किसी ने ठीक कहा है, हौसलों में जान हो तो कोई भी मंजिल हासिल की जा सकती है, चाहे हालात कितने भी खराब क्यों न हों।
ऐसा ही एक बिहार के लाल की कामयाबी की कहानी हम आपको बताने वाले है। बिहार (Bihar) के “गया” (Gaya) शहर के खरखुरा मोहल्ला के रहने वाले महेंद्र प्रसाद के बेटे सुधांशु (Sudhanshu) ने अपनी मेहनत और लगन से सफलता की एक नई इबारत लिखी है। देशभर से कुल 11 अभ्यर्थियों का चयन इसरो (ISRO) ने किया है जिसमें से गया के रहने वाले सुधांशु भी शामिल हैं।
सुधांशु बने इसरो (ISRO) वैज्ञानिक :-
सुधांशु अब इसरो के वैज्ञानिक बने गए हैं। बड़ी बात ये है कि यहां तक का सफर तय करने के लिए सुधांशु ने दिन रात मेहनत की। सालों-साल अपना जीवन पढ़ाई को समर्पित कर दिया। वहीं उनके माता पिता दोनों आटा चक्की चलाकर इनकी जरूरत को पूरा करने में लगे रहे। आज इनका परिवार सुधांशु के सफलता पर गर्व कर रहा है। वहीं पूरे शहर में सुधांशु की कामयाबी की चर्चा हो रही है।
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सुधांशु के पिता चलाते हैं आटा चक्की :-
दरअसल, सुधांशु मिडिल क्लास परिवार से आते हैं। इनके पिता महेंद्र प्रसाद अपने घर मे आटा चक्की चलाते हैं। शुरुआती दौर में सुधांशु के पिता के पास इतने पैसे नही थे कि इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई निजी स्कूल या कॉलेज में करा सके। घर की आर्थिक स्थिति से रूबरू सुधांशु ने दिन रात मेहनत कर सफलता हासिल की है।
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये हुआ इंटरव्यू :-
सुधांशु बताते हैं कि, इसरो का रिटेन एग्जाम जनवरी 2020 में दिया था। लेकिन उसके बाद लॉकडाउन लागू कर दिया गया। काफी दिनों के बाद वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये इंटरव्यू लिया गया। जिसका रिजल्ट होली के दिन में आया।
क्या कहते है सुधांशु के माता-पिता? :-
सुधांसु के पिता महेंद्र प्रसाद बताते हैं कि कैसे उन्होंने अपने बेटे को पढ़ाया लिखाया है। उनका कहना है कि आटा चक्की में पति पत्नी दोनों काम करके पैसे बचाने की कोशिश करते थे। मजदूर नहीं रखते थे ताकि ज्यादा से ज्यादा बचत हो सके। महेंद्र का कहना है कि, आज सुधांशु पर उन्हें गर्व है और उम्मीद है कि देश के लिए अच्छा काम करेगा।
वहीं सुधांशु की मां कहती हैं कि, उम्मीद नहीं थी कि मेरा बेटा इसरो का वैज्ञानिक बनेगा। लेकिन उसके लगन को देखकर लगता था कि वो बड़ा आदमी जरूर बनेगा। इस साल की होली हमारे परिवार के लिए खुशियों की होली रही। जब दोपहर बाद बेटा ने रिजल्ट बताया तो हमलोग खुशी से झूम उठे।