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खुद लगाते हैं चाय का ठेला लेकिन दरियादिली इतनी की अपनी अधिकतर कमाई लोगों की सेवा में लगा देते हैं

ऐसा कई बार देखा जाता है कि इंसान भले हीं कम पैसे वाले क्यों न हो, यदि उसके अंदर सेवाभाव जागृत हो जाता है फिर वो कभी भी लोगों को सेवा करने से पीछे नहीं हटते। आज हम एक ऐसे जिन्होंने चाय बेचकर भी गरीबों की मदद करने में पीछे नहीं हटते। दरअसल, ये कहानी बिहार के एक चायवाले की है जिन्होंने साबित कर दिया है कि, किसी को की मदद या सेवा करने के लिए भरी जेब से ज्यादा जरूरी होता है बड़ा दिल’ ये शख्स खुद अपने परिवार का पेट पालने के लिए संघर्ष करता है लेकिन इसके बावजूद भी गरीबों, भीखमंगे की मदद करने से पीछे नहीं हटते।

दरअसल, हम बात कर रहे हैं बिहार में धर्म नगरी के नाम से प्रसिद्ध गया की पावन धरा पर रहने वाले संजय चंद्रवंशी के बारे में। संजय सूर्य की किरण फूटने के साथ ही गरीबों की सेवा में जुट जाते हैं। ये मानवता की सेवा को ही अपने जीवन का उद्देश्य मानते हैं।

दरअसल, संजय चंद्रवंशी एक चाय का ठेला लगाते हैं। गया शहर के गौतम बुद्ध मार्ग के गोल पत्थर मोड़ के समीप लगा उनका ठेला गरीब, असहाय और विक्षिप्त लोगों के लिए एक बड़ा सहारा का केंद्र बन गया है। इनका यहां जरूरतमंद लोगों को भोजन मिल जाता है। ये दिनभर चाय, सत्तू और जूस बेचने के बाद जो भी कमाई करते हैं उसे वह गरीबों, भूखों और विक्षिप्त लोगों का पेट भरने में खर्च कर देते हैं। ये कार्य कोई बड़े दिल वाले हीं कर सकते हैं, और वे हैं संजय चंद्रवंशी।

Sanjay Helping The Needy People
जरूरतमंद लोगों की मदद कर रहे संजय

अक्सर कहा जाता है कि बच्चों को संस्कार उनके घर से ही मिलते हैं, संजय के साथ भी कुछ ऐसा ही रहा है। उनके अंदर भी परमार्थ की ये भावना उनके पिता वनवारी राम को देख कर ही आई है। संजय के परिवार में यह दानशीलता की परंपरा उनके दादा के समय से हीं चली आ रही है। जिसे अब संजय चंद्रवंशी भी निभा रहे हैं।

प्राप्त जानकारी के अनुसार। गया जिले के इमामगंज प्रखंड के केन्दुआ गांव निवासी संजय का परिवार आजादी से पहले से ही लोगों की मदद करता आया है।उनका क्षेत्र उग्रवाद प्रभावित है लेकिन इस बात का असर कभी भी संजय या उनके परिवार की सेवा भावना पर नहीं पड़ा। संजय के दादा झंडू राम गरीब और असहाय लोगों की मदद करने के लिए जाने जाते थे। इसके बाद उनके पिता बनवारी राम भी गरीब लोगों की जरूरत के हिसाब से मदद करने की इस परंपरा को जारी रखा।

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अब संजय भी अपने पिता और दादा की राह पर ही चलकर आगे बढ़ रहे हैं। शायद इसलिए इनके दिए गए संस्कार को लोग दिल से तारीफ करते हैं। क्योंकि आज के इस युग में बहुत कम ऐसे लोग होते हैं जो अपनों के अलावा दूसरों का फिक्र करें। संजय आज भी गरीबों के समस्या को देखते हुए उनके लिए हमेशा मदद के बारे में सोचते हैं और उसे पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ते।

अगर आप इनके पूर्वजों से लेकर अभी तक का अध्ययन करेंगे। तो आपको पता चलेगा कि जरूरतमंद लोगों की मदद करने की वजह से ही संजय का परिवार कभी आर्थिक रूप से मजबूत नहीं बन पाया लेकिन इस बात से उन्हें कोई मलाल नहीं है। आज संजय खुद भी आर्थिक रूप से कमजोर हैं लेकिन इसके बावजूद हर रोज 20 से 25 से अधिक गरीब, पागल, विकलांग और भूखे लोगों को खाना खिलाते हैं। संजय आर्थिक रूप से कमजोर जरूर हैं परंतु इनका ये कार्य एक बड़े महान व्यक्तित्व को दर्शाता है।

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संजय व इनके पूर्वज 6-7 दशक पहले से ये महान कार्य करते हुए आ रहे हैं। हर सुबह अपने चाय के ठेला के पास पहुंचने पर संजय पाते हैं कि उनसे पहले ही असहाय और गरीब लोगों की भीड़ वहां लग चुकी है।इसके बाद संजय इन सभी को चाय और बिस्किट देते हैं। गर्मी के दिनों में संजय ऐसे लोगों को दोपहर में दो-दो गिलास सत्तू पिलाते हैं। ये इनका रोज का काम है। जहां आजकल लोग अपनों का ख्याल नही रखते वहां संजय आज भी कई असहाय लोगों पेट भरने का कार्य कर रहे हैं।

कलयुग का कर्ण

कुल मिलाकर देखा जाय तो संजय जितने भी कमाते हैं वो लगभग सारे पैसे इसी कार्य में खर्च कर देते हैं। जब ठंड ज्यादा रहती है तो ये उनके लिए अलाव जलाते हैं। साथ ही कंबल भी बांटते हैं। निश्चित तौर पर संजय वो काम कर रहे हैं जो कई पैसों वाले लोग भी नहीं कर पाते। इन्होंने साबित कर दिया की इंसान के जेब में केवल पैसे होने से बड़े कार्य नही होते बल्कि बड़े दिल रखने से भी हो सकता है।

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