ज्यादातर आजकल के युवाओं का सपना शहर में नौकरी करके वहां पर एक सुंदर सा घर बनाना होता है लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं जो शहर की चमक-धमक की नौकरी छोड़ गांव के तरफ अपना रुख कर रहे हैं और गांव में ही शांति पूर्वक एक प्यारा सा घर बनाकर रहना पसंद कर रहें हैं।
आज ‘The Logically’ आपको एक ऐसे जोड़े के बारे में बताने वाला है, जो शहर की ऐशो आराम की जिंदगी छोड़कर गांव में आकर हरियाली तथा खुले वातावरण में एक प्यारा सा मिट्टी का घर बनाकर अपनी जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं।
कौन है वो जोड़ा?
हम तमिलनाडु(Tamil nadu) के प्यारे जोड़े नौशद्या और सुधाकर (Sudhakar and Noushadya) की बात कर रहे हैं। बता दें कि, सुधाकर का जन्म तथा उनका बचपन मुंबई में ही व्यतीत हुआ है और वहीं नौशद्या चेन्नई-बेंगलुरू जैसे बड़े शहरों की रहने वालीं हैं। लेकिन दोनो ने काफी सोच समझ कर यह फैसला लिया कि वे अपनी बड़े शहरों की नौकरी छोड़कर गांव में शांति से अपनी जिंदगी व्यतीत करेंगे।
वर्ष 2018 में सुधाकर ने अपने पैतृक गांव तमिलनाडु के तिरुनेलवेली में साढ़े 11 एकड़ जमीन खरीदी और पिछले तीन साल से दोनो ने अपने हीं खेतों पर मिट्टी, बांस, चूना जैसे प्राकृतिक साधन से अपना घर भी बनाया है।
काम के दौरान हुई दोनो की मुलाकात
नौशद्या ने बताया कि, मेरी और सुधाकर की मुलाकात काम के दौरान ही हुई थी। उस समय सुधाकर और मैं सामाजिक संगठनों से जुड़े थे। कुछ समय बाद हमने साथ रहने का फैसला लिया।
सुधाकर ने बताया कि, काम के दौरान ही मुझे पर्यावरण और प्रकृति से ज्यादा लगाव हो गया था और मैं प्रकृति के साथ ही अपना समय व्यतीत करना चाहता था लेकिन मुझे इस बात पर संदेह था कि, शहरों में पली-बढ़ी नौशद्या गांव की साधारण जिंदगी व्यतीत कर पाएगी या नहीं। तब मैंने इस बात को ट्रायल करना सही समझा और अपनी नौकरी छोड़ कुछ समय के लिए नौशद्या के साथ ऑरोविल में जाकर रहना शुरू कर दिया।
नौशद्या के लिए नया था प्रकृति का एहसास
नौशद्या ने बताया कि, ऑरोविल में हमने तीन महीने साथ व्यतीत किया और उस समय मुझे एहसास हुआ कि प्रकृति के साथ मैं भी आत्मनिर्भर जिंदगी जी सकती हूं।
पैतृक गांव में आकर बनाया इको फ्रेंडली घर
दोनो (Sudhakar and Noushadya) ने वर्ष 2018 में गांव आकर अपना इको फ्रेंडली घर बनाने का फैसला लिया। सुधाकर ने Thannel नाम के एक संगठन के साथ तीन दिन तक वर्कशॉप भी की। बता दें कि, Thannel नामक यह संगठन लोगों को मिट्टी, बांस जैसे प्राकृतिक साधनों का उपयोग करके घर बनाने की तकनीक सिखाता है।
ट्रायल के लिए एक ड्राई टॉयलेट बनाने का किया विचार
दंपति (Sudhakar and Noushadya) ने घर का निर्माण से पहले ट्रायल के लिए एक ड्राई टॉयलेट बनाने का विचार किया और इसके लिए अपने दोस्तों और जानने वालों को भी सहयोग करने के कहा।
ड्राई टॉयलेट को बनाने में लगा दो महीने का समय
घर बनाने से पहले ट्रायल के रूप में इस दंपति (Sudhakar and Noushadya) ने ड्राई टॉयलेट को बनाने का विचार किया और इसको बनाने में लगभग दो महीने का समय लगा। इस टॉयलेट को बनाने के बाद उन्हें विश्वास हो गया कि वे अपना मिट्टी का घर बना सकते हैं।
घर में व्यवस्थित सुविधाएं
गांव में इस दंपति (Sudhakar and Noushadya) ने मिट्टी का घर 1000 वर्गफीट एरिया में बनाया है। लिविंग रूम, रसोई, दो बैडरूम और दो बाथरूम उनके घर में हैं। उनके घर में टॉयलेट सामान्य हैं, जिसमें पानी का इस्तेमाल होता है। लेकिन सबसे अच्छी बात यह है कि उस टॉयलेट से जो भी मल-मूत्र बाहर निकलता है, उसके लिए कोई सेप्टिक टैंक नहीं बनवाए गए हैं, बल्कि घर के पीछे की तरह ‘सोक पिट’ बनवाये हैं ताकि पानी जमीन सोख ले और बाकी वेस्ट खाद में परिवर्तित होता रहे।
मिट्टी और गोबर का मिश्रण बनाकर लिविंग रूम की तीन दीवारों को प्लास्टर किया गया है और दूसरे एक दीवार पर मिट्टी और गोबर में चूना भी मिलाया गया है। रसोई के दीवारों को प्लास्टर के लिए मिट्टी में चूना और चारकोल मिलाकर मिश्रण तैयार किया गया। इसके अलावें बेडरूम के तीन दीवारों को प्लास्टर मिट्टी, गोबर और चूने को मिलाकर किया गया है और अन्य दो दीवारों पर चूने और सुर्खी का प्लास्टर किया गया है। एक-दो दीवारों पर चूने से वाइट वॉश किया गया है।
उनके दोस्तों ने मिलकर घर की दीवारों को सजाने के लिए जगह-जगह कुछ आर्ट की है, जिससे घर की खूबसूरती और बढ़ जाती है। दोनो ने बताया कि, इस इको फ्रेंडली घर निर्माण की कीमत उन्हें 1600 रुपए/वर्गफ़ीट पड़ी।
घर बनाने में अपनी ही जमीन की मिट्टी का किया इस्तेमाल
गांव में जिस मिट्टी का घर का निर्माण उन्होंने किया है, वो मिट्टी इनके (Sudhakar and Noushadya) अपने जमीन से हीं निकली है। इसके आलावा घर में इस्तेमाल किए गए सामग्री चूना, लकड़ियां, मिट्टी की टाइल्स, खिड़की-दरवाजे आदि स्थानीय इलाकों से लाये गए हैं। ज्यादातर उन्होंने अपने घर में रीसाइकल्ड चीजों का इस्तेमाल किया है। घर में लगे सभी खिड़की-दरवाजे सेकंड हैंड हैं और इसमें पुरानी कांच की बोतलों का भी इस्तेमाल हुआ है। घर की नींव में उन्होंने पत्थर और चूना के मोर्टार का इस्तेमाल किया है। इसके अलावें अन्य कमरों के लिए ‘Cob’ तकनीक प्रयोग किया गया है। इसके लिए पहले मिट्टी में रेत, नीम का अर्क और एक-दो औषधीय चीजें मिलाया गया है ताकि दीमक न लगे और फिर इसे दीवार की तरह खड़ा किया गया।
बिजली के बजाय सौर ऊर्जा का कर रहे उपयोग
दंपति (Sudhakar and Noushadya) ने अपने मिट्टी के घर में बिजली का कनेक्शन नहीं लिया है, वे सौर ऊर्जा का उपयोग कर अपना काम करते हैं। घर के अंदर का तापमान मौसम के हिसाब से संतुलित रहता है।
खुद को बनाया है आत्मनिर्भर
इस जोड़े ने अपने आपको आत्म-निर्भर पूरी तरह से कर लिया है। वह अपने खेतों पर ही दाल, चावल और साग-सब्जियां उगाते हैं और जो भी एक्स्ट्रा बच जाता है, उसे वह अपने दोस्तों और जानने वालों में बिक्री कर रहे हैं। पिछले तीन साल में उन्होंने अपनी जमीन पर कुछ फलों के पेड़ भी लगाए हैं।
सुधाकर ने बताया कि, हमारे आने से पहले हीं यहां पर नारियल के पेड़ थे, इनसे हम नारियल का तेल बना रहे हैं। हमारे खेतों के आसपास ताड़ के पेड़ भी हैं, इसके रस से हम ख़ास गुड़ बनाते हैं। अपने घर की आपूर्ति के बाद जो कुछ भी बचता है, उसे हम बेचते हैं।
अच्छे स्वस्थ के साथ बेहतर जीवन कर रहे व्यतीत
उन्होंने (Sudhakar and Noushadya) बताया कि, पिछले तीन सालों में वे पहले के मुकाबले अच्छे और स्वस्थ जीवन जी रहे हैं और दूसरों को भी हमेशा यही सलाह देते हैं कि वे प्रकृति से हमेशा जुड़े रहें। प्रकृति से जो चीज हमें मिलती है वे मशीनों से कभी नहीं मिल सकती। लोगों से वे दोनो सलाह देते कहते हैं कि, गर्मी के मौसम में बिना एसी के रहने का प्रयास करें या घर में रसायनों का प्रयोग बंद करें। तब आपके मन को एक अलग ही अनुभव मिलती है।