Home Environment

आपदा में अवसर : Lockdown में मशरूम की खेती शुरू कर बने आत्मनिर्भर

कोविड-19 के संक्रमण के बीच “आत्मनिर्भर भारत” शब्द की चर्चा हर जगह हो रही है आत्मनिर्भर का अर्थ है “खुद के पैरों पर खड़ा होना” मतलब खुद से अपनी पहचान बनाना। देश के ऐसे बहुत से लोग है जो इसे अपनाकर कोरोना काल मे आत्मनिर्भर बने है। उनमे से एक बिहार के सारण जिले के रहने वाले सत्येंद्र प्रसाद और उनकी पत्नी सुनीता प्रसाद हैं। भले ही ये 10 वीं पास हैं लेकिन इन्होंने खुद को आत्मनिर्भर बनाने के साथ अपने गाँव के लोगों के लिए प्रेरणा बन चुके हैं।

सुनीता ने मशरूम की खेती से खुद को आत्मनिर्भर बनाया है, इस कोरोना काल मे वो अपने घर के आँगन और छत पर “वर्टिकल” खेती की मदद से फूल और सब्जियां उगा रहीं हैं। सुनीता के इस कार्य के लिए किसान विज्ञान केंद्र से उन्हे ‘अभिनव पुरस्कार’ मिला है। इसके साथ ही सुनीता को DD किसान चैनल के शो में ‘महिला किसान अवार्ड’ में सम्मलित किया गया है।

सुनीता सब्जियां उगाने मे शुरू से शौकीन रही हैं वो पहले पाइप के सहारे छत पर सब्जियां उगाती थी। हम ये अच्छी तरह जानते हैं की बाजार से खरीदी गयी सब्जियों मे केमिकल की मात्रा अधिक होने से हमे बहुत सारी समस्याएं हो रही हैं।

पाइप की सहायता से कैसे हो रही है वर्टिकल खेती

आबादी बढ़ने के कारण जमीन कम हो रहें हैं, आजकल ज्यादा घर मार्बल और फर्स के मिल रहें हैं। लोग अपने घर के किसी भी भाग मे “वर्टिकल खेती” की मदद से अपने परिवार के खाने लायक सब्जियां उगा सकते है। इस तरह की सब्जियों से हमारे स्वास्थ्य तो ठीक रहेंगे ही, पैसे की भी बचत होगी।

सुनीता यह चाहती है कि आने वाले समय में हर कोई “जैविक खेती” करे, इसे छोटा और सरल बनाने के लिए सुनीता अब पाइप की स्थान पर बांस का उपयोग कर रही हैं, एक पाइप की कीमत करीब 900 रुपये है, अगर पाइप की जगह बांस का उपयोग किया जाए तो उसकी कीमत केवल ₹100 ही होंगे, जिससे सबको मदद मिलेगी और वो आसानी से खेती कर सकेंगे। सुनीता को उनके परिवार का सपोर्ट हमेशा मिला है। जिसके कारण उन्हे किसी भी परेशानी का सामना करना आसान लगता है।

मशरूम है आय का मुख्य स्त्रोत

सुनीता के परिवार के लिए आय का मुख्य आधार मशरूम की खेती है। मशरूम की खेती करने से पहले उन्होंने मुर्गी फॉर्म भी खोला था लेकिन वह उस में असफल रही। सुनीता ने खेती करने के लिए कृषि विश्वविद्यालय से ट्रेनिंग भी लिया है, पहले उनके लिए यह सब करना बहुत कठिन रहा, लेकिन लगातार उसमे जुड़े रहने से उन्हें सफलता हासिल हुई।

सुनीता ने अपने गांव की महिलाओं को मशरूम की खेती करने की सलाह दी, वह उन्हें आत्मनिर्भर बनाना चाहती थी। हालांकि पहले लोगों को मशरूम की खेती के बारे में पता नहीं था जिसके कारण उन्हें कम लाभ हुए। सुनीता ने अपने गांव में लगभग 100 से भी ज्यादा महिलाओं को ट्रेनिंग देनी शुरू की। ट्रेनिंग के दौरान वो सबको मशरूम का खीर, सब्जी, अचार और पकौड़े बनाने की विधि भी बताती है।

यह भी पढ़े :-

2 साल की उम्र में पोलियो से ग्रस्त हो गए थे , आज मशरूम की खेती का रिसर्च सेंटर चलाते हैं : खेती बाड़ी

आज सुनीता और उनके साथ काम करने वाली महिलाओं को साल मे लगभग 3 लाख का मुनाफा होता है। सुनीता अपने परिवार के साथ 4 साल से वर्टिकल खेती कर रही हैं, इसके साथ वो हल्दी की खेती भी करती हैं। खुद आत्मनिर्भर होने के साथ वहाँ लोगों को भी आत्मनिर्भर बनाने की चाह के लिए सुनीता को logically नमन करता है।

Khushboo loves to read and write on different issues. She hails from rural Bihar and interacting with different girls on their basic problems. In pursuit of learning stories of mankind , she talks to different people and bring their stories to mainstream.

1 COMMENT

  1. मै भी मशरुम की खेती करना चाहता हूँ |
    कृपया मेरा मार्गदर्शन करें |
    7903153872

Comments are closed.

Exit mobile version