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केरल की यह महिला महज़ 5 रुपये में घर-घर पहुंचाती हैं किताबें, वह महिलाओं को शिक्षित करना चाहती हैं: Walking librarian

आमतौर पर 60 वर्ष की आयु किसी भी व्यक्ति के लिए सभी पारिवारिक ज़िम्मेदारियो से निवृत होकर आराम करने का समय समझी जाता है। लेकिन केरल के वायनाड में रहने वाली 64 वर्षीय महिला लाइब्रेरियन केपी राधामनी पिछले 8 सालों से वायनाड और आस-पास के गांवो में घर-घर जाकर बुज़ुर्गों और महिलाओं को 5 रुपये के छोटे से शुल्क पर पुस्तकें उपलब्ध कराती हैं। उम्र के इस पड़ाव में राधामनी रोज़ाना दो से तीन किलोमीटर पैदल जाकर लोगों को किताबें उपलब्ध करा रही हैं। उनके इसी अथक प्रयास को देखकर लोगों ने उन्हे ‘वॉकिंग लाइब्रेरियन’ का संबोधन दिया है।

घरेलू महिलाओं को पढ़ने की प्रेरणा देता है राधामनी का यह प्रयास

64 साल की आयु में केपी राधामनी(KP Radhamani) का केरल स्थित वायनाड(Wanayad in Kerala) और आस-पास के इलाकों में पैदल ही हरेक घर जाकर पुस्तकें वितरित करने का यह कार्य वाकई ही तारीफे काबिल है। राधामनी, वायनाड में ही स्थित प्रथिबा पब्लिक लाइब्रेरी(Prathiba Public Library) में लाइब्रेरियन हैं और पिछले 8 सालों से रोज़ाना बेनागा किताबें बांटने के अपने उद्देश्य को अंजाम देने के लिए पैदल ही निकल पड़ती हैं। इस पहल के पीछे उनका मकसद घर की चार दीवारियों के भीतर अपनी जिम्मेदारियां निभा रही महिलाओं को पढ़ाना और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना है।

KP Radhamani by Walking librarian

‘वनिता वयना पड्डती’ अभियान को साकार करने में प्रयासरत हैं राधामनी

उम्र के इस पड़ाव पर आकर भी राधामनी समाज को शिक्षित करने का जो सराहनीय व अथक प्रयास कर रही हैं उसके लिए न केवल लोग उनके आभारी हैं बल्कि उन्हे ‘वॉकिंग लाइब्रेरियन’ कहकर भी संबोधित करते हैं। दरअसल, केरल राज्य के शिक्षा कांउसिल द्वारा आरंभ किये गये ‘वनिता वयना पड्डती’ अभियान जिसका खास मकसद गांवों की महिलाओं को शिक्षित बनाना है, इसके तहत राधामनी रोज़ाना क्षेत्र के हरेक घर में जाकर पुस्तके वितरित करने का काम करती हैं।

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राधामनी प्रमुख रुप से मलयालम भाषा की किताबें बांटती है

अपने मकसद को पूरा करने के लिए राधामनी अपने बैग में रोज़ाना 30 से अधिक मलयालम की किताबें लेकर निकल पड़ती हैं। वे कहती हैं- “मेरा उद्देश्य खासतौर पर घरेलू ज़िम्मेदारियों में उलझी व अन्य भाषा समझने में असमर्थ महिलाओं को शिक्षित बनाकर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना है इसलिए, मैं खासतौर पर मलयालम भाषा की किताबें अपने बैग में लेकर चलती हूं और बांटती हूं। इनमें ज़्यादातर नॉवेल, प्रतियोगी परिक्षाओं की किताबें और बच्चों की कहानी की किताब भी होती हैं।“

मनरेगा में काम कर रही महिलाएं राधामनी के प्रयास से लाभान्वित हो रही हैं

The News Minute की रिपोर्ट के मुताबिक- वर्तमान में राधामनी जोकि केरल के वायनाड में प्रथिबा पब्लिक लाइब्रेरी में काम करती हैं ने जब से ‘वॉकिंग लाइब्रेरियन’ की कमान संभाली है, तभी से घर-घर जाकर किताबें मुहैया कराने की उनकी यह एक नियमित विशेषता बन गई है । उनके गाँव की महिलाएँ, जो आम तौर पर मनरेगा (महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम) योजना के तहत काम करती हैं, रविवार को घर पर ही रहती हैं और इस तरह उनके लिए किताबों को पढ़ने और नया सीखने का यह सबसे अच्छा समय होता है।

लोगों के घर जाकर ही किताबे मुहैया कराती है ये ‘वॉकिंग लाइब्रेरियन’

राधामनी अक्सर क्षेत्र में स्थित नज़दीकी लाइब्रेरी से किताबे लेकर आती हैं और उन्हे लोगों के घरों तक पैदल जाकर उपलब्ध कराती हैं। यूं तो 25 रुपये सालाना अथवा 5 रुपये महीना का शुल्क देकर कोई भी लाइब्रेरी का सदस्य बन सकता है। लेकिन जो लोग शारीरिक रुप से असमर्थ हैं या जो महिलाएं घर से बाहर नही निकल पातीं उनके लिए राधामनी उनके दरवाज़े पर ही किताबें पहुंचाने का काम करती हैं।

लॉकडाउन से काम में कमी आई लेकिन बंद नही हुआ

कोरोना महामारी की वजह से लगे लॉकडाउन के कारण किताबे बांटने के काम में कमी ज़रुर आई लेकिन अनियमितता नही, उस दौरान भी राधामनी ने यथासंभव कोशिशों के ज़रिये महिलाओं और बुज़ुर्गों को किताबें मुहैया कराई थीं।

राधामनी से किताबों के विषय में सुझाव भी लेने लगी हैं गांव की महिलाएं

Voice of Rural India वेब मीडिया से हुई बात में राधामनी कहती हैं –“पहले ये महिलाएं किताबें पढ़ने में ज्यादा दिलचस्पी नही रखती थी, बल्कि ज़्यादातर वे केवल मंगलम और मनोरमा जैसी स्थानीय पत्रिकाएँ ही पढ़ती थीं, लेकिन आखिरकार जब उन्होंने मेरे दिए गए उपन्यासों में दिलचस्पी लेनी शुरू की, उसके बाद अधिक से अधिक लोगों ने किताबें पढ़ने के लिए उधार लेना शुरू कर दिया। अब ये महिलाएं सुझाव भी लेती है कि वे किन किताबों के विशेष रूप से लें, क्या रखें, कौन सी किताब कितनी उपयोगी है”

‘प्लास्टिक रिसाइकलिंग प्रोजेक्ट’ पर भी काम कर रही हैं राधामनी

राधामनी केवल एक वॉकिंग लाइब्रेरियन की भूमिका ही नही निभा रही हैं बल्कि वे पर्यावरण सुरक्षा की दिशा में भी काम कर रही हैं। जिसके लिए वे ‘प्लास्टिक रिसाइकलिंग प्रोजेक्ट’ पर भी काम कर रही हैं। उनके इस काम में उनके पति पद्मनाभन जिनकी एक किराना दुकान है और उनका बेटा भी पूरी तरह साथ देते हैं।

गांव के घरों में रंग ला रही है राधामनी की मेहनत

64 साल की उम्र होने के बावजूद राधामनी इन महिलाओं को पुस्तकें वितरित करने के लिए हर रोज़ दो से तीन किलोमीटर पैदल चलती हैं। घर-घर जाकर किताबें बांटने की राधामनी की यही मेहनत आज साकार रुप लेती नज़र आने लगी है। उनकी बांटी गई पुस्तकों से पढ़कर महिलाएं न केवल प्रतियोगी परीक्षाएं पास कर रही हैं बल्कि छोटी बच्चियां भी सफल हो रही हैं। राधामनी इसे ही अपना पारिश्रमिक समझती हैं।

अर्चना झा दिल्ली की रहने वाली हैं, पत्रकारिता में रुचि होने के कारण अर्चना जामिया यूनिवर्सिटी से जर्नलिज्म की पढ़ाई पूरी कर चुकी हैं और अब पत्रकारिता में अपनी हुनर आज़मा रही हैं। पत्रकारिता के अलावा अर्चना को ब्लॉगिंग और डॉक्यूमेंट्री में भी खास रुचि है, जिसके लिए वह अलग अलग प्रोजेक्ट पर काम करती रहती हैं।

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