Sunday, December 10, 2023

बच्चों को शिक्षित करने के लिए छोड़ दिये घर, पिछले 13 वर्षों से पहाड़ी इलाकों के बच्चों को कर रहे हैं शिक्षित: गोर लाल

शिक्षा मनुष्य के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। शिक्षा ग्रहण करने के लिए इन्सान को शिक्षक की आवश्यकता होती है क्योंकि गुरू के बिना हमें ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती हैं। शिक्षक का हम इन्सानो के जीवन में सबसे अधिक महत्त्व हैं क्योंकि गुरू ही हमें जीवन में आने वाली सभी चुनौतियों को बड़ी कुशलता से सामना करने की सीख देते हैं। शिक्षक की तुलना किसी और दूसरे से नहीं की जा सकती है। गुरू ही हमें अंधकार से ज्ञान की रोशनी की ओर लेकर जाते हैं। गुरू ही हम सभी को सही रास्ते पर चलने की सीख देते हैं। शिक्षक ही भविष्य बनाते हैं और सही मार्गदर्शन करते हैं।

आज के जमाने में शिक्षा एक व्यवसाय बन गया है। हर कोई पैसे के लिए काम करता हैं। हर जगह रोज नये नये कोचिंग संस्थान खुल रहें हैं। यह अच्छी बात है कि कोचिंग संस्था खुलने से छात्रों को अपनी पढ़ाई के लिए इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता। कुछ लोगों के लिए शिक्षा एक पैसा कमाने का जरिया बन गया है तो वही अभी भी कुछ लोग ऐसे हैं जिन्होनें पैसे को महत्त्व न देकर शिक्षा को महत्त्व दिया ताकी देश का भविष्य उज्जवल हो। हम आपको ऐसी ही एक कहानी से रूबरू कराने जा रहें हैं जिन्होनें पैसों को महत्त्व न देते हुए शिक्षा के लिए अपना घर छोड़ पहाड़ो पर रहने लगे हैं।

आइए जानते हैं उनके शिक्षा के प्रति त्याग की कहानी।

गोरे लाल बारस्कर (Gore Lal Baaraskar) मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के बैतूल के सालीबाड़ा (Saalibaada) गांव के रहने वाले हैं। बैतूल से लगभग 150 किलोमीटर दूरी पर एक पहाड़ी हैं। उस पहाड़ी पर एक आदीवासी बहुल गांव है जिसका नाम भन्डारपानी (Bhandaarpaani) है। यहां शिक्षा ग्रहण करने के लिए स्कूल नहीं है। शिक्षा के बिना इन्सान पशु के सामान हैं। बिना ज्ञान के इन्सान कभी भी अपने जीवन में आगे नहीं बढ़ सकता हैं। अगर जीवन में कुछ बनना है हासिल करना है तो उसके लिए शिक्षक की आवश्यकता हैं। इसके लिए वहां के मजदूर आदिवासी संगठन ने 2007 में स्कूल खोलने का प्रयास किया लेकिन बहुत कोशिश करने के बाद भी वे स्कूल खोलने के लिए पैसों का इंतजाम नहीं कर सकें। संगठन के पास शिक्षकों को हर महीने तन्ख्वाह देने के लिए बिल्कुल भी पैसे नहीं थे। आजकल मुफ्त में कोई शिक्षा भी नहीं देना चाहता हैं। शायद इसी वजह से उस आदिवासी बहुल गांव भण्डारपानी में कोई शिक्षक पढ़ाने जाना भी नहीं चाहता था। ऐसे में वहां शिक्षा का विस्तार बहुत कठिन था।

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Source-Bhaskar

लेकिन गोरे लाल बारस्कर (Gore Laal Baaraskar) ने शिक्षा के अहमियत को समझते हुए फैसला किया कि उस पहाड़ी पर आदिवासी बहुल गांव में वह पढ़ाने के लिए जायेंगे लेकिन उनके लिए एक और परेशानी उतपन्न हुई कि वह उस पहाड़ी पर चढ़कर जायेंगे कैसे??? परेशानी की वजह यह थी कि उनके गांव और पहाड़ी पर बसे गांव के बीच का सफर बहुत लम्बा था। लेकिन कहा जाता हैं न कि अगर मन में कुछ करने के लिए सच्ची श्रद्धा और भावना हो तो इंसान कोई न कोई हल निकाल ही लेता हैं। गोरे लाल (Gore Laal) के सिर पर बच्चों को पढ़ाने का ऐसा जोश सवार था कि वह उन बच्चों को वहां जाकर पढ़ाने के लिए अपना घर-परिवार छोड़ने का निर्णय लिए। इस निर्णय से उनके परिजनो को बहुत दुख हुआ और वह गोरे लाल से कूपित भी हुए। किसी ने ठीक ही कहा है,”यदि कोई किसी काम को पूरे मन से करने की ठान लेता हैं तो वह किसी के रोके नहीं रुकता हैं।” शायद यही कारण था जिसके वजह से गोरे लाल ने किसी की बात नहीं मानी और निकल पड़े उस पहाड़ी पर स्थित गांव के बच्चों को पढ़ाने के लिए। वर्ष 2007 में गोरे लाल ने अपना गांव छोड़ दिया और भण्डारपानी (Bhandaarpani) जा कर वहां के बच्चों को कैसे शिक्षित किया जाये इसके बारे में योजना बनाने लगे। वहां एक झोपड़ीनुमा स्कूल बनाकर उसी में वहां के बच्चों को शिक्षित करने का कार्य शुरू किए।

गोरे लाल (Gore Laal) ने लगभग अपना घर छोड़ ही चुके हैं। वह पिछले 13 वर्षों में कभी-कभार ही किसी मौके पर घर आये हैं। दैनिक जागरण की रिपोर्ट के अनुसार जब गोरे लाल को अपना घर छोड़कर गांव आये हुए 5 साल हुए तब साल 2012 में प्रशासन के स्कूल खोलने के निश्चय के बाद उन्हें उस स्कूल के अतिथि शिक्षक (Guest Teacher) के रूप में नियुक्त किया गया।

आज लगभग उस स्कूल में गोरे लाल (Gore Laal) लगभग 60 बच्चों को शिक्षित कर रहें हैं। गोरे लाल के शिक्षा के प्रति अपनी भुमिका निभाने और उस आदिवासी बहुल गांव के बच्चों को शिक्षित करने की जो अद्भूत मिसाल पेश की है इसके लिए The Logically इन्हें नमन करता हैं।