़की की है जिसने जाति भेदभाव को हटाने के लिए बहुत बड़ी पहल की।

सुधा वर्गीज (Sudha Varghese)

सुधा वर्गीज केरल (Kerala) की रहने वाली हैं। वह अपने अद्भुत कार्य से अपनी एक अलग ही पहचान बना चुकी हैं। सुधा बताती हैं कि जब वह बिहार (Bihar) गई तो उन्हें जाति भेदभाव के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। वहाँ जाने के बाद उन्हे पता चला कि मुसहर समुदाय (Musahar Samudaya) के लोगों की स्थिति ठीक नहीं है। उसके सुधार के लिए सुधा ने संघर्ष करने का निश्चय किया।

Sudha varghese with her student

सुधा ने ली पहले पूरी जानकारी

सुधा ने इस बात पर विशेष ध्यान दिया तो उन्हें पता चला कि मुसहर समुदाय के लोगों की मौत की सबसे बड़ी वजह कुपोषण है। सुधा इस समुदाय के लोगों के बच्चों की पढ़ाई-लिखाई से लेकर उनकी रोजगार तक की व्यवस्था करवाई।

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सुधा ने की एनजीओ की स्थापना

साल 1980 में सुधा ने एक नारी गुंजन (Nari Gunjan) नाम के एनजीओ (NGO) की शुरूआत की। यह एनजीओ बिहार के 5 जिले में काम कर रही है। साल 2015 में इस एनजीओ के द्वारा पटना (Patna) के दानापुर (Danapur) में प्रेरणा नाम के एक स्कूल की शुरूआत की। इस स्कूल में हर तरह की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। इसमें 3000 से ज्यादा बच्चों को अच्छी शिक्षा दी जा रही है। इसमें बच्चियों को शिक्षा के साथ-साथ कपड़े आदि भी दिए जाते हैं।

सुधा कराती हैं, हर सुविधा उपलब्ध

सुधा छात्रों को अच्छी शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए कोचिंग की भी व्यवस्था करवाई। सिर्फ़ इतना हीं नहीं उन्हें शरीरिक अभ्यास भी कराया जाता है। इसके अलावा कराटे, नृत्य, चित्रकला आदि भी सिखाए जाते हैं। सुधा हर क्षेत्र में कार्य कर रही हैं, जिससे मुसहर समुदाय के लोगों की हर तरह सुविधा उपलब्ध हो और उनके साथ कोई भेदभाव भी ना हो सके। नारी गुंजन द्वारा महिलाओं को ब्रैंड प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इस ब्रैंड टीम में सिर्फ़ महिलाएं हीं हैं।

सुधा हो चुकी हैं पद्मश्री से सम्मानित

बिहार में सुधा साईकिल दीदी के नाम से प्रसिद्ध हैं। उनके साथ 900 सहायता समूह मिलकर समाज सुधार का काम कर रहे हैं। सुधा वर्गीज को नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के द्वारा सम्मान भी मिल चुका है। उन्हें मौलाना अबुल कलम आजाद पुरस्कार भी मिल चुका है। सिर्फ़ इतना ही नहीं वो पद्मश्री से भी सम्मानित हो चुकी हैं।

The Logically सुधा वर्गीज के इस कार्य की सरहाना करता है। यह दूसरों के लिए भी प्रेरणा हैं।

बिहार के ग्रामीण परिवेश से निकलकर शहर की भागदौड़ के साथ तालमेल बनाने के साथ ही प्रियंका सकारात्मक पत्रकारिता में अपनी हाथ आजमा रही हैं। ह्यूमन स्टोरीज़, पर्यावरण, शिक्षा जैसे अनेकों मुद्दों पर लेख के माध्यम से प्रियंका अपने विचार प्रकट करती हैं !

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