“तुम्हें कोई पढ़ा नहीं सकता, कोई आध्यात्मिक नहीं बना सकता। तुम्हें सब कुछ खुद अंदर से सीखना है। आत्मा से बेहतर कोई शिक्षक नहीं।”
ऐसा कहना है महान दार्शनिक, विद्वान, प्रखर वक्ता, लेखक, संत, आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद का.. जो केवल भारत में हीं नहीं, बल्कि अपने शब्दों और विचारों के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता के पारंपरिक बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था। आज इस दिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है, इसे भारत सरकार ने 1984 में घोषित किया था। सरकार का ऐसा मानना था कि विवेकानंद का जीवन, उनके कार्य तथा आदर्श भारतीय युवकों के लिए प्रेरणा का बहुत बड़ा स्रोत हो सकते हैं।
स्वामीजी का बचपन
विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक वकील थे। उनकी मां भुनेश्वरी देवी एक कुशल गृहणी तथा धार्मिक विचारों की महिला थीं। नरेंद्र बचपन से ही बहुत शरारती और दयालु थे, वह घर की चीज़ें भी ग़रीबों को दे दिया करते थे। इसके अलावा, वह बचपन से ही आध्यात्म में रुचि रखते थे और कम उम्र से हीं ध्यान (meditation) करते थे। उनका मानना था कि यह ध्यान हीं है जो हमें किसी और चीज की तुलना में सच्चाई के करीब लाता है।
रामकृष्ण परमहंस से मुलाक़ात, विवेकानंद नाम उन्हें उनके गुरु से हीं मिला
1881 या 1882 की शुरुआत में नरेंद्र अपने मित्र के घर रामकृष्ण परमहंस से मिले। रामकृष्ण ने नरेंद्रनाथ को गाने के लिए कहा। उनकी गायन प्रतिभा से प्रभावित होकर, उन्होंने उन्हें दक्षिणेश्वर में आमंत्रित किया। वह अपने दो दोस्तों के साथ रामकृष्ण परमहंस से मिलने दक्षिणेश्वर गए। जब उन्होंने परमहंस का दरवाजा खटखटाया। परमहंस ने पूछा, “तुम कौन हो?” उन्होंने उत्तर दिया, ‘इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए हीं तो हम आपके पास आए हैं। उनके शब्दों ने रामकृष्ण परमहंस को बहुत हीं प्रभावित किया था। हालांकि जब विवेकानंद ने पूछा, “क्या आपने भगवान को देखा है?” और परमहंस ने जवाब दिया, “जैसे मैं तुम्हें देख रहा हूं, वैसे ही मैंने भगवान को भी देखा है” तो विवेकानंद ने उनकी बातों पर विश्वास नहीं किया और उनके विचारों से बगावत कर दी लेकिन बाद में वे परमहंस के परम शिष्य बन गए। ‘विवेकानंद’ नाम उन्हें उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस ने हीं दिया था।
शिकागो सम्मेलन
अमेरिका के शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में विवेकानंद ने भारत का प्रतिनिधित्व किया था और विश्वपटल पर भारत को एक नई पहचान दिलाई थी। जब उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत “मेरे अमेरिकी बहनों एवं भाइयों” से की तो हॉल तालियों से गूंजने लगा था, अपने इस वाक्य से भाषण शुरू कर विवेकानंद ने सभी का दिल जीत लिया था। फिर अपने भाषण से उन्होंने विश्व का भारत और हिन्दू धर्म से परिचय कराया था। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने एक बार कहा था, “यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानन्द को पढ़िये। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पायेंगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं।”
स्वामी विवेकानंद युवा शक्ति को मानते थे राष्ट्र शक्ति: नरेंद्र मोदी
उनका मानना था कि युवा किसी भी देश की वो शक्ति है, जो देश को विकसित और दुनिया की ताकत बनाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उनके ओजपूर्ण विचार और महान शख्सियत किसी भी वर्ग और धर्म के लोगों को प्रेरणा प्रदान करती है। उनका कथन “उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक कि लक्ष्य की प्राप्त न हो जाये” युवाओं में जोश भर देता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस संदर्भ में कहा कि ये स्वामी विवेकानंद जी ही थे, जिन्होंने उस दौर में कहा था कि निडर, बेबाक, साहसी और आकांक्षी युवा ही वो नींव है जो अपने देश को आत्मनिर्भर बना सकते हैं। वे युवाओं को, युवा शक्ति को देश का भविष्य मानते थे।
39 वर्ष कीउम्र में 4 जुलाई 1902 को स्वामी विवेकानंद ने कलकत्ता के बेलूर मठ में महासमाधि ले ली। स्वामी विवेकानंद भारत के महान दार्शनिक थे, जिन्होंने पूरी दुनिया को हिन्दुत्व और आध्यात्म का पाठ पढ़ाया। भगिनी किश्चिन ने विवेकानंद के बारे में लिखा है, स्वामी विवेकानंद की कोई तुलना नहीं हो सकती। वे स्वयं ही अपने वर्ग के हैं। वे एक दूसरे स्तर के हैं, न कि इस सांसारिक स्तर के। वे एक भास्वर सत्ता हैं, जो एक सुनिदिष्ट प्रयोजन के लिए दूसरे एक उच्चतर मंडल से इस मर्त्य भूमि पर अवतरित हुए हैं। The Logically ऐसे प्रेरक व्यक्तित्व को शत् शत् नमन करता है।