अगर प्रयास किया जाए तो हम अपने पर्यावरण को एक बार फिर से पहले की तरह हरा-भरा बना सकते हैं। कई लोग इस क्षेत्र में कार्य भी कर रहे हैं। उन्हीं लोगों में से एक हैं झारखंड (Jharkhand) के चाईबासा के एक शिक्षक। यह शिक्षक राजाबास गांव के रहने वाले हैं, जो अबतक हजारों पानी की बोतलों को काट कर उसका इस्तेमाल टपक विधि से पौधों को पानी देने के लिए कर रहे हैं। – Tarun Gogoi from Jharkhand, started the drip method from a waste plastic bottle.
पर्यावरण की सुरक्षा के लिए इस पहल की शुरआत
इस तकनीक से पौधों को जरूरत के हिसाब से लगातार पानी मिलता रहता है, जिससे पौधे तेजी से बढ़ते हैं। इस तकनीक को विकासित करने वाले टीचर का नाम तरुण गोगोई (Tarun Gogoi) है। वह बताते हैं कि अक्सर लोग पानी पीने के बाद बोतल फेंक देते हैं, जिससे प्रदूषण बढ़ता है। प्लास्टिक का बोतल जल्दी गलता नहीं है और जिस जगह पर रहता है उस जमीन को बेकार भी बनाता है, जिसका बुरा असर हमारे पर्यावरण पर पड़ता है।
प्लास्टिक के बेकार पड़ी बोतल का सही इस्तमाल
प्लास्टिक की बोतल के नुक्सान को समझते हुए तरुण उन्हें इकट्टा करने लगे और उसका सही इस्तमाल करने के लिए उसके पेंदे को काटकर अलग कर देते हैं। उसके बाद उन्होंने उसे उल्टा करके ढक्कन को थोड़ खोल दिया, जिससे एक बोतल में सुबह पानी डालने पर पूरा दिन में बूंद-बूंद के हिसाब से पानी गिरता है। इससे दो फायदे हैं एक प्लास्टिक का बोतल पर्यावरण को नुकसान नही पहुंचा रहा और दूसरा पौधा को भी आसानी से पानी मिला रहा है। – Tarun Gogoi from Jharkhand, started the drip method from a waste plastic bottle.
टपक विधि से पौधो को मिलता है बहुत लाभ
तरुण इस तकनीक के साथ काम करते हुए बेकार बोतलों को किसी पौधे के सामने एक लकड़ी को डालकर बोतल बांध देते हैं, जिससे एक बार अधिक मात्रा में पानी भी नहीं जाता पौधा में, जबकि पूरा दिन पौधे को पानी मिलता रहता है। इससे ना तो पौधा सूखता है और ना ही गलता है। जानकारों के अनुसार इस तरह पौधे में पानी डालने से उसका विकास तेजी से होता है।
तरुण अबतक टपक विधि से 2 हजार पौधे लगा चुके हैं
कई जगहों पर पानी की बहुत समस्या हैं। वहां के लोग चाह कर भी पौधे नहीं लगा पाते, परंतु तरुण के इस तकनीक से पौधे को नियमित रूप से पानी भी मिलता रहेगा और पानी की बर्बादी भी नहीं होगी। तरुण एक प्रयोग के तहत सहजन का 2 हजार पौधा लगाकर टपक विधि से उसमे पानी डाल रहे हैं। तरुण के इस पहल से पर्यावरण को बहुत लाभ मिलेगा। साथ ही उनके इस पहल से हम सबको सीख लेकर अपने स्तर पर पर्यावरण की सुरक्षा करनी चहिए। – Tarun Gogoi from Jharkhand, started the drip method from a waste plastic bottle.