स्वामी विवेकानन्द जी को युगप्रवर्तक कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। अपने छोटी उम्र में सफलता की पराकाष्ठा पेश कर अपने कार्यों और सुझाए रास्तों के जरिए प्रेरणा की ऐसी लकीरें खींची जो सदियों-सदियों तक लोगों को प्रेरित करती रहेंगी। आईए जानते हैं उनके बारे में…
आरंभिक जीवन व शिक्षा ग्रहण
स्वामी विवेकानन्द जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था। उनका असली नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त जो कलकत्ता हाईकोर्ट में एक प्रसिद्ध वकील थे। वे बचपन से हीं बेहद बुद्धिजीवी थे और आठ वर्ष की उम्र में उन्होंने मेट्रोपोलिटन संस्थान में दाखिला लिया जहाँ पर वे विद्यालय गए। उन्हें कई विषयों को जानने और पढने हेतु हमेशा उत्सुकता रहती थी। दर्शन, इतिहास, कला, सामाजिक विज्ञान, साहित्य व धर्म आदि पर उन्होंने गहन अध्ययन किया। वेदों, पुराणों और धार्मिक ग्रंथों की पढाई में उनकी गहरी रूचि थी। उन्होंने पश्चिमी तर्क, दर्शन और यूरोप के इतिहास का भी अध्ययन किया। वे पश्चिमी दार्शनिकों के बारे में भी पढा। 1884 में उन्होंने स्नातक की डिग्री हासिल की। पढाई के साथ-साथ वे कई संस्थाओं से भी जुड़े रहे जहाँ वे कई तरह के समाज सेवा में प्रयत्नशील रहे। अपने एक संबंधी के माध्यम से वे रामकृष्ण परमहंस से मिले। अपनी कुशलता और ज्ञान से वे रामकृष्ण जी के सबसे चहेते शिष्य बन गए्। 1886 में रामकृष्ण परमहंस जी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। 25 वर्ष की आयु में स्वामी जी गेरूआ वस्त्र धारण कर लिए और सन्यासी बन गए।
भारत भ्रमण
अपने गुरू रामकृष्ण परमहंस जी की मृत्यु के पश्चात वे पैदल हीं पूरे भारत भ्रमण की ओर अग्रसर हो चले। वे देश की स्थिति से वाकिफ होना चाहते थे ताकि देश का पुनर्निर्माण किया जा सके। छह वर्षों का यह भ्रमण काल अनेक समस्याओं से घिरा था जिससे स्वामी जी ने अडिग होकर सामना किया। उन्हें कई दिनों तक भूखा भी रहना पड़ा। सर्वजन-समभाव की परिकल्पना को जीने वाले स्वामी जी ने अपने इस यात्रा के दौरान राजाओं और दलितों दोनों से मिले। उनकी यह यात्रा कन्याकुमारी में जाकर समाप्त हुई।
अमेरिका यात्रा
1893 में वे अमेरिका चले गए। वहाँ विश्व धर्म सम्मेलन का आयोजन हो रहा था। विश्व के कई बड़े वक्ता वहाँ आने वाले थे। स्वामी विवेकानन्द की भी दिली इच्छा थी कि वे भी उस मंच से कुछ बोलें लेकिन उन्हें आमंत्रण नहीं था। काफी कोशिश करने के बाद एक शख्स की मदद से वे वहाँ पहुँच पाए। स्वामी विवेकानन्द जी द्वारा विश्व धर्म सम्मेलन में दिया गया वह भाषण काल के कपाल पर सदा के लिए उद्धृत हो गया। अपने भाषण की शुरूआत “मेरे अमेरिकी भाइयों एवं बहनों” से की। स्वामी जी ने अपने भाषण के जरिए भारत की प्राचीन संस्कृति, उसके सुविचार, संस्कार, महानता से वहाँ के लोगों का परिचय करवाया और विश्व पटल पर भारत की गरिमा को बढाया। इस भाषण के पश्चात उनका अमेरिका में शानदार स्वागत हुआ। कई लोग उनके शिष्य बन गए। तीन वर्षों तक वे अमेरिका में रहकर लोगों को अपनी ज्ञान की ज्योति से प्रकाशित किया। उनके दिव्य ज्ञान और विद्वता के कारण वहाँ की मीडिया ने स्वामी जी को “साइक्लॉनिक हिन्दू” कहा। अमेरिका में उन्होंने रामकृष्ण मिशन की अनेक शाखाएँ खोलीं। उन्होंने अमेरिका के अलावा जापान, चीन, कनाडा और कई यूरोपीय देशों की भी यात्रा की और वहाँ के सभ्यता और संस्कृति को जाना।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका
अमेरिका से लौटने के बाद वे नए भारत के निर्माण में लग गए। वे भारत की किसी भी कीमत पर आजादी चाहते थे। उन्होंने देशवासियों को स्वतंत्रता के लिए आह्वान किया। लोगों ने भी स्वामी जी का पूर साथ दिया। महात्मा गांधी जी आजादी की लड़ाई में जो व्यापक जन समर्थन मिला वह स्वामी विवेकानन्द जी द्वारा लोगों को जगाए जाने के कारण हीं था। उन्होंने लोगों को अपने विचारों से प्रेरित कर भारत की स्वाधीनता के लिए एक माहौल बनाया।
देहावसान
स्वामी विवेकानन्द प्रतिदिन ध्यान किया करते थे। 4 जुलाई 1902 को अपने ध्यान के क्रम में उन्होंने महासमाधी ले ली। इसी के साथ भारत का एक अनमोल मोती सदा के लिए इस दुनिया से विदा हो गया। महज 39 वर्ष की आयु में विवेकानन्द जी का जाना भारत के लिए महत्वपूर्ण क्षति थी। कलकत्ता के बेलूर मठ में उन्होंने अपना प्राण त्यागा। वहीं गंगा तट पर उनकी अंत्येष्टि की गई। स्वामी जी का शरीर भरसक खत्म हो गया पर उनके विचार और दिखाए सकारात्मक रास्ते हमेशा जीवित रहेंगे।
विवेकानन्द जी के अनमोल वचन
•उठो, जागो और तब तक मत रूको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए।
•खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है।
•तुम्हें कोई पढा नहीं सकता, कोई आध्यात्मिक नहीं बन सकता। तुम्हें सब कुछ खुद अंदर से सीखना है। आत्मा से अच्छा कोई शिक्षक नहीं है। सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक सत्य हीं होगा।
•बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप है।
•ब्रह्मांड की सारी शक्तियां पहले से हीं हमारी हैं। वो हम हीं हैं जो अपनी आँखों पर हांथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अँधकार है।
•विश्व एक विशाल व्यायामशाला है। जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
•दिल और दिमाग के टकराव में दिल की सुनो।
•किसी दिन जब आपके सामने कोई समस्या ना आए तो आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं।
स्वामी विवेकानन्द एक महान दार्शनिक, आध्यात्मिक गुरू, युगऋषि, युग प्रवर्तक, युगद्रष्टा, विद्वान, विचारक, समाज सुधारक, देशभक्त थे। अपने संक्षिप्त जीवन में हीं उन्होंने प्रेरणा की एक ऐसी अनन्त और अमिट रेखा खींची जो सदा-सर्वदा के लिए सम्पूर्ण विश्व के लोगों को प्रेरित करती रहेगी। अद्वितीय व्यक्तित्व वाले महान आत्मा स्वामी विवेकानन्द जी को The Logically कोटि-कोटि नमन करता है।
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