Wednesday, December 13, 2023

73 वर्षीय तुलसी मुंडा खुद अनपढ़ हैं लेकिन 20 हज़ार बच्चों को पढ़ने में की मदद, मिल चुका है पद्मश्री सम्मान

कदाचित ही कोई व्यक्ति यह चाहता है कि अगर मैं किसी भी कार्य को पूरा नहीं कर पाया या उसे सीख नहीं पाया तो अगले को यह जरुर सिखाऊंगा। शिक्षा हर मनुष्य के लिए महत्वपूर्ण है। शिक्षा के बिना प्राणी जानवर के समान है। लेकिन शिक्षा के महत्व को वही समझ सकता है जो इससे वंचित रहा हो।

आज हम आपको ऐसे महिला से रूबरू करायेंगे जो खुद तो शिक्षित नहीं है लेकिन इन्होंने अपने प्रयासों से ज्ञान का दीप जलाकर हर एक बच्चे को शिक्षित करने की कोशिश की है। इस कार्य के लिए इन्हें पद्मश्री सम्मान सम्मान भी मिला है।

यह है 73 वर्षीय तुलसी मुंडा

73 वर्षीय तुलसी मुंडा (Tulsi Munda) उड़ीसा (Odisha) के एक छोटे से ग्राम से संबंध रखती हैं। इन्हें गांव में सभी सम्मान के साथ दीदी बुलाते हैं। वैसे तो यह अशिक्षित है लेकिन इन्होंने अपने गांव के 20,000 से भी ज्यादा बच्चों को शिक्षा का महत्व बताकर शिक्षित किया है। यह अपने गांव में हर उस बच्चे के लिए मसीहा है जिन्हें शिक्षा के बारे में कुछ नहीं पता। कुछ लोगों का मानना है कि अगर हम किताबें पढ़ें तो ही हम शिक्षित हैं। लेकिन इस बात को गलत साबित कर दिखाया है तुसली ने। वैसे तो यह कहने के लिए अशिक्षित है। लेकिन इन्होंने शिक्षा की ज्योत जलाकर हर एक बच्चे के जीवन में रोशनी लाने की जिम्मेदारी निभाई है। ज्ञान का दीप जला कर सभी बच्चों को शिक्षित करने के लिए इन्हें वर्ष 2001 में प्रधानमंत्री द्वारा पद्मश्री अवार्ड से नवाजा गया है। समाज के हित के लिए नायाब कार्य करने के लिए इन्हें “उड़ीसा लिविंग लीजेंड” पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।

बच्चों को शिक्षित करने का बनाया लक्ष्य

तुलसी गांव के खदानों में कार्य किया करती थी। बहुत सारे बच्चे भी वहीं काम करते थे। इन बच्चों को देख उन्होंने लक्ष्य बनाया कि मैं इन्हें शिक्षित करूंगी। वर्ष 1963 में “भूदान आंदोलन” ओडिशा में हुआ जिसमे सभी पदयात्रा में थे। इस आंदोलन के दौरान तुलसी की मुलाकात विनोबा भावे से हुई जो इस आंदोलन में शामिल थे। तुलसी ने विनोबा भावे के विचारों को अपने जिंदगी में लाने का फैसला किया और उनसे प्रभावित होकर इन्होंने एक बेहतरीन कार्य किया। वर्ष 1964 में अपने गांव सेरेंदा में आकर वहां के सभी बच्चों को शिक्षित करने का कार्य शुभारंभ किया।

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खुद करती थी मजदूरी

तुलसी अपने जीवनयापन के लिए मजदूरी किया करती थी और इससे अपना गुजारा चलाती थी। देखा जाए तो इनके जिंदगी में बहुत सारी परेशानियां थी। लेकिन इन्होंने इतनी विषम परिस्थितियों को नजरअंदाज करते हुए इतना अच्छा निर्णय लिया जो सभी के हित के लिए था। जो बच्चे बाल मजदूरी कर अपना और अपने परिवार का खर्चा चला रहे हैं, उन्हें शिक्षा के लिए प्रेरित करना बहुत ही कठिन था। लेकिन फिर भी इन्होंने हार नहीं माना और लोगों को अपनी प्रयासों से मना ही लिया। यह पढ़ाई के महत्व को जानती थी इसलिए यह चाहती थी कि मैं तो इस मजदूरी का शिकार हो चुकी हूं। लेकिन किसी भी बच्चे को मजदूरी का शिकार नहीं होने दूंगी और उन्हें शिक्षा दूंगी। काफी मशक्कत के बाद उन्होंने सफलता हासिल की।

 प्रारंभ में रात्री में पढ़ाती थी बच्चों को

सबसे पहले तो तुलसी ने अपने गांव के बच्चों को पढ़ाने के लिए रात्रि में पाठशाला शुरू किया। जब थोड़े दिन बाद लोगों का तुलसी पर भरोसा बढ़ने लगा तब वह दिन में बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल चलाना शुरु की। इन्होंने देखा कि इन बच्चों को पढ़ाने के लिए आर्थिक स्थिति ठीक होनी चाहिए। तब तुलसी सब्ज़ी बेचना शुरू कर दी और उससे पैसे कमाने लगीं। गांव वालों को इनका कार्य बहुत ही सम्मानित लगा। इसलिए गांव वालों ने भी इनकी हर मुमकिन सहायता की।

“आदिवासी विकास समिति” स्कूल की हुई स्थापना

पहले तो यह बच्चों को गांव में एक पेड़ के नीचे पढ़ाया करती थी। लेकिन जब उन्हें महसूस हुआ कि बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। तब इन्होंने विद्यालय के निर्माण के बारे में निश्चय किया। लेकिन यह बात तय थी कि अगर विद्यालय का निर्माण हुआ तो इसके लिए इन्हें अधिक पैसे की आवश्यकता है। इस दौरान उन्होंने पत्थर को काटकर विद्यालय के निर्माण का कार्य प्रारंभ किया। जिसमें गांव वालों ने भी इनका साथ दिया। तब यह गांव वालों के साथ मिलकर इस कार्य में लग गई। तुलसी और गांव वालों की मेहनत रंग लाई और मात्र 6 माह में ही 2 मंजिले स्कूल का निर्माण हो गया। लोगों की मेहनत और हिम्मत के बलबूते पर निर्मित इस स्कूल का नाम “आदिवासी विकास समिति” रखा गया। आज यह स्कूल 81 बच्चों के लिए आवासीय विद्यालय है। अभी यहां 7 शिक्षक और 354 विद्यार्थी हैं। वैसे तो तुलसी अब रिटायर हो चुकी हैं लेकिन आज यह उन सभी व्यक्तियों के लिए उदाहरण हैं जो बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा से वंचित रखतें हैं। वह इन्हें देख कर बहुत कुछ सीख सकतें हैं जिससे बेहतर कल का निर्माण हो।

खुद मजदूरी कर जीवन यापन करने और अनपढ़ होने के बाद भी अन्य बच्चों को शिक्षित करने के लिए जो अनुकरणीय कार्य तुलसी ने किया है इसके लिए The Logically Tusli को शत-शत नमन करता है।