समय का सदुपयोग कर यदि कुछ सीखने की ललक हो तो कहीं से भी सीखा जा सकता है ! सीखने की ललक और सीखकर कुछ ऐसा करना कि उससे अन्य लोगों में भी एक प्रेरणा का संचार हो जाए ! रतलाम जिले के एक शिक्षक ने लॉकडाउन के दौरान विद्यालय बंद होने के कारण समय का सदुपयोग किया और गूगल और यूट्यूब जैसे सोशल साईस्ट्स से जैविक खेती के गुर सीखे और ना सिर्फ हजारों की कमाई की बल्कि अन्य लोगों में भी एक प्रेरणा का संचार किया !
गोविन्द सिंह कसावत रतलाम जिले के नरसिंह नाका गाँव में एक प्राथमिक विद्यालय में बतौर शिक्षक कार्यरत हैं ! जब कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण सभी शैक्षणिक संस्थान बन्द थे ऐसे में गोविन्द सिंह के पास कोई कार्य नहीं था ! इस खाली समय को गोविन्द सिंह यूं जाया नहीं होने देना चाहते थे इसलिए उन्होंने जैविक खेती करनी की सोंची पर उनके पास जैविक खेती करने की कोई जानकारी नहीं थी !
गूगल और यूट्यूब से सीखा जैविक खेती के गुर
जैविक खेती के बारे में जानकारी हासिल करने हेतु गोविन्द सिंह ने इंटरनेट का सहारा लिया और गूगल पर कई लोगों द्वारा की जा रही जैविक खेती के बारे में पढा और यूट्यूब पर जैविक खेती करने के गुर सीखे , खेती में प्रयोग होने वाले तत्वों को जाना ! इस तरह सोशल साईस्ट्स के माध्यम से गोविन्द सिंह जी ने जैविक खेती के गुर सीखे !
जैविक खेती की शुरुआत
सोशल साईट्स से जैविक खेती के गुर सीखने के पश्चात गोविन्द सिंह ने खेती करना शुरू कर दिया ! शुरूआत में उन्होंने लौकी और करैला आदि सब्जियां लगाईं ! जैविक विधि से की जाने वाली इन सब्जियों का बेहतरीन उत्पादन हुआ जिसे बेचने के लिए वे रतलाम स्थित मंडी आते थे ! धीरे-धीरे लोग इनके बारे में जाने और फिर लोग खुद इनके खेतों में जाने लगे और सब्जियां लाने लगे !
कम लागत में ज्यादा मुनाफा
गोविन्द सिंह ने जैविक विधि से खेती कर एक तरफ ना सिर्फ अधिक उत्पादन किया बल्कि दूसरी तरफ उससे अच्छा-खासा लाभ भी कमाया ! अपनी डेढ हेक्टेयर भूमि पर जैविक खेती में इन्हें लगभग 1 हजार रूपए की लागत आई जबकि उत्पादित फसल को बेचकर इन्होंने लगभग 40 हजार रूपए की कमाई की !
बेटा इसी में बनाना चाहता है करियर
गोविन्द सिंह ने जिस दिन से जैविक खेती के बारे में सीखना प्रारंभ किया उनके बेटे मनोज भी उनके साथ हीं सीखने लगा और हाथ भी बँटाने लगा ! मनोज ने बताया कि “मैंने डीएड किया है , सरकारी नौकरी को प्रयासरत और प्रतीक्षारत हूँ , लेकिन नौकरी को लेकर अब उम्मीद कम लग रही है पिता जी ने जैविक खेती की ओर रूचि दिलवाई और उसे सिखाया ! अब यही खेती करने का मन बना रहा हूँ और अन्य नए तरीकों से कृषि करने का विचार कर रहा हूँ !”
एक सच्चा शिक्षक हमेशा अपने ग्यान और कार्य से अन्य लोगों को प्रेरित करता है , उसे सीखाता है ! गोविन्द सिंह ने भी अपने समय का सदुपयोग करके और जैविक खेती में अपने सूझ-बूझ और परिश्रम से जो सफलता की कहानी लिखी है वह सभी के लिए प्रेरणाप्रद है ! Logically गोविन्द सिंह जी के कार्यो की खूब सराहना करता है !